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मोदी से कम नहीं है राहुल गांधी के लिए साल 2019 की चुनौती

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2018 में पार्टी को जीत की उम्मीद जगाई है. ऐसे में नये साल बड़ी चुनौतियां है. लोकसभा चुनाव में उनका मुकाबला नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेता से हैं. इसके अलावा विपक्ष को एकजुट करने की बड़ी चुनौती हैं, जो राहुल के लिए किसी अग्नीपरीक्षा से कम नहीं है.

मनमोहन सिंह और राहुल गांधी (फोटो-twitter) मनमोहन सिंह और राहुल गांधी (फोटो-twitter)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 01 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 11:42 AM IST

देखा जाए तो देश के सियासी पटल पर 2018 में सबसे ज्यादा उभार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनीतिक करियर में आया है. एक के बाद एक लगातार चुनाव में हार के बाद 2018 में राहुल गांधी के हाथ कई सफलता लगी. मोदी के होम पिच गुजरात में कड़ी चुनौती और उसके बाद कर्नाटक का सियासी दांव और साल के अंत आते-आते उत्तर भारत के तीन बड़े राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की ताजपोशी से पार्टी समर्थकों में एक उम्मीद जगाई है. लेकिन अब साल नया है और चुनौतियां भी उससे बड़ी है. साल के आगाज के साथ ही 2019 की रणभूमि सज चुकी है, जहां सीधे मुकाबला मोदी बनाम राहुल है.

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सबसे बड़ी सियासी जंग

कांग्रेस पार्टी पहली बार राहुल गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव के सियासी रण में उतरेगी. राहुल गांधी के लिए 2019 ठीक वैसा ही निर्णायक साल साबित होने वाला है, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया है. कांग्रेस इतने भी सांसद नहीं जीत पाई थी कि वह प्रतिपक्ष की कुर्सी भी पा सके.

करीब तीन दशक से कांग्रेस पार्टी बीजेपी की एक खास तरह की राजनीति से मुकाबला कर रही है. हालांकि कांग्रेस इस दौरान कई बार सत्‍ता में रही, लेकिन सबसे अहम बात यह है कि वह एक बार अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी. मोदी के सत्ता में आने के बाद एक के बाद एक राज्‍य  हाथ से खिसकते गए. 1990 के राम मंदिर आंदोलन से लेकर 2014 की मोदी लहर और उसके बाद 2019 तक कांग्रेस को बीजेपी से ही टक्‍कर लेनी है. हालांकि, राहुल गांधी के हाथों में पार्टी की कमान आने के बाद उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह को अपनाया है. बावजूद इसके 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी का सारा दारोमदार राहुल के कंधों पर हैं.

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विपक्ष को एकजुट करने की चुनौती

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष को जोड़कर रखने की है. हाल ही में राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस को तीन राज्यों में जीत भी मिली है, जिससे उनके हौसले जरूर बुलंद होंगे. लेकिन बीजेपी को 2019 में मात देना इतना भी आसान नहीं है. यही वजह है कि राहुल विपक्षी एकता की बात लगातार कर रहे हैं, लेकिन बसपा, सपा टीएमसी जैसे दल अब भी उनके साथ आने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. इसके अलावा केसीआर गैर- कांग्रेस और गैर- बीजेपी दलों का गठबंधन बनाने में जुटे हैं. इन सबके बीच राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष को अपने नाम पर साथ लाने की है.

हालांकि, राहुल गांधी खुलकर कह चुके हैं कि वो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. लेकिन महागठबंधन में उनके नाम पर भी सबकी सहमति नहीं है. ऐसे में उनके पीएम बनने का सपना तभी पूरा हो सकता है, जब कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाए या कांग्रेस के पास इतनी सीटें हों कि अन्य विपक्षी पार्टियों के पास सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन करने के सिवा कोई रास्ता न बचे. ऐसे में 2019 में राहुल की सियासत की असली परीक्षा होगी.

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लोकसभा ही नहीं विधानसभा चुनाव जीतना होगा

साल 2019 में लोकसभा चुनाव ही नहीं बल्कि कई महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. इस साल आंध्र प्रदेश, हरियाणा, जम्मू- कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होने हैं. महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा ऐसे राज्य हैं .2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इन तीनों राज्यों को कांग्रेस को करारी मात देकर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.

ऐसे में राहुल के लिए एक बार इन तीनों राज्यों को वापस पाने की चुनौती है. कांग्रेस महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान को फतह करना चाहती है. वहीं, हरियाणा में कांग्रेस अकेले दम पर बीजेपी से मुकाबला करने की जद्दोजहद में है.

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