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मोदी@4: उमा गईं-गडकरी आए, घाटों की सफाई तक सिमटा निर्मल गंगा का सपना

पीएम मोदी ने सत्ता में आने के बाद कहा था कि शहर और संस्कृति को बचाने के लिए गंगा नदी का साफ होना सबसे पहली जरूरत है. मां गंगा चाहती हैं कि कोई ऐसा बेटा तो आए जो उसे इस गंदगी से बाहर निकाले.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
aajtak.in/सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 23 मई 2018,
  • अपडेटेड 12:36 PM IST

नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए 4 साल हो चुके हैं और उन्होंने 2014 में जिन कई लुभावने वादों के साथ ऐतिहासिक जीत हासिल की उनमें गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाना भी था. सत्ता संभालने के बाद भी मोदी ने स्वच्छ गंगा का वादा दोहराया, लेकिन 4 साल गुजर जाने के बाद भी गंगा की स्थिति में खास सुधार होता नहीं दिख रहा.

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पीएम मोदी ने सत्ता में आने के बाद कहा था कि शहर और संस्कृति को बचाने के लिए गंगा नदी का साफ होना सबसे पहली जरूरत है. मां गंगा चाहती हैं कि कोई ऐसा बेटा तो आए जो उसे इस गंदगी से बाहर निकाले.

शुरुआत में दिखी थी तेजी  

सत्ता में आने के तुरंत बाद ही गंगा की सफाई पर मोदी सरकार हरकत में आई. गंगा सफाई के लिए अलग से मंत्रालय बनाया गया, जिसकी जिम्मेदारी उमा भारती को दी गई. एक एक्शन कमेटी भी बनी, जिसमें उमा भारती के अलावा नितिन गडकरी, प्रकाश जावड़ेकर, पीयूष गोयल और श्रीपद नाइक जैसे दिग्गज शामिल किए गए.

गंगा की सफाई से जुड़े अभियान की शुरुआत तो सरकार ने तूफानी अंदाज में की, लेकिन गुजरते वक्त के साथ यह योजना भी धरातल पर आने के बजाए महज बयानों और बैठकों में ही सिमटती दिखी. मोदी सरकार को सत्ता में आए 4 साल और नमामि गंगे योजना शुरू हुए 3 साल हो चुके हैं लेकिन स्थिति में सुधार की बात क्या कही जाए अभी तो इससे जुड़े ढेरों प्रोजेक्ट्स को मंजूरी तक नहीं मिल सकी है.

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महज 15 फीसदी ही खर्च

सरकारी आंकड़े भी गंगा की सफाई से जुड़े मामलों की भयावहता दर्शाते हैं. सरकार ने गंगा की सफाई के लिए 13 मई, 2015 को नमामि गंगे कार्यक्रम को मंजूरी देते हुए अपना अभियान शुरू किया. गुजरे 3 सालों में इस योजना को 4,131 करोड़ रुपये दिए गए, लेकिन सफाई के लिए आवंटित (20 हजार करोड़) राशि में से अब तक महज 15 फीसदी यानी 3,062 करोड़ ही इस्तेमाल हो सके.

देश के 5 राज्यों के 97 शहरों से होकर गुजरने वाली 2,525 किलोमीटर लंबी गंगा के किनारे बसे शहरों से रोजाना 2,953 मिलियन टन कचरा निकलता है और आज की सूरत यह है कि हिंदू धर्म में आस्था का प्रतीक कही जाने वाली गंगा में हर दिन 1,369 मिलियन लीटर कचरा गिर रहा है. पवित्र नदी की सफाई तो दूर अभी भी इसमें गिरने वाले कचरे में कोई गिरावट तक नहीं आई है.

प्रोजेक्ट्स में देरी

मोदी सरकार बीच-बीच में गंगा की सफाई की बात करती रही, लेकिन धरातल में स्थिति में कोई खास सुधार नहीं दिखता. गंगा नदी के किनारे बने घाटों की सफाई और रिवर फ्रंट के विकास के नाम पर 65 प्रोजेक्ट्स में से सिर्फ 24 ही पूरे हो सके हैं.

सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि गंगा की सफाई से जुड़े 154 प्रोजेक्ट्स में से महज 71 को ही मंजूरी मिल सकी. दूसरी ओर, गंगा को मैली होने से बचाने के लिए 46 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाने हैं जिनमें 26 का काम देरी से चल रहा है.

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ग्रामीण क्षेत्रों में पैसा ही खर्च नहीं हुआ

शहरी क्षेत्रों में पड़ने वाली गंगा की स्थिति तो बदतर है ही, साथ में ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आया है. गांवों में गंगा की सफाई के लिए जारी किए गए 951 करोड़ में से महज 490 करोड़ रुपये का ही इस्तेमाल किया जा सका है.

ऐसा नहीं है कि इस मिशन में कोई कामयाबी ही नहीं मिली. प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी समेत गंगा किनारे फैले घाटों को स्वच्छ कर दिया गया है, लेकिन मैली होती नदी और इसमें गिरने वाले कचरे में कमी नहीं लाई जा सकी है.

गंगा के किनारे बसे लोगों का आरोप है कि नमामि गंगे योजना के जरिए सफाई में लगे लोग सिर्फ ऊपरी स्तर पर ही सफाई कर रहे हैं. गंगा की सफाई का जिम्मा देख रहीं उमा ने दावा किया था कि पवित्र गंगा 3 साल में निर्मल हो जाएगी और अगले 7 साल में अविरल हो जाएगी. लेकिन इसके सच होने से पहले ही पिछले साल सितंबर में उमा भारती से इसका जिम्मा लेकर ये मंत्रालय नितिन गडकरी को सौंप दिया गया.

गंगा अभियान 3 दशक से भी पुराना

मोदी सरकार की ओर से 'नमामि गंगे' के लिए आवंटित की गई राशि पिछले 3 दशक में केंद्र की ओर से खर्च की गई राशि से 4 गुना ज्यादा थी. वर्तमान सरकार के आने से पहले 2015 तक पिछले 30 सालों में गंगा की सफाई पर करीब चार हजार करोड़ खर्च कर दिए गए.

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1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 462 करोड़ रुपये की लागत वाले 'गंगा एक्शन प्लान' को मंजूरी देते हुए गंगा की सफाई का अभियान शुरू किया था. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य नदी को प्रदूषित होने से रोकना और पानी की गुणवत्ता को बेहतर बनाना था. हालांकि यह योजना बुरी तरह से नाकाम साबित हुई थी.

मोदी सरकार ने गंगा की सफाई के लिए 4 गुना ज्यादा रकम की व्यवस्था कर थोड़ी उम्मीद जताई थी, लेकिन इस बार भी निराशा ही हाथ लग रही है. नमामि गंगे कार्यक्रम पर कुछ नहीं होने की धारणा को बदलने के लिए नितिन गडकरी ने पिछले दिनों कहा था कि गंगा को स्वच्छ करने पर किए जाने वाले खर्च में इस साल 8,000 करोड़ से 10,000 करोड़ रुपये तक की भारी वृद्धि की जाएगी.

अब मोदी के वादे और कार्यकाल में महज एक साल शेष रह गया है. फिलहाल बयानों में ही अविरल और निर्मल गंगा की बात दिख रही है, लेकिन इसके हकीकत में तब्दील होने में लंबा वक्त लगेगा और इसके लिए सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति भी चाहिए होगी.

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