रूस ने दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन बनाने का दावा किया है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है कि इस वैक्सीन ने टेस्ट के सभी चरणों को सफलतापूर्वक पूरा किया है. हालांकि, Sputnik V नाम की यह वैक्सीन अभी तक अमेरिका जैसे कई बड़े देशों का भरोसा जीतने में नाकाम रही है. WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने भी रशियन वैक्सीन पर भरोसा नहीं दिखाया है.
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रशियन डिफेंस मिनिस्ट्री और गमालेया रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा विकसित यह
वैक्सीन दो वर्ष तक कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी को बढ़ा सकती है. यह
दावा खुद रूस की हेल्थ मिनिस्ट्री ने किया है. रूस की हेल्थ मिनिस्ट्री का
बयान आने के बाद कुछ देशों ने उसकी वैक्सीन में दिलचस्पी भी दिखाना शुरू कर
दिया है.
वियतनाम के एक लोकल अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक,
शुक्रवार को वियतनाम ने 'रशियन कोविड-19' की वैक्सीन खरीदने के लिए
रजिस्ट्रेशन करवाया है. वियतनाम शुरुआत में इस वैक्सीन के 50-150 मिलियन
डोज़ तक खरीद सकता है. रशिया की इस वैक्सीन को लेकर WHO ने कहा था कि यह
शीर्ष 9 कैंडिडेट्स में भी जगह नहीं बनाती है.
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वहीं, इजरायल की
हेल्थ मिनिस्ट्री भी इसे खरीदने के लिए जल्द फैसला ले सकती है. इजरायल का
कहना है पहले वो इस वैक्सीन का टेस्ट करेगा और अगर यह सही मायने में एक
अच्छी वैक्सीन है तो इसकी खरीदारी के लिए रूस से बातचीत की जाएगी.
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वियतनाम
और इजरायल के अलावा फिलिपींस भी रशियन वैक्सीन को खरीदने की होड़ में शामिल
होना चाहता है. हालांकि रूस की वैक्सीन को परखने के लिए फिलिपींस पहले एक क्लिनिकल
ट्रायल लॉन्च करेगा, जिसमें वैक्सीन की क्षमता का पता लगाया जाएगा. यह
ट्रायल अक्टूबर में शुरू होगा. अगर वैक्सीन ट्रायल में सफल होती है तो
अप्रैल, 2021 तक इसे आम लोगों तक पहुंचाया जा सकेगा.
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रूस के 3,000
से ज्यादा मेडिकल प्रोफेशनल्स पर हुआ एक सर्वे बताता है कि यहां के ज्यादातर
डॉक्टर्स भी इस वैक्सीन पर भरोसा नहीं दिखा रहे हैं. वैक्सीन का पर्याप्त डेटा
ना होने की वजह से वे इस सुपरफास्ट अप्रूवल से संतुष्ट नहीं हैं.
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'डॉक्टर्स
हैंडबुक' द्वारा 3,040 डॉक्टर्स और हेल्थ स्पेशलिस्ट पर किए गए इस सर्वे
में 52 प्रतिशत हेल्थ स्पेशलिस्ट ने इसे खुद पर टेस्ट करने से इनकार किया है.
जबकि सर्वे में शामिल सिर्फ 24.5 प्रतिशत लोग ही इससे वैक्सीनेट होने के लिए
तैयार हुए.
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रूस की वैक्सीन को लेकर अमेरिका भी ऐसी ही सोच रखता है.
अमेरिका ने रूस की आधी-अधूरी वैक्सीन को कभी गंभीरता से नहीं लिया.
अमेरिका के सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, 'रूस ने जैसी वैक्सीन बनाई
है, वैसी वैक्सीन का इस्तेमाल हम बंदरों पर करते हैं.'