इस्लाम के इतिहास में शिया और सुन्नी के बीच नफरत सबसे पुरानी और गहरी रही है. लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी के इस्तीफे को लेकर सऊदी अरब और ईरान के बीच विवाद और बढ़ गया है. इस पूरे घटनाक्रम को सुन्नी नेतृत्व वाले सऊदी अरब और शिया प्रभुत्व वाले ईरान के बीच जारी संघर्ष के रूप में देखा जा रहा है. लेबनान से लेकर, सीरिया, इराक और पाकिस्तान में हुए कई संघर्षों के पीछे शिया-सुन्नी के बीच का विवाद ही रहा है.
इस्लाम के नेतृत्व की लड़ाई को लेकर सुन्नी बहुल सऊदी अरब और शिया बहुल ईरान के बीच लड़ाई करीब 1400 साल पुरानी है. इस विवाद के पीछे का कारण धार्मिक मतभेद ही है. दोनों इस्लाम के अलग-अलग
पंथ को मानते हैं. ईरान में ज़्यादातर शिया मुसलमान हैं, वहीं सऊदी अरब
ख़ुद को एक सुन्नी मुस्लिम शक्ति की तरह देखता है. ये धार्मिक फूट दूसरे
खाड़ी देशों में भी दिखती है जहां सुन्नी और शिया मुसलमान हैं. कुछ देश
समर्थन के लिए ईरान की तरफ़ देखते हैं और कुछ सऊदी अरब की तरफ़. इन दो देशों की महात्वाकांक्षाओं ने इस खाई को लगातार गहरा किया है. इन दो देशों के बीच रिश्तों से ही यह तय होता है कि शिया और सुन्नी के बीच राजनीतिक संतुलन का आकार क्या होगा? सीरिया, इराक, लेबनान, बहरीन और यमन जैसे देशों की दिशा भी इसी से तय होती है.
मुस्लिम दुनिया शिया और सुन्नियों के बीच बंटी-
ईरान और सऊदी में भारी तनाव के पीछे शिया और सुन्नी प्रभुत्व है. सऊदी अरब की 90 फीसदी आबादी सुन्नी है जबकि ईरान की 95 पर्सेंट आबादी शिया है. शिया और सुन्नियों के बीच मतभेद का पुराना इतिहास है. दोनों के बीच सातवीं सदी से ही टकराव की स्थिति रही है. हाजियों को लेकर उठे विवाद पर शेख अब्दुल-अजीज ने कहा था, 'हमें समझना होगा कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं. ये मूलतः पारसी थे जिनकी मुसलमानों से शत्रुता रही है. खासकर इनकी सुन्नियों से दुश्मनी रही है.'
दुनिया भर के इस्लामिक देशों में शियाओं और सुन्नियों के बीच नफरत खत्म नहीं हो रही है. हाल के वर्षों में शिया और सुन्नियों के बीच खूनी संघर्ष बढ़े हैं. इसे सीरिया, इराक और यमन में साफ तौर पर देखा जा सकता है. इस मामले में सांप्रदायिक टकराव को लेकर करीब 14 देश आपस में जूझ रहे हैं.
शियाओं और सुन्नियों के बीच नफरत क्यों?
शियाओं और सुन्नियों के बीच टकराव और नफरत का इतिहास सातवीं सदी से ही है. इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद शिया और सुन्नियों में फूट 632 ईस्वी में पड़ी. पैगंबर मोहम्मद को इस्लाम धर्म का संस्थापक माना जाता है. पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर मतभेद शुरू हुआ कि अब इस्लाम का कैलिफ (खलीफा) कौन होगा. सुन्नियों का मानना था कि मोहम्मद साहब का उत्तराधिकार उनकी पत्नी के पिता और उनके करीबी दोस्त अबु बक्र को मिलना चाहिए. ये मानते थे कि इस्लाम का नेतृत्व अबु को ही करना चाहिए क्योंकि मुस्लिम समुदाय में उन्हें लेकर सहमति थी. शियाओं का मानना था कि मोहम्मद साहब ने अपने कजन और दामाद अली इब्न अबी तालिब को उत्तराधिकार बनाया था.
