
क्या कोई मुर्दा भी कभी जिंदा हो सकता है? दिल्ली में एक इलाके के लोग इसी सवाल पर परेशान हैं. इसके पीछे वजह ये है कि यहां पहले एक शख्स का कत्ल कर दिया जाता है. पुलिस लाश बरामद करती है, और फिर घरवाले उसकी पहचान कर लेते हैं. मोहल्ले के सैकड़ों लोग लाश देख कर मातमपुर्सी करते हैं और-तो-और, अंतिम संस्कार के बाद अस्थियों का विसर्जन और तेरहवीं तक कर दी जाती है. लेकिन ठीक 27 रोज बाद, वो शख्स फिर से घर लौट आता है.
अपने शौहर को आंखों के सामने देख कर बीवी हैरान है. डर के मारे बेहोश हो रही है. अपने पापा को पास आते देख कर बच्चे दूर भाग रहे हैं. अपने बेटे को सामने पा कर मां फूट-फूट कर रोने लगी है. और छोटे भाई को तो अपने आंखों पर ही यकीन नहीं हो रहा. पर सवाल ये है कि आखिर धरम सिंह के साथ ऐसा क्या है? क्यों उसे देख कर कोई दूर भाग रहा है, कोई रो रहा है, कोई बेहोश हो रहा है और कोई अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा? आखिर क्यों धरम सिंह सबके बीच होते हुए भी एक छलावा बन चुका है? आपके सारे सवालों का जवाब ये है कि धरम सिंह मर चुका है.
जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा, उसकी मौत हो चुकी है . लेकिन इसके बावजूद वो ना सिर्फ सबकी आंखों के सामने बिल्कुल सही-सलामत खड़ा है. बल्कि किसी भी दूसरे इंसान की तरह बातें भी कर रहा है और अपने चारों ओर के इस माहौल से हैरान भी हो रहा है. अब आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कैसे मुमकिन है? जो शख्स मर चुका हो. घरवालों ने जिसकी लाश का खुद अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया हो. और तो और, तेरहवीं के बाद तमाम रीति-रिवाज के साथ लोग जिसकी अस्थियां तक गढ़गंगा में प्रवाहित कर चुके हों. वही शख्स भला सबकी आंखों के सामने बिल्कुल सही-सलामत कैसे खड़ा हो सकता है? आखिर वो जिंदा कैसे हो सकता है.
तो जनाब, यही वो पहेली है. जिसने ना सिर्फ धरम सिंह के घरवालों को, बल्कि दिल्ली के बादली इलाके में रहनेवाले सैकड़ों लोगों को बुरी तरह उलझा दिया है. बल्कि अब तो हालत ये है कि धरम सिंह जिधर से गुजर जाता है, कमजोर दिलवाले घरों में दुबक जाते हैं. औरतें बेहोश हो जाती हैं. लोगों को बुखार चढ़ जाता है. बात ज्यादा पुरानी नहीं, सिर्फ 27 रोज़ पहले की है, जब लोगों ने धरम सिंह को मुर्दा देखा था. पुलिस ने बाकायदा उसकी लाश बरामद की थी. गली-मोहल्ले के लोगों के साथ-साथ खुद उसके घरवालों ने भी लाश की पहचान की थी. धरम सिंह के कपड़ों के साथ-साथ जिस्म पर मौजूद कई खास निशान उसकी लाश पर जस के तस थे. यानी सबको ये तसल्ली हो चुकी थी कि मरनेवाला उनका बेटा धरम सिंह ही है.
लेकिन इन सबके ठीक 27 रोज़ बाद धरम सिंह अचानक अपने घर आ पहुंचा. उसे जिसने भी गली से गुजरते हुए देखा, बस देखता रह गया. उसे भूत समझ कर किसी के पसीने छूट गए. तो कोई डर के मारे चिल्लाने लगा. गैरों की बात छोड़िए, अपने बेटे को जिंदा देख कर खुद घरवालों का भी बुरा हाल हुआ. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये पहेली क्या है? एक मुर्दा इंसान के अचानक जिंदा होने की ये कहानी क्या है? और अगर ये शख्स धरम सिंह ही है, तो फिर घरवालों ने जिसकी लाश का अंतिम संस्कार किया था, वो कौन है? तो एक मुर्दा के जिंदा होने की ये कहानी जितनी पेचीदा है, इसके पीछे की हकीकत उतनी ही चौंकाने वाली.
