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आदमखोर बाघ को अदालत ने सुनाई उम्रकैद की सजा

जुर्म की सजा सिर्फ इंसानों को ही नहीं मिलती बल्कि जानवरों को भी मिलती है. जानवरों के लिए भी अदालत बैठती है. जानवरों पर भी मुकदमा चलता है, बहस होती है. दलील, वकील जिरह, सबूत सब पेश होते हैं. ये सब कुछ हिंदुस्तान की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में हुआ.

एक बाघ को मिली उम्रकैद की सजा... एक बाघ को मिली उम्रकैद की सजा...
सना जैदी
  • नई दिल्ली,
  • 05 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 9:08 PM IST

ऐसा बहुत कम होता है जब इंसानों के लिए और इंसानों की बनाई अदालत में जानवरों पर मुकदमा चलता है. उस मुकदमे की सुनवाई अगर सुप्रीम कोर्ट में हो तो केस और भी अहम हो जाता है. ऐसा ही एक केस सुप्रीम कोर्ट में आया. केस टी-24 उर्फ उस्ताद का. उस उस्ताद का जिसपर चार इंसानों को मार कर बाघ से आदमखोर बन जाने का इल्जाम था. अदालत ने उस्ताद को आदमखोर करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई. ये जब तक जिंदा रहेगा चिड़ियाघर में ही रहेगा.

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रणथंबौर पार्क का सबसे फेमस और सबसे बड़ा स्टार उस्ताद या फिर टी-24 नाम के बाघ को बस साल भर पहले तक लोग दूर-दूर से देखने आते थे. अचानक इस पर चार इंसानों की जान लेने का इल्जाम लग गया. इल्जाम लगते ही राज्य सरकार ने उस्ताद को तुरंत रणथंबौर नेशनल पार्क से निकाल कर सौ किलोमीटर दूर सज्जनगढ़ चिड़ियाघर में डाल दिया. उस्ताद के चाहने वाले उसकी इस कैद के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गए. हाई कोर्ट ने भी उस्ताद को कैद मे ही रखने को कहा. इसी के बाद मामला देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस आर बनुमाठी और जस्टिस यूयू ललित यानी तीन-तीन जजों की बेंच बैठी. इसके बाद बाकायदा उस्ताद का मुकदमा शुरू हुआ. उस्ताद के खैरख्वाह की तरफ से सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह पैरवी कर रही थीं. दोनों तरफ से जिरह और तमाम दलीलें दी गईं. इंदिरा जय सिंह का तर्क था कि उस्ताद को बस इंसानी लाश के पास खड़े देखा गया है. इंसान को मारते या उसे खाते हुए नहीं. यानी उस्ताद आदमखोर है इसका कोई सबूत या चश्मदीद नहीं है. इस पर अदालत ने हैरानगी जताते हुए पूछा कि क्या इसके लिए आपको चश्मदीद चाहिए? क्या उस्ताद इंसानी लाश के पास खड़ा होकर पहरा दे रहा था? इंदिरा जय सिंह ने दलील दी कि अगर उस्ताद को जंगल की बजाए चिड़ियाघर में कैद रखा गया तो वो बीमार पड़ सकता है. इस पर अदालत ने कहा कि अगर उसे जंगल में आजाद रखा गया तो इससे इंसानी जान को खतरा हो सकता है.

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अदालत को वन्यजीव विशेषज्ञ के हवाले से ये भी बताया गया कि उस्ताद के चिड़ियाघर में खान-पान की आदतों और बर्ताव को देखते हुए कहा जा सकता है कि वो कैद में भी नॉर्मल और खुश है. इस सिलसिले में दलील दी गई कि कोई भी टाइगर अगर चलते हुए अपने पिछले पैरों से मार्क बनाए, पूंछ ऊंची करके चले, गर्दन पेड़ों से खुजाए, पेड़ की शाखाओं पर खड़ा दिखे, अपने आगे के पंजों से पेड़ की छाल को निकाले, गीली मिट्टी के पास बैठे और पानी में नहाता हुआ दिखे तो मान लीजिए कि उसका व्यवहार सामान्य है. उस्ताद में फिलहाल ये सारे लक्षण देखने को मिल रहे हैं.

दोनों पक्षों की दलीलें और जिरह के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए उस्ताद को ताउम्र चिड़ियाघर में कैद रखने का हुक्म दे दिया. हमारे अपने समाज, अपने घर, मौहल्ले या गली में कोई अजनबी घुस आए तो हम क्या करते हैं? जाहिर है अजनबी से खतरा हो तो हम पहले खुद को महफूज करते हैं और उसे खुद से दूर. क्या इसमें कभी कोई कानून बीच में आता है? ठीक इसी तरह उसके घर-मौहल्ले में भी अजनबियों का आना-जाना शुरू हो गया था. लिहाजा उसने उनपर हमला कर दिया. नतीजा ये कि अब उसे उसके ही घर से बेघर कर उसे उम्र कैद की सजा दे दी गई है.

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पिछले साल मई में जब उसे चार इंसानों की मौत का जिम्मेदार मानते हुए वन विभाग की ओर से इसी चिड़ियाघर की चारदिवारी में कैद किया गया था, तो कहने वाले कह रहे थे कि उसे अपने बचाव का मौका दिए बगैर ही सजा सुना दी गई. जबकि इंसानों का बनाए कानून किसी भी शख्स को मुल्जिम से मुजरिम करार दिए बगैर सजा नहीं दी जा सकती. लेकिन यहां तो बगैर सुनवाई के ही रणथंभौर के इस राजा को हरे पर्दों के बीच चिड़ियाघर में कैद कर दिया. देश की सबसे ऊंची अदालत ने भी ना सिर्फ उसे चार-चार इंसानी मौतों का गुनहगार करार दिया है, बल्कि इसी गुनाह में ताउम्र कैद की सजा सुना दी. रणथंभौर के आजाद माहौल से निकाल कर उसे उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलोजिकल पार्क में कैद कर उसके चारों तरफ हरे रंग का पर्दा टांग दिया गया है. ताकि ना उसे कोई देख सके ना वो किसी को देख सके.

दरअसल पिछले साल 8 मई को उस्ताद ने वनकर्मी रामपाल सैनी पर हमला कर उसे जान से मार दिया था. रामपाल 10 साल से रणथंभौर में फॉरेस्ट चौकी पर तैनात थे. इसी हादसे के बाद ही राज्य सरकार ने ये फैसला लिया कि टी-24 को रणथंभौर नेशनल पार्क से हटा देना ही सही है. हादसे के ठीक 8 दिन बाद 16 मई 2015 की सुबह वनकर्मियों ने उस्ताद को पहले ट्रेंक्यूलाइजर से बेहोश किया और फिर उसे एक पिंजरे में कैद कर उसे रणथंभौर से 400 किलोमीटर दूर सज्जनगढ़ के बॉयोलॉजिकल पार्क के एक पिंजरे में कैद कर दिया. जो अब हमेशा-हमेशा के लिए उसके कैद में तब्दील हो चुकी है.

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