भारत ने एक ऐसी सड़क बनