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दुनिया साल 2018 को अलविदा कहने जा रही है और यह साल भी अपने पीछे कुछ यादें छोड़कर जा रहा है. लेकिन, इस साल की कई ऐसी यादें भी हैं, जिन्होंने पूरे देश को दहला दिया. दरअसल इस साल में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें कहीं प्रकृति तो कहीं अपराधिक प्रवृति की वजह से लोगों के आंखों में आंसू ला दिए. आइए जानते हैं वो कौन-कौन सी घटनाएं हैं...
पूरे देश ने महसूस की भीमा कोरेगांव हिंसा की तपिश
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 को हिंसा भड़क उठी थी जिसमें एक शख्स की जान चली गई. दलितों और सवर्णों से जुड़ा मामला होने के कारण पूरे महाराष्ट्र में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे और देश के कई हिस्सों में इसकी तपिश महसूस की गई थी. भीमा कोरेगांव महाराष्ट्र के पुणे जिले में है. 200 साल पहले यानी 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को कोरेगांव में हरा दिया था. पेशवा सेना का नेतुत्व बाजीराव II कर रहे थे. बाद में इस लड़ाई को दलितों के इतिहास में एक खास जगह मिल गई. बीआर अम्बेडकर को फॉलो करने वाले दलित इस लड़ाई को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद की लड़ाई नहीं कहते हैं. दलित इस लड़ाई में अपनी जीत मानते हैं. साल 2018 इस युद्ध का 200वां साल था. ऐसे में इस बार यहां भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जमा हुए थे. जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इस साल के लिए यहां पर पुलिस ने पहले से घेराबंदी कर रखी है. कई नेताओं को गिफ्तार किया गया है. भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को मुंबई में नजरबंद कर दिया गया है.
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कठुआ गैंगरेप, बच्ची से दरिंदगी जान भर आईं थीं आंखें
कठुआ गैंगरेप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. यहां पर 8 साल की बच्ची से गैंगरेप का आरोप था. खानाबदोश बकरवाल मुस्लिम समुदाय की एक बच्ची 10 जनवरी को अपने घर के पास से लापता हो गई थी और एक हफ्ते के बाद उसका शव उसी इलाके में मिला था. गांव के ही एक मंदिर में एक हफ्ते तक उसके साथ कथित तौर पर 6 लोगों ने बलात्कार किया. पीड़िता को नशीला पदार्थ देकर उसके साथ कई बार दरिंदगी की गई थी. यह मामला इतना उछला कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतेरस को कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मामले को ‘भयावह’ करार देते हुए इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले आरोपियों को सजा देने की अपील करनी पड़ी. पीएम मोदी ने इस मामले पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा था कि यह देश के लिए ‘शर्मनाक’ है उन्होंने कहा था कि ‘मैं देश को यह आश्वासन देना चाहता हूं कि कोई अपराधी बख्शा नहीं जाएगा. न्याय होगा. हमारी बेटियों को इंसाफ मिलेगा.’
मुजफ्फरपुर रेप कांड जिससे हिल गया था पूरा देश
मुजफ्फरपुर के 'सेवा संकल्प एवं विकास समिति' नाम के बालिका गृह में रह रही लड़कियों के साथ शारीरिक शोषण का खुलासा हुआ था. यह खुलासा तब हुआ था जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने मई (2018) में इस बालिका गृह का सोशल ऑडिट किया था. इसके बाद लड़कियों का मेडिकल कराया गया. 21 लड़कियों की मेडिकल रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि इनमें से 16 लड़कियों के साथ बालिका गृह में बलात्कार हुआ था. गिरफ्तार किए गए आरोपियों में सेवा संकल्प एवं विकास समिति के इस बालिका गृह के संचालक बृजेश ठाकुर और विनीत कुमार शामिल हैं. इन दोनों के अलावा बालिका गृह में काम कर रही 7 महिलाओं को भी गिरफ्तार किया गया है. एक लड़की ने यह भी आरोप लगाया था कि उसकी सहेली की हत्या कर शव हॉस्टल परिसर में ही दबा दिया गया. इसके बाद पुलिस ने बालिका गृह के अंदर खुदाई कराई हालांकि कुछ बरामद नहीं हो पाया. इसमें कई राजनीतिक हस्तियों के नाम आए थे.