यह विवाद लंबे संघर्ष के रूप में तब्दील होता गया कि इस्लाम का उत्तराधिकारी कौन होगा. सुन्नियों का मानना था कि मुस्लिम नेताओं को उत्तराधिकारी उन्हें बनाना चाहिए जो योग्य है जबकि शियाओं का मानना था कि मोहम्मद साहब के खून से संबंध रखने वाले को यह जिम्मेदारी मिलनी चाहिए. हालांकि अली अंततः चौथे खलीफा बन गए. अली की हत्या कर दी गई और इनके बेटे को भी मार दिया गया. शिया मुस्लिम अली को एकमात्र प्रासंगिक कैलिफ मानते हैं. दूसरी तरफ सुन्नियों ने उमायाद, अब्बासिड और ऑटमन वंश के लोगों को प्रासंगिक कैलिफ माना.
इन दोनों ने शिया और सुन्नी नाम का चुनाव भी अपने हिसाब से किया. सुन्नी शब्द 'अहल अल-सुन्ना' मतलब 'लोगों की राह' से आया है. इनका कहना है कि मोहम्मद ने जो सबक और आदतें सिखाईं उन्हीं को वे फॉलो करते हैं. शिया शब्द 'शियत अली' मतलब अली का खेमा से आया है. इनका मानना है कि इस मत का सीधा संबंध मोहम्मद के खून से है.
आज की तारीख में 10 में से एक मुस्लिम शिया-
शिया इस्लाम की शुरुआत एक आंदोलन के रूप में इस्लामिक समुदाय के बीच खास रूप में शुरू हुआ था. आज की तारीख में ये अल्पसंख्यक हैं. प्यू रिसर्च के मुताबिक, दुनिया भर की मुस्लिम आबादी में शियाओं की तादाद 10 से 13 प्रतिशत तक है. 87 से 90 प्रतिशत सुन्नी हैं. प्यू ने पाया कि बहुसंख्यक शिया आबादी महज कुछ देशों में रहती है. ये देश हैं- ईरान, पाकिस्तान, इंडिया और इराक. ईरान की आबादी 77 मिलियन है और शियाओं की आबादी 96 पर्सेंट है. इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया की एक तिहाई शिया आबादी ईरान में रहती है. दूसरी तरफ मिस्र, सऊदी अरब और जॉर्डन सुन्नी प्रभुत्व वाले देश हैं.
मिडल-ईस्ट के कई ऐसे देश हैं जिनमें शिया और सुन्नी होने के कारण दीवार लगातार चौड़ी हो रही है. यमन में 40 पर्सेंट से ज्यादा आबादी शिया है. लेबनान में भी 45 से 55 पर्सेंट आबादी शियाओं की है. जनसंख्या हमेशा सत्ता नियंत्रण की बुनियाद नहीं बनती है. सीरिया की बहुसंख्यक आबादी सुन्नी है जबकि सीरियन प्रेजिडेंट बशर अल-अशद और उनके दिवंगत पिता शिया इस्लाम से ताल्लुक रखते हैं. बहरीन का नेतृत्व सुन्नी है जबकि बहुसंख्यक आबादी शियाओं की है. इराक में भी शियाओं की आबादी ज्यादा है पर देश का शासक सद्दाम हुसैन सुन्नी था.
सुन्नी और शिया इस्लाम की व्याख्या अलग-अलग तरीके से करते हैं-
शियाओं को सुन्नियों के बीच दरार की तुलना क्रिस्चन चर्च के बीच कैथलिक और प्रोटेस्टेंट से की जाती है. हालांकि यह अपूर्ण तुलना है लेकिन इस राह के आधार पर समझा जा सकता है. दोनों में एक ही स्थिति है कि एक ही धर्म में व्याख्या के आधार पर दो पंथों का जन्म हुआ.
इसी तरह इन दोनों के तर्कों और सिद्धांतो में मतभेदों के कारण राजनीतिक
हिंसा को जमीन मिली. शिया और सुन्नी दोनों कुरान को कबूल करते हैं. इसके
साथ ही दोनों मोहम्मद पैगंबर के बारे में बुनियादी बातें सिखाते हैं. दोनों
की परंपराएं भी एक हैं. दोनों रमजान में रोजा रखते हैं. मक्का दोनों
के लिए पवित्र स्थान है.
हालांकि दोनों के बीच इस्लाम के अनुसरण करने में में बुनियादी फर्क है. सुन्नी इस्लामिक स्क्रिप्चर की व्याख्या पर फोकस रहते हैं और उसी के आधार पर रुख करते हैं जबकि शिया धार्मिक नेताओं के मार्गदर्शन का ही अनुसरण करते हैं.