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उत्तराखंड में फिलहाल जारी रहेगा राष्ट्रपति शासन, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे सात सवाल

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है. बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि विधानसभा में  अब 29 अप्रैल को फ्लोर टेस्ट नहीं होगा.  तीन मई को मामले की अगली सुनवाई होगी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केंद्र को मिली राहत सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केंद्र को मिली राहत
ब्रजेश मिश्र/अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 7:29 AM IST

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है. बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि विधानसभा में अब 29 अप्रैल को फ्लोर टेस्ट नहीं होगा. तीन मई को मामले की अगली सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र से सात सवाल भी पूछे हैं.

कोर्ट ने उठाए राज्यपाल के फैसले पर सवाल
कोर्ट ने कहा कि क्या राज्यपाल ने आर्टिकल 175 (2) के तहत फ्लोर टेस्ट रोकने का संदेश भेजा था? और क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं? राज्य विधानसभा में 9 विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने के मामले में कोर्ट ने पूछा कि क्या विधानसभा सदस्यों को अयोग्य घोषित करना सही है? और एप्रोप्रिएशन बिल किस स्टेज पर है और राष्ट्रपति का इस पर क्या कहना है?

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फ्लोर टेस्ट में देरी राष्ट्रपति शासन का आधार नहीं
कोर्ट ने यह सवाल भी किया कि फ्लोर टेस्ट में देरी होना, क्या राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार हो सकता है? अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि अगर मनी बिल 18 मार्च को पास हुआ तो उसे गवर्नर के पास क्‍यों नहीं भेजा गया. 27 मार्च को क्यों भेजा गया ? इस पर हरीश रावत और कांग्रेस के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि क्‍या मनी बिल गवर्नर के पास भेजने में देरी राष्‍ट्रपति शासन का आधार हो सकता है?

दिल्ली कैसे तय करेगी राज्य में बिल पास हुआ या नहीं
सिंघवी ने कहा कि यह मान भी लिया जाए कि स्‍टिंग ऑपरेशन सही है तो भी ये राष्‍ट्रपति शासन का आधार नहीं हो सकता. पहले ही एसआर बोम्‍मई और रामेश्‍वर प्रसाद के संदर्भ में दिए गए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट कह चुकी है कि किसी भी परिस्‍थिति में फ्लोर टेस्‍ट ही एक रास्‍ता बचता है. रावत की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्‍बल ने दलील दी कि क्‍या दिल्‍ली में बैठी कैबिनेट राज्‍य में मनी बिल पास हुआ या नहीं, यह तय करेगी?

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उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे ये सात अहम सवाल

फ्लोर टेस्ट ही बहुमत का स्वाभाविक जवाब
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि अगर सरकार का बहुमत पर सवाल है तो फ्लोर टेस्ट ही सबसे स्वाभाविक जवाब है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या सीएम के स्टिंग को राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए रिलेवेंट मेटेरियल माना जा सकता है? कोर्ट ने कहा कि टीवी स्टिंग सामाजिक या नैतिकता के आधार पर गलत हो सकता है पर ये राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार कैसे हो सकता सकता है? कोर्ट ने पूछा कि क्या स्टिंग को भी राष्ट्रपति शासन का आधार बनाया जा सकता है? अगर मनी बिल के पास होने पर कोई संदेह था तो 28 मार्च को फ्लोर टेस्ट में सारी बातें साफ हो जाती.

हाई कोर्ट ने दिया राष्ट्रपति शासन हटाने का फैसला
इसके पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले पर नैनीताल हाईकोर्ट ने रोक लगाकर सरकार बहाल करने का आदेश दिया था. 21 अप्रैल को सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया था. साथ ही 29 अप्रैल को विधानसभा में हरीश रावत को फ्लोर टेस्ट करने के लिए आदेश दिया था. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए पूछा था कि 'क्या इस केस में सरकार प्राइवेट पार्टी है?

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हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाकर 27 अप्रैल को अगली सुनवाई तक राष्ट्रपति शासन को जारी रखने का आदेश दिया था. केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर रोक लगाने की मांग की. जस्टिस दीपक मिश्रा और शिव कीर्ति सिंह की बेंच में अटॉर्नी जनरल ने दलील रखी कि अभी तक हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी नहीं मिली है. इसलिए इस फैसले पर स्टे दिया जाए. उन्होंने कोर्ट को बताया कि हाई कोर्ट के फैसले की कॉपी 26 अप्रैल तक मिल पाएगी. जिसके बेंच ने फैसला दिया कि 27 अप्रैल तक उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन बरकरार रहेगा.

उत्तराखंड में 27 मार्च को लगा था राष्ट्रपति शासन
उत्तराखंड में जारी राजनीतिक संकट के बीच 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था. केंद्र सरकार ने यह फैसला राज्यपाल केके पॉल की रिपोर्ट के बाद लिया था. इससे पहले सोमवार को मुख्यमंत्री हरीश रावत को फ्लोर टेस्ट करना था. लेकिन उन्हें इसका मौका नहीं मिल सका.

हरीश रावत के स्टिंग आने पर राष्ट्रपति शासन की मांग
केंद्र सरकार को विधायकों के बगावत से पैदा राज्य की स्थिति पर राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की आपात बैठक में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार किया गया था. मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद बीजेपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलकर उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी. स्टिंग में हरीश रावत को सदन में फ्लोर टेस्ट से पहले बागी विधायकों का समर्थन जुटाने के लिए उनसे सौदेबाजी करते हुए देखा गया.

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बिगड़ गया था विधानसभा का अंकगणित
विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने नौ बागी कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था. इसके बाद विधानसभा का अंकगणित पूरी तरह बदल गया था. स्पीकर के कांग्रेस के उन नौ विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले से 70 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या 61 रह गई थी. इन नौ विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत की और बीजेपी से हाथ मिला लिया था.

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