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मीटू की आंच में कई बड़े झुलस गए
'मी टू' अभियान (MeToo Campaign) अमरीका से शुरू हुआ था लेकिन इस कैंपेन ने भारत के कई लोगों का सच बाहर ला दियाजिसका खमियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा. भारत में मी टु की शुरुआत बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने की, तनुश्री का कहना है कि, 2008 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान नाना ने उन्हें गलत तरीके से छूने की कोशिश की थी. नाना ने बाकी कोरियोग्राफर को साइड करते हुए खुद उन्हें डांस सिखाना शुरू कर दिया था. उनके साथ इंटीमेट सीन देने के लिए जबरदस्ती भी की थी. नाना पाटेकर का कहना था कि ऐसा कुछ नहीं था लेकिन तनुश्री ने उनके खिलाफ केस दर्ज करा दिया. इसके बाद दूसरे लोगों पर इस तरह के आरोपों का सिलसिला चल पड़ा. इनमें विकास बहल, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खैर, जुल्फी सुईद, आलोक नाथ, सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य, तमिल राइटर वैरामुथु और सुहेल सेठ जैसे प्रमुख लोग शामिल हैं. अगर देखा जाए तो मी टु के सबसे बड़े शिकार केंद्र सरकार में मंत्री एम. जे. अकबर हुए. एक महिला पत्रकार के आरोप लगाने के बाद उन पर कई लोगों ने आरोप लगाए इसके बाद मोदी सरकार से एम. जे. अकबर की छुट्टी हो गई.
बुराड़ी कांड आखिर एकसाथ 11 लग कैसे कर सकते हैं आत्महत्या
दिल्ली के बुराड़ी में हुई घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इसमें एक ही परिवार के 11 लोग फांसी के फंदे से लटके मिले थे. मीडिया में यह केस सुर्खियों में रहा था. कयास लगाए जा रहे थे कि इन लोगों ने खुद आत्महत्या की है या इन्हें मारकर लटका दिया गया है. इसकी केस को सॉल्व करने के लिए सीबीआई की भी मदद ली गई. सीबीआई ने पुलिस को जो साइकोलॉजिकल अटॉप्सी की रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक परिवार के सदस्य आत्महत्या नहीं करना चाहते थे. सभी 11 लोगों की जान अनुष्ठान के दौरान हादसे में हो गई. दिल्ली पुलिस की अभी तक की तफ्तीश भी यही इशारा कर रही है. साइकोलॉजिकल अटॉप्सी के तहत परिवार और रिश्तेदारों से बातचीत की गई. मेडिकल रिकॉर्ड देखे गए. उसके बाद ही इस निर्णय पर पहुंचा गया.पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि परिवार का सदस्य ललित चूंडावत अपने दिवंगत पिता की तरफ से निर्देश मिलने का दावा करता था और उसी हिसाब से परिवार के अन्य सदस्यों से कुछ गतिविधियां कराता था. सूत्रों के अनुसार उसने ही परिवार को ऐसा अनुष्ठान कराया जिसमें उन्होंने अपने हाथ-पैर बांधे तथा चेहरे को भी कपड़े से ढक लिया. चूंडावत परिवार के ये 11 सदस्य बुराड़ी स्थित घर में मृत मिले थे. अभी भी ठीक-ठीक यह नहीं कहा जा सकता कि आखिर उस रात हुा क्या था. क्योंकि उस रात का कोई गवाह नहीं है.
