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इतनी बदनामी कि सफाईवाले भी नहीं आते, GB रोड के सेक्स वर्कर्स की दास्तां

aajtak.in
  • 06 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST
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दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. वोट डालने से पहले हर कोई अपने-अपने चुनावी मुद्दे को लेकर जागरूक हो गया है. इस बीच 'द लल्लनटॉप' ने महिला सेक्स वर्करों से उनकी समस्याओं को लेकर बातचीत की.
 
 
(प्रतीकात्मक तस्वीर)

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आम लोगों की तरह ही इनके भी कई मुद्दे हैं और इन्हें भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सेक्स वर्करों ने खुलकर बताया कि काम के दौरान उन्हें किन-किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है.
 
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एक सेक्स वर्कर ने बताया, 'हमारे काम को हमारी सरकारी सुविधाओं से जोड़ दिया जाता है. हम कोई स्वास्थ्य सेवाएं लेने जा रहे हैं तो वहां हमसे भेदभाव किया जाता है. इतना ही नहीं स्कूलों में हमारे बच्चों के साथ भी बहुत भेदभाव किया जाता है. हमारे साथ आम महिलाओं की तरह व्यवहार नहीं किया जाता है. हम सरकार से चाहते हैं कि हमारे इन छोटे-छोटे मुद्दों पर ध्यान दिया जाए.'

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सेक्स वर्करों की मांग है कि आम लोगों की तरह ही सेक्स वर्करों की भी समस्याएं सुनी जाएं ताकि उनके साथ हो रही हिंसाओं को कम किया जा सके. इनका आरोप है कि अपराध पर लगाम लगाने के बजाए पुलिस भी यहां आकर अपनी पूरी मनमानी करती है और उन्हें बेवजह परेशान करती है. पुलिस की जबरन छापेमारी पर रोक लगनी चाहिए.
 
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सेक्स वर्करों का कहना है कि जीबी रोड इस कदर बदनाम है कि सफाईकर्मी भी यहां आने से कतराते हैं जिसकी वजह से यहां चारों तरफ गंदगी फैली रहती है और हर समय बदबू आती रहती है.
 
 
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एक सेक्स वर्कर ने कहा, 'मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की दूर-दूर तक यहां कोई पहुंच नहीं है. आखिर ये भी तो भारत का ही हिस्सा है फिर इसके साथ इतना अलग व्यवहार क्यों किया जाता है. यहां नेता भी बस वोट मांगने के टाइम ही नजर आएंगे.'
 
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इनके बच्चों तक टीकाकरण की सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. एक सेक्स वर्कर ने बताया, 'जीबी रोड के सरकारी अस्पतालों में हमसे कई तरह के गलत सवाल किए जाते हैं जैसे कि बच्चे का बाप कौन है, बाप है भी कि नहीं, एड्रेस की पूरी जानकारी दो. इनसे परेशान होकर हम लोग अब अपने खर्चे पर प्राइवेट अस्पताल में जाकर बच्चों का टीकाकरण करवा रहे हैं.'
 
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यहां महिलाओं में एचआईवी और स्किन से संबंधित समस्याएं फैलती जा रही हैं. बुजुर्ग सेक्स वर्करों के रहने का कोई ठिकाना नहीं है. इनकी मांग है कि उन्हें रहने की जगह और कुछ काम दिए जाएं.
 
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बच्चों के एडमिशन के समय होने वाली दिक्कत के बारे में बात करते हुए सेक्स वर्कर ने बाताया, 'फॉर्म पर बाप के नाम और साइन की जरूरत पड़ती है. जब बच्चे को हमने पैदा किया, हमने ही पाला तो बाप के बिना कोई प्रक्रिया क्यों नहीं पूरी हो सकती. सरकार को ये सुविधा दी जानी चाहिए कि एक महिला सिर्फ अपने नाम पर भी बच्चे को पढ़ा सके और उसके बाप का नाम ना मांगा जाए.'
 
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जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स का कहना है कि आधार कार्ड पर जीबी रोड का नाम देखकर ही उनसे भेदभाव किया जाता है. इनकी चिंता है कि जिस तरह के काम में वो हैं उसमें उम्र जल्दी ढलने लगती है और एक समय के बाद वो ये काम को नहीं कर सकतीं. इसलिए घर चलाने के लिए सरकार उन्हें पेंशन दे.
 
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इनका कहना है कि मसाज पार्लर और स्पा सेंटर की आड़ में उन लोगों पर छापेमारी बंद होनी चाहिए जो अपनी रोजीरोटी के लिए अपनी मर्जी से इस धंधे में आए हैं. एक सेक्स वर्कर ने बताया कि महिला आयोग से कुछ औरतें हाल में यहां आई थीं. वो एक लाख की फिरौती मांग रहीं थीं और ना देने पर छापा पड़वाने और उठाकर ले जाने की धमकी दे रहीं थी.
 
