भारत और अमेरिका समेत पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं. इस बीच, वैज्ञानिकों ने राहत वाली खबर दी है. वैज्ञानिकों ने बताया है कि जिन्हें कोरोना संक्रमण एक बार हो चुका है, उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम से कम 6 महीने उन्हें कोरोना के अगले हमले से बचाएगी. ऐसा भी हो सकता है कि कोरोना का अगला हमला आपके शरीर पर कम असर डाले. इसके पीछे वजह ये है कि जिस तरह वायरस म्यूटेट हो रहा है. उसी तरह उससे लड़ने वाली हमारी एंटीबॉडीज की क्षमता भी बढ़ रही है. (फोटोः गेटी)
bioRxiv.org में प्रकाशित एक मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों को अपनी जांच के दौरान प्राथमिक तौर पर शानदार परिणाम मिले. वैज्ञानिकों को पता चला कि शरीर के अंदर मौजूद वह प्रोटीन्स जिन्हें एंटीबॉडी कहते हैं वो कोरोना वायरस से लड़ने की अपनी स्किल को सुधार रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, म्यूटेशन वाले कोरोना वायरस को भी ये एंटीबॉडी पहचान ले रहे हैं. (फोटोः गेटी)
खुशी की बात ये है कि अगर कोरोना वायरस म्यूटेट होकर यानी अपना रूप बदलकर भी शरीर पर दोबारा हमला करता है तो आपके शरीर में पहले से मौजूद कोविड-19 एंटीबॉडी उसे पहचान लेंगे. उसके साथ संघर्ष करेंगे. उसे आपके शरीर पर हावी नहीं होने देंगे. वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना संक्रमित लोगों के शरीर में वायरस के कुछ अंश बचे रह जाते हैं. जो अगले हमले के लिए शरीर के एंटीबॉडीज को तैयार करते हैं. (फोटोः गेटी)
इस स्टडी से यह भी पता चलता है कि आपके शरीर पर कोरोना वैक्सीन का असर कितने दिन तक रहेगा. इसका बेहद सीधा ये जवाब मिला है कि जितनी ज्यादा आपके शरीर की इम्यूनिटी ताकतवर रहेगी, उतने ज्यादा दिन तक कोई भी कोरोना वैक्सीन आपको बचाएगी. एंटीबॉडीज एसे इम्यून प्रोटीन होते हैं जो आपके शरीर पर होने वाले हमलों को रोकते हैं. (फोटोः गेटी)
किसी भी तरह के संक्रमण के दौरान किसी भी इंसान के शरीर में कई तरह के एंटीबॉडी बनते हैं. ये एंटीबॉडीज वायरस के अलग-अलग सतहों पर हमला करते हैं. ये ऐसा ही होता है जैसे आपका स्विस नाइफ. एक स्विस नाइफ से कितने काम होते हैं. ठीक उसी तरह एक एंटीबॉडी वायरस के अलग-अलग सतहों की जानकारी जमा करके उनपर हमला करते हैं. ये समय के साथ अपने दुश्मन को पहचान कर खुद को उससे लड़ने लायक करते हैं. (फोटोः गेटी)
स्टडी में एक बात स्पष्ट तौर पर सामने आई है कि कोरोना संक्रमित शख्स के शरीर में एंटीबॉडीज की फौज तैयार हो रही है. जो ज्यादा ताकतवर और क्षमतावान है. ये कोरोना वायरस के म्यूटेशन वाले हमले को रोकने के लिए भी कारगर है. एंटीबॉडी भी अपग्रेड हो रही हैं. क्योंकि शरीर के इम्यून सेल्स यानी प्रतिरोधक कोशिकाएं मेमोरी-बी सेल्स के साथ खून में घूम रही है. जैसे ही ये कोरोना वायरस का शरीर पर हमला करता है तुरंत एंटीबॉडीज की रैपिड रिसपॉन्स टीम काम पर लग जाती है. (फोटोः गेटी)
न्यूयॉर्क के रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजिस्ट जूलियो लोरेंजी ने बताया कि इस स्टडी का आखिरी नतीजा यही है कि शरीर में कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है. यह लंबे समय के लिए रहेगी भी. हम देख रहे हैं कि बी-सेल्स सर्वाइव कर रही हैं. एंटीबॉडीज संक्रमण के छह महीने बाद और ज्यादा ताकतवर हो रही हैं. (फोटोः गेटी)
जूलियो लोरेंजो ने कहा कि हमारी स्टडी में 87 कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों का अध्ययन किया गया है. हमने उनके पहले संक्रमण से लेकर छह महीने बाद तक स्टडी की है. अगर खून में एंटीबॉडी कम भी हो जाती हैं तो भी छह महीने बाद भी शरीर में इम्यून प्रोटींस दिखाई दे रहे हैं. खुशखबरी ये है कि मेमोरी-बी सेल्स सामान्य स्थिति में है. ये एंटीबॉडीज को विकसित होने में मदद कर रही हैं. (फोटोः गेटी)
साइंसन्यूज वेबसाइट के अनुसार अन्य अध्ययनों में भी ये बताया गया था कि मेमोरी-बी सेल्स संक्रमण के बाद छह महीने से ज्यादा समय तक शरीर में रह सकती हैं. पहले बताया गया था कि बी-सेल्स और टी-सेल्स खून में धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. इस प्रक्रिया में सालों लग सकते हैं. यानी शरीर की इम्यूनिटी कोरोना के खिलाफ लंबे समय तक बनी रहेगी. (फोटोः गेटी)
जूलियो की टीम ने स्टडी के दौरान पाया कि बी-सेल्स ने एंटीबॉडीज को अपग्रेड कर दिया है. अब कोरोना से रिकवर हो चुके लोगों के शरीर में ज्यादा बेहतर एंटीबॉडीज हैं जो रूप बदलकर आने वाले कोरोना वायरस को पहचान कर उससे लड़ने में सक्षम हैं. अब बदले हुए कोरोना वायरस के हिसाब से शरीर की एंटीबॉडीज भी बदल रही हैं. (फोटोः गेटी)