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एप्पल के एरिया मैनेजर को लखनऊ में कॉन्स्टेबल ने मार दी थी गोली
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक पुलिस कॉन्स्टेबल ने एप्पल के एरिया मैनेजर की गोली मारकर हत्या कर दी. मैनेजर अपनी महिला सहकर्मी को छोड़ने कार से जा रहे थे. दावा किया गया कि पुलिस चेकिंग के दौरान मैनेजर ने अपनी SUV रोकने से पर इनकार कर दिया था. घटना रात के 1.30 बजे लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन इलाके में हुई. SUV के चालक की पहचान विवेक तिवारी के रूप में हुई. मामला मीडिया में उछलने के बाद दोनों पुलिसवालों पर केस दर्ज कर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. एसपी क्राइम की निगरानी में एसआईटी गठित कर दी गई. इस मामले में हुई जांच में सामने आया है कि पुलिसवाले ने एप्पल के मैनेजर को जानबूझकर गोली मारी है. हालांकि उसने बताया था कि युवक ने उसकी बाइक को टक्कर मारी थी लेकिन जांच में ऐसा कुछ नहीं मिला. बढ़ते विरोध के बीच सीएम भी विवेक तिवारी की पत्नी से मिले थे और उन्हें सरकारी नौकरी, सरकारी आवास और नगद सहायता दी थी.
सबरीमाला विवाद, सुप्रीम आदेश के बाद भी नही घुस पाईं महिलाएं
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि किसी को मंदिर परिसर में जाने से नहीं रोका जा सकता. लेकिन सबरीमाला को मानने वालों ने झंडा बुलंद कर लिया कि कोर्ट का फैसला आस्था के खिलाफ है और वह किसी भी शर्त पर इस उम्र की महिलाओं को मंदिर में नहीं घुसने देंगे. श्रद्दालुओं का मानना है कि रजस्वला महिलाओं को मंदिर में जाने से रोकने के नियम सैकड़ों वर्षों से हैं और सभी को इस परंपरा का पालन करना चाहिए. विवाद 2006 में शूरू हुआ था जब मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं और वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया है, इसके बाद कन्नड़ ऐक्टर प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दावा किया था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज हुए, उन्होंने कहा था कि वह प्रायश्चित करना चाहती हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने कहा था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां व महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर खत्म हो चुका हो. मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर खूब बवाव हुआ, भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख ने भी यहां पहुंचने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो पाईं. बीजेपी ने इसे आस्था का सवाल बना लिया और सचिवालय तक मार्च किया.
एससी-एक्ट के विरोध में देशभर में हुई थी लामबंदी
एससी-एसटी एक्ट में मामला दर्ज होने के बाद फौरन गिरफ्तारी का कानून में प्रावधान था. इसके खिलाफ सवर्णों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को कैंसल करते हुए कहा कि बिना जांच पड़ताल के गिरफ्तारी नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा. शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं. कई पार्टियों के विरोध के चलते मोदी सरकार ने इसमें अमेंडमेंट कर दिया और प्रावधान बना दिया कि इसे मूल रूप में बहाल किया जाता है. इसके खिलाफ सवर्णों ने भारत बंद का आह्वान किया. मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भारत बंद के दौरान बड़े स्तर पर तोड़फोड़ हुई. एमपी और बिहार में आंदोलन बहुत ही उग्र हो गया. दलित संगठनों ने भी इसके विरोध में भारत बंद का आह्वान किया.
दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर घमासान, पुलिस से भिड़े किसान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने सरकार से मांग की थी कि उनका कर्ज माफ किया जाए. गन्ना बकाए का भुगतान कराया जाए. एनजीटी ने 10 साल से पुराने जिन डीजल वाहनों पर रोक लगाई है उनसे उन्हें राहत दी जाए. इसी तरह की कई अन्य मांगों पर जब सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की तो किसानों ने हरिद्वार से मार्च निकाला जो दिल्ली पहुंचना था. किसानों का मार्च धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी. पुलिस ने किसानों को गाजियाबाद में रोक दिया. योगी आदित्यनाथ ने किसानों से बात करने के लिए एक प्रितनिधिमंडल भेजा लेकिन बात नहीं बन पाई. दिल्ली पहुंचने के प्रयास में किसानों और पुलिस के बीच जमकर मुठभेड़ हुई. किसानों को पीछे हटाने के लिए पुलिस ने वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया. बुजर्ग किसानों की पुलिस से भिड़ंत अखबारों के पहले पन्ने की खबर बनी. हालांकि भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत और सरकार के बीच बातचीत के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया लेकिन ऐसा क्यों हुआ यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया.