वो कोई आम मौत नहीं मरा, बल्कि उसे सैकड़ों लोगों के बीच चोरी के इल्ज़ाम में पीट-पीट कर मार डाला गया. और फिर जब लाश की शिनाख्त करने की बारी आई तो घरवालों ने देखा कि ठीक धरम सिंह की तरह ही लाश का एक दांत टूटा हुआ है, एक हाथ की ऊंगली कटी हुई है. यानि धरम सिंह की मौत को लेकर हर कोई मुतमईन था. लेकिन इसी बीच कहानी पलट जाती है. एक मुर्दा के जिंदा होने की ये कहानी की रविवार 23 अगस्त 2015 को शुरू हुई. दिल्ली के बादली इलाके में देर रात कुछ लोगों की नजर अचानक इलाके में घूम रहे कुछ चोरों पर पड़ी. लोग फौरन घरों से निकले और चोरों की घेरेबंदी शुरू कर दी गई. भनक लगने पर बाकी तो भाग निकले, लेकिन एक चोर भीड़ के हत्थे चढ़ गया. बस फिर क्या था? लोगों ने इस शख्स की इतनी पिटाई की कि मौके पर ही उसकी मौत हो गई.
अब सुबह होते-होते पुलिस भी मौका-ए-वारदात पर थी. पुलिस ने मरनेवाले की पहचान पता करने की कोशिश की. और जल्द ही उसे ये पता चल गया कि तकरीबन 30 साल की उम्र का ये शख्स पास ही की गली में रहनेवाला धरम सिंह है, जो वैसे तो ट्रक ड्राइवर है, लेकिन शायद इस रोज चोरी के इरादे से घूम रहा था. अब पुलिस ने लाश बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी , साथ ही धर्म सिंह के घरवालों को शिनाख्त के लिए बुलाया. घरवाले लाश देखते ही दहाड़े मार कर रोने लगे उनके मुताबिक ये धरम सिंह ही था.
उसने कपड़े भी धरम सिंह की तरह पहने थे और उसके भी सामने का एक दांत टूटा हुआ था. और तो और धरम सिंह की तरह ही उसके भी हाथ ही एक उंगली कटी हुई थी. यानी उम्र एक, कपड़े एक और तो और जिस्म में मौजूद निशान भी एक. कहने का मतलब ये कि लाश को पहचानने में शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. लिहाजा, घरवालों के शिनाख्त कर लेने के बाद पुलिस ने कानून औपचारिकताओं के बाद लाश उनके हवाले कर दी. बाप और भाई पहले ही अस्पताल में धरम सिंह की लाश पहचान चुके थे. घर पहुंचने पर धरम सिंह की बीवी भी अपने शौहर की लाश देख कर बेहोश गई, और तो और मां भी गश खा कर गिर गई. बच्चे भी रोने लगे. यूं कहें कि पूरे मोहल्ले में मातम छा गया.
धरम सिंह के घरवालों ने तकरीबन 30 हजार रुपए खर्च कर मोहल्ले वालों के साथ मिलकर पास ही के श्मशान घाट में उसका अंतिम संस्कार कर दिया. इसके बाद वक्त गुजरता गया, और जिंदगी फिर से अपनी रफ्तार पकड़ने लगी. लेकिन धरम सिंह की मौत का ये मामला तब अपने सिर के बल खड़ा हो गया, जब मौत के ठीक 27 रोज बाद यानी 18 सितंबर को धरम सिंह अचानक अपने घर वापस आ गया. दरअसल, धरम सिंह को पहली बार किसी ने पास के बाजार में देखा और फिर दौड़ता हुआ उसके भाई गौरव के पास पहुंचा. उसने बताया कि धरम सिंह जिंदा हो चुका है और बाजार में घूम रहा है. लेकिन गौरव समेत घर के दूसरे तमाम लोगों की हैरानी का तब कोई ठिकाना नहीं रहा, जब धरम सिंह कुछ ही देर बाद अपने घर आ पहुंचा.
