दक्षिणी नेपाल के एक गांव में स्थित गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल में लगने वाला मेला शुरू हो गया है. इस मेले में हजारों पशुओं की बलि दी जाती है. इस बार भी 30 हजार जानवरों की बलि दी गई है. दो ही दिन तक चलने वाले इस मेले के बाद गढ़ीमाई दुनिया का सबसे बड़ा बूचड़खाना बन गया.
दरअसल, काठमांडू से 100 किमी दूर बैरियापुर में स्थित गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल के बाद पशुओं का सामूहिक वध किया जाता है. यह उत्सव शक्ति की देवी गढ़ीमाई के सम्मान में आयोजित होता है. इसमें नेपाल के साथ ही भारत से लाखों लोग भाग लेते हैं. इस बार यह उत्सव मंगलवार और बुधवार को मनाया गया.
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद इस बार भी गढ़ीमाई के सम्मान में हजारों पशु मारे गए. चारों और जानवरों की लाशें ही दिखाई दी.
यहां जानवरों की बलि के खिलाफ पशु अधिकार कार्यकर्ता आवाज भी उठाते रहे हैं. इसके अलावा वहां के सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं, मगर आस्था के आगे इन सभी की अनदेखी की जाती है.
2009 के बाद लगातार मंदिर के संचालकों पर पशु बलिदान पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बढ़ा है. इसके ही वहां जानवर लेकर पहुंच जाते हैं और बलि देते हैं.
पांच साल में होने वाला यह उत्सव दुनिया का अकेला ऐसा आयोजन है जिसमें इतनी बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है.
अगस्त 2016 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को गढ़ीमाई मंदिर मेले में पशु बलि रोकने का निर्देश दिया था. इसके बाद उस साल महोत्सव की मुख्य समिति ने अदालत के आदेश का पालन किया था.
चूंकि यह उत्सव भारत और नेपाल के बॉर्डर पर ही होता है. इसलिए भारतीय लोग भी बड़ी संख्या में इस मेले में पहुंचते हैं और पशुओं की बलि देते हैं. (Photos:AP/Reuters)