
एक ओर जहां मोदी सरकार अपनी तीसरी सालगिरह मना रही है, वहीं विपक्ष अब मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए एकजुट होने की कवायद में जुटा है. इसी सिलसिले में शुक्रवार को सोनिया गांधी ने विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाई थी. मीटिंग में राष्ट्रपति चुनाव में रणनीति पर गौर किया गया. लेकिन साथ ही कई और मुद्दों पर भी चर्चा हुई. आपको बताते हैं बैठक से निकलकर आई 7 बड़ी बातें:
चुनाव राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का, निशाने पर 2019
इस बात में कोई शक नहीं है कि राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव का अंकगणित सरकार के हक में है. लिहाजा विपक्षी खेमे की लामबंदी का मकसद सिर्फ ये चुनाव नहीं बल्कि 2019 के आम चुनाव भी हैं. बिहार में महागठबंधन की एकता ने बीजेपी को हार का मुंह दिखाया था. लेकिन यूपी में मायावती का अलग रहना बीजेपी के लिए जीत की वजह बना. इसी से सबक लेते हुए विपक्ष में ये भावना जोर पकड़ रही है कि बीजेपी को रोकने के लिए विरोधियों को गिले-शिकवे भुलाकर साथ आना होगा. इसी कारण से इस बैठक में राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही कश्मीर और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
YSR कांग्रेस और टीएसआर ने बढ़ाई मुश्किल
सरकार के अंकगणित को जगनमोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस के समर्थन ने और मजबूत किया है. विपक्षी नेता इसके पीछे जगन के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों को बड़ी वजह मानते हैं. लेकिन विपक्षी पार्टियों के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि 2019 तक ये हालात बदल सकते हैं. वहीं, तेलंगाना में टीआरएस और कांग्रेस आमने सामने हैं। तेलंगाना के कांग्रेस प्रभारी दिग्विजय सिंह के तीखे हमलों के बाद टीआरएस ने इस चुनाव में एनडीए को समर्थन का ऐलान कर दिया था, लेकिन अपनी सेक्युलर छवि को बनाने के लिए फिर नया रुख अपनाने के संकेत दे दिए. इसके बावजूद ये दोनों ही पार्टियां इस बैठक से दूर रहीं. हालांकि, यूपी से अखिलेश-माया का और बंगाल से ममता-लेफ्ट का साथ आना विरोधियों के लिए राहत की बात रही.
बीजेडी और एआईएडीएमके ने नहीं खोले पत्ते
ओडिशा में नवीन पटनायक फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोलना चाहते. बीजेडी चाहती है कि ओडिशा में कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोटों का बंटवारा उसे फायदा पहुंचाए. इसलिए वो अलग दिखना चाहती है. जयललिता के निधन के बाद बीजेपी की निगाहें एआईएडीएमके पर टिकी हैं. लेकिन डीएमके के विपक्षी खेमे में होने की वजह से एआईएडीएमके के नए नेतृत्व को अपने साथ जोड़ना विपक्ष के लिए आसान नहीं है.
ओवैसी और आप से उम्मीदें
असदुद्दीन ओवैसी पर अंदरखाते बीजेपी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगता रहा है. दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी और बीजेपी का झगड़ा इन दिनों चरम पर है. केजरीवाल और कांग्रेस के बीच भी रिश्ते तलख हैं. इन्हीं वजहों से एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी को शुक्रवार की बैठक में नहीं बुलाया गया था. लेकिन सबको उम्मीद है कि बीजेपी विरोध की सियासत में ये साथ होंगे.
सरकार की रणनीति का इंतजार
बैठक में इस बात पर रजामंदी बनती नजर आई कि विपक्ष राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव के लिए पहले सरकार की ओर से उम्मीदवारों के ऐलान का इंतजार करे. इसके बाद उम्मीदवार की कमियां गिनाकर अपना प्रत्याशी खड़ा किया जाए.
कांग्रेस ने छोड़ा उम्मीदवारी का दावा
राष्ट्रपति चुनाव के लिए अब तक कांग्रेस की ओर से गोपाल कृष्ण गांधी, शरद पवार, शरद यादव और मीरा कुमार के नाम सुझाए गए हैं. एक प्रस्ताव प्रणब मुखर्जी को दूसरी पारी सौंपने का भी है. हालांकि पवार खुद ही किनारा कर चुके हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी सरकार के समर्थन के बगैर दोबारा उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं हैं. शरद यादव की सियासी छवि को देखते हुए उनके नाम पर ऐतराज हो सकता है. ऐसी सूरत में कांग्रेस ने साफ किया है कि वो उम्मीदवारी से पीछे हटने के लिए तैयार है.
किस करवट बैठेंगे नीतीश?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बैठक में शरीक नहीं हुए. लेकिन खबर आई कि वो शनिवार को पीएम से मिलने वाले हैं. इसके चलते उनकी मंशा पर सवाल उठना लाजिमी है.