महाराष्ट्र में किसानों के महामार्च ने खींचा था ध्यान
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों लागू करवाने, एमएसपी पर कानून बनाने और जमीनों पर हक की मांग को लेकर तकरीबन 20000 किसानों ने मुंबई में मार्च निकाला. उन्होंने आरोप लगाया कि 6 महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने उनकी मांगें पूरी नहीं की. यहां भी सरकार ने उन्हें आराम से मुंबई तक आने दिया. आजतक के प्रोग्राम में आए महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फणनवीस ने दावा किया था कि उनमें से कोई किसान नहीं था. सभी आदिवासी थे और वे अपनी जमीन पर खेती करने का हक चाहते थे. उन्हें वह अधिकार दे दिए गये इसलिए वे वापस चले गए. दूसरी ओर विपक्षी दलों का कहना था कि यह सोची समझी रणनीति के तहत किया गया था. विदर्भ, अहमदनर के किसानों ने पूणे से कूच किया था और ठाणे में डेरा डालकर मुंबई पहुंच गए थे. विपक्षी दलों का कहना था कि एक स्क्रिप्ट के तहत किसानों की मांगें मान ली गईं और उन्हें शांति से लौटा दिया गया.
केरल में बाढ़ ने किया बड़ा नुकसान, पूरे देश से मिली मदद
अगस्त में केरल में हुई मूसलाधार बारिश ने प्रदेश की बुनियाद हिलाकर रख दी. सेना को मदद के लिए बुलाना पड़ा. पूरे देश के लोग भी मदद के लिए आगे आए. बाढ़ से 2000 से ज्यादा घरों को नुकसान पहुंचा और सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी. तकरीबन एक लाख लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी. पीएम मोदी और गृहमंत्री ने केरल के सीएम विजयन से बात की और हर संभव मदद का आश्वासन दिया. केरल में सबसे ज्यादा प्रभाव तीन जिलों मयप्पुरम, इडुक्की और तिरुवनंतपुरम में पड़ा. एनडीआरएफ की टीमों ने कई लोगों को बचा लिया. कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट को भी बंद करना पड़ा. दरअसल नदियों के बढ़ते जलस्तर के कारण पूरे राज्य के 33 बांधों के गेट खोल दिए गए. इसलिए कई इलाकों को बाढ़ का सामना करना पड़ा.
तितली और गाजा तूफान
तितली और गाजा तूफान ने तमिलनाडु और गाजा में बड़ी तबाही मचाई तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के मुताबिक तूफान और बारिश 13 लोगों की मौत हो गई. गाजा तूफान के असर से हुए लैंडफॉल के दौरान वहां हवा की रफ्तार करीब 90-100 किमी प्रतिघंटा दर्ज की गई. तेज हवा और बारिश के कारण कई जगहों पर भारी नुकसान देखा गया. चेन्नई मौसम विभाग ने जानकारी दी थी कि गाजा समुद्र को पूरी तरह पार कर जमीन पर पहुंच जाएगा. इसके जमीन पर आने के साथ ही इसकी भीषणता समुद्र के ऊपर रहने के मुकाबले कुछ कम होगी और धीरे-धीरे इसमें बढ़ोतरी होगी. गाजा के खतरे को देखते हुए करीब 60 हजार लोगों को 331 राहत शिविरों में पहुंचाया गया. गाजा के डर से नागपटि्टनम, तिरूवरूर, कुड्डालोर और रामनाथपुरम सहित सात जिलों में सभी स्कूल-कॉलेजों में छुट्टी घोषित कर दी गई और सरकार ने निजी कंपनियों से अपने कर्मचारियों को जल्द वापस भेजने के लिए कहा है.
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