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99 साल पहले बिना मॉडर्न हथियार भारतीय सैनिकों ने की थी हाइफा शहर की रक्षा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल के दौरे पर हैं. गुरुवार को वे इजरायल के शहर हाइफा गए. जहां उन्होंने पहले विश्वयुद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को वे श्रद्धांजलि दी, मोदी के साथ इजरायल के प्रधानमंत्री भी रगे. वो शहर इजरायल को हिंदुस्तान की बहादुरी और बलिदान से जोड़ता है. 99 साल पहले विश्वयुद्ध में हिंदुस्तान के वीर योद्धाओं ने हाइफा को तुर्कों से मुक्त कराया था. उनके सम्मान में दिल्ली में तीन मूर्ति चौक भी बनाया गया है. इसका नाम बदलकर तीन मूर्ति हाइफा चौक किए जाने की चर्चा हो रही है.

पीएम मोदी भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि देने  इजरायल के शहर हाइफा जाएंगे पीएम मोदी भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि देने इजरायल के शहर हाइफा जाएंगे
केशवानंद धर दुबे/पद्मजा जोशी
  • हाइफा,
  • 06 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 2:11 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल के दौरे पर हैं. गुरुवार को वे इजरायल के शहर हाइफा गए. जहां उन्होंने पहले विश्वयुद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को वे श्रद्धांजलि दी, मोदी के साथ इजरायल के प्रधानमंत्री भी मौजूद थे. ये शहर इजरायल को हिंदुस्तान की बहादुरी और बलिदान से जोड़ता है. 99 साल पहले विश्वयुद्ध में हिंदुस्तान के वीर योद्धाओं ने हाइफा को तुर्कों से मुक्त कराया था. उनके सम्मान में दिल्ली में तीन मूर्ति चौक भी बनाया गया है. इसका नाम बदलकर तीन मूर्ति हाइफा चौक किए जाने की चर्चा हो रही है.

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जानें हाइफा शहर के बारे में

हाइफा इजरायल में समुद्र के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है. लेकिन इस समय ये शहर दुनिया के दो मजबूत लोकतंत्रों को जोड़ने वाली सबसे बड़ी कड़ी बन गया है. 99 साल पुराने युद्ध में हिंदुस्तानी वीरता ने इन्हें और मजबूती से जोड़ा है. ये लड़ाई 23 सितंबर 1918 को हुई थी. आज भी इस दिन को इजरायल में हाइफा दिवस के रूप में मनाया जाता है.

जानें हाइफा युद्ध का पूरा इतिहास

प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत की 3 रियासतों मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया. हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया. केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया. हाइफा पर कब्जे के लिए एक तरफ तुर्कों और जर्मनी की सेना थी तो दूसरी तरफ अंग्रेजों की तरफ से हिंदुस्तान की तीन रियासतों की फौज.

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क्यों खास थी जीत

यह जीत और अधिक खास थी क्योंकि भारतीय सैनिकों के पास सिर्फ घोड़े की सवारी, लेंस (एक प्रकार का भाला) और तलवारों के हथियार थे. वहीं तुर्की सैनिकों के पास बारूद और मशीनगन थी. फिर भी भारतीय सैनिकों ने उन्हें धूल चटा दी. बस तलवार और भाले-बरछे के साथ ही भारतीय सैनिकों ने उन्हें हरा दिया. इसकी अगुवाई मेजर दलपत सिंह शेखावत कर रहे थे.

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कुल 1,350 जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया था. इसमें दो जर्मन अधिकारियों, 35 ओटोमन अधिकारियों, 17 तोपखाने बंदूकें और 11 मशीनगनों भी शामिल थे. इस दौरान, आठ लोग मारे गए और 34 घायल हुए, जबकि 60 घोड़े मारे गए और 83 अन्य घायल हुए. बता दें कि हाइफा भारतीय कब्रिस्तान में प्रथम विश्व युद्ध में मारे 49 सैनिकों की कब्रें हैं.

बता दें कि 23 सितंबर 1918 की ये जंग घुड़सवारी की सबसे बड़ी और आखिरी जंग थी, जिसने इजरायल बनने का रास्ता खोला. 1918 में यही हाइफा यहूदी पहचान बना. 14 मई 1948 को इजरायल बनने के बाद इस नए देश में यहूदियों के लिए रास्ता खुल गया. 1948 में जब इजरायल का अरब देशों से युद्ध शुरु हुआ तो एक बार फिर यही हाइफा युद्ध का केंद्र बना था.

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