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महिला ने बताया, हमसे पैंसे ऐंठने के लिए ये हमें कॉन्डोम रखने के आरोप में भी अंदर करवाने की धमकी देती हैं. पुलिस के साथ इनकी मिलीभगत होती है. ये जबरन किसी को भी उठाकर ले जाते हैं और पैसे देने के बाद छोड़ते हैं. हालांकि इन महिलाओं का ये भी कहना है कि खुद को महिला आयोग का बताती हैं पर हमारे पास इसका भी कोई सबूत नहीं है.
 
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कई बार सेक्स धंधे की आड़ में इनके साथ रेप भी हो जाता है और शिकायत करने पर पुलिस कहती है कि तुम तो खुद सेक्स वर्कर हो, तुम्हारा रेप कैसे हो सकता है. इनका कहना है कि पुलिस वाले ऐसे-ऐसे आरोप लगाते हैं कि महिलाएं खुद ही अपनी शिकायत वापस ले लेती हैं.
 
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इनमें से ज्यादातर महिलाएं अपने घर में झूठ बोलकर सेक्स वर्कर के काम पर जाती हैं जबकि कुछ के घरवालों को इस बात की पूरी जानकारी है लेकिन कमाई का सिर्फ यही जरिया होने की वजह से कोई आपत्ति नहीं करता.
 
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50 से 55 उम्र तक की महिलाओं ये काम करती हैं और जिनके पास आय को कोई और जरिया नहीं हो पाता है वो 60 साल तक की उम्र में भी कभी-कभी ये काम कर लेती हैं. वहीं पुरुष क्लाइंट के उम्र की कोई सीमा नहीं है. यहां 18 से लेकर 80 साल तक की उम्र वाले आते हैं.
 
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एक सेक्स वर्कर ने बताया, 'हर क्लाइंट सेक्स के लिए नहीं आता. कुछ क्लाइंट हमारे पास सिर्फ बात करने के लिए भी आते हैं. वो अपनी बीवी, बच्चे और घर के बारे में बात करते हैं, अपना दिल हल्का करके ही उन्हें खुशी मिल जाती है.  कुछ क्लाइंट  सिर्फ ड्रिंक और स्मोक करने के लिए आते हैं, कोई सिर्फ हमें बाहर घुमाने के लिए ले जाता है.
 
 
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उन्होंने बताया कि हर क्लाइंट पैसे भी नहीं देता है. जैसे किसी की साड़ी की दुकान है तो उसने पैसे के बदले साड़ी दे दी. किसी की राशन की दुकान है तो उसने राशन दे दिया, वैसे ही कॉस्मेटिक वाले ने क्रीम, पाउडर दे दिए.
 
 
 
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सेक्स वर्कर ने बताया, 'यहां कोई किसी से उसका धर्म नहीं पूछता. क्लाइंट चुनने का अधिकार हमें नहीं है. खुद क्लाइंट आता है. उसको जो पसंद आता है, उसके साथ सेक्स कर लेता है.'
 
 
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कमाई का कोई जरिया न होने की वजह से न चाहते हुए भी हर हालत में उन्हें ये काम करना पड़ता है. एक महिला ने बताया, 'डिलीवरी के दो दिन के बाद भी ये काम करना पड़ता है. एक महिला को तो अबॉर्शन के तुरंत बाद अपने काम पर लौटना पड़ा. घर में कमाने वाला कोई और नहीं है जिसकी वजह से तकलीफ सहते हुए भी ये काम करना पड़ता है.'
 
 
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कोई दिक्कत होने पर इनका सहारा सिर्फ 'ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर' ही है. ये पूरे देश की महिला सेक्स वर्करों का एक संगठन है. यहां पर ये खुलकर अपनी शिकायत दर्ज कराती हैं.

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हालांकि इन्हें किसी भी पार्टी पर भरोसा नहीं है लेकिन आम नागरिक के तौर पर इनमें से ज्यादातर महिलाएं केजरीवाल को पसंद करती हैं. इनका कहना है कि केजरीवाल के आने के बाद बिजली और पानी का बिल कम हुआ है.
 
 
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जीबी रोड की सेक्स वर्करों का कहना है कि उनके काम को सिर्फ एक काम की नजर से देखा जाए. ये महिलाएं समान अधिकार की मांग कर रहीं हैं. इनका कहना है कि दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा सेक्स वर्कर महिलाओं को पैरा लीगल वालंटियर बनाया जाए ताकि वो आसानी से कोर्ट-कचहरी से संबंधित अपनी सुविधाएं उठा सकें और दूसरों को भी उनके अधिकार के प्रति सजग कर सकें.


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इनका कहना है कि पैरा लीगल वॉलंटियर बनाए जाने पर इन सेक्स वर्कर महिलाओं में हिंसा के मामले दर्ज कराने का हौसला मिलेगा और वो खुद को समाज का एक हिस्सा मान सकेंगी. इसके अलावा ये सरकार से अपने लिए 50 साल के बाद पेंशन, रिहैबिलिटेशन सेंटर और जीबी रोड की हालात को बेहतर बनाने की मांग कर रही हैं.
 
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