अब सवाल ये था कि आखिर धरम सिंह इतने दिनों तक कहां रहा? और अगर यही धरम सिंह है, तो फिर जिसकी मौत हुई थी, वो कौन है? मोबाइल फोन के इस दौर में जब हर शख्स एक-दूसरे से चौबीसों घंटे जुड़ा रहता है, तब धरम सिंह की इस रहस्यमयी गुमशुदगी का राज क्या था? आखिर जब धरम सिंह की मौत पर हर कोई रो रहा था, उसकी लाश का अंतिम संस्कार हो रहा था तब असली धरम सिंह कहां छुपा बैठा था? धरम सिंह के दोबारा जिंदा हो जाने या फिर यूं कहें कि उसके घर लौट आने की खुशी पर लोगों की हैरानी हावी थी. अब हर किसी के जेहन में यही सवाल था कि अगर वही धरम सिंह है तो आखिर वो इतने दिनों तक कहां रहा? जब पूरा इलाका उसकी मौत के मातम में डूबा था. घरवाले उसकी लाश की पहचान कर रहे थे. मोहल्ले के लोग घरवालों को सांत्वना देने आ रहे थे, तब धरम सिंह कहां था? और तो और जब उसकी अस्थियां गढ़गंगा में बहाई जा रही थी, तब वो कहां था?
आखिर क्यों इतने दिनों तक उसने एक बार भी घरवालों को फोन कर ये बताने की कोशिश नहीं की कि वो जिंदा है, सही-सलामत है. जबकि ये दौर मोबाइल फोन का है, और आज शायद ही कोई ऐसा शख्स है, जिसके पास मोबाइल नहीं है. तो धरम सिंह के पास ऐसे हर सवाल का जवाब मौजूद था. धरम सिंह की मानें तो चूंकि वो ट्रक चलाता है, इस वाकये के कुछ रोज़ पहले ही वो पास ही संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर से माल समेत ट्रक ले कर डिलिवरी के लिए निकल गया था. इसके बाद वो असम भी गया, बिहार भी और झारखंड भी. और इस तरह कई राज्यों और बहुत से शहरों से होता हुआ वो 18 सितंबर को फिर से दिल्ली लौट आया.
धरम सिंह ने अपनी बातों के हक में तमाम राज्यों के नाकों और अलग-अलग जगहों पर उसके और ट्रक की एंट्री के कागज होने की भी दलील दी. हालांकि जब खुद धरम सिंह घर के तमाम लोगों को और घर के लोग धरम सिंह को पहचान रहे थे, तो भी ऐसी दलील और उसके तस्दीक की कोई जरूरत नहीं बची थी. बहरहाल, धरम सिंह के जिंदा होने की बात अब बेशक साफ हो चुकी हो, लेकिन इतने दिनों तक उसके गायब रहने का रवैया अब भी सवालों के घेरे में था. धरम सिंह अगर पहले ही अपने घरवालों को फोन कर लेता. तो शायद उसके जीने-मरने की ये कहानी इतनी लंबी नहीं होती. लेकिन आखिर क्यों नहीं किया धरम सिंह ने ऐसा?
दरअसल, वो शराब पीने की अपनी आदत को लेकर घरवालों से हुए झगड़े से नाराज था. इसके पीछे वजह है धरम सिंह के पीने-पिलाने की आदत की. खुद धरम सिंह की मानें तो उसे शराब पीने का काफी शौक है. और इसी वजह से उसकी अपने घरवालों से अक्सर अनबन हुआ करती है. और इसी वजह से इस बार जब वो ट्रक लेकर अपने काम पर गया, तो उसने इतने दिनों तक एक बार फिर अपने घरवालों से बात करने या उन्हें फोन करने की कोशिश नहीं की. लेकिन यहां पहुंच कर जब उसे अपनी मौत और इस पर घरवालों के इस मातमपुर्सी का पता चला, तो उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसके शराब पीने की लत खुद उस पर उसके पूरे परिवार पर कितनी भारी पड़ी. हालांकि धरम सिंह की वापसी ने अब पुलिस के लिए नया सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर वो आधी रात को पब्लिक की पिटाई से मारा जानेवाला वो शख्स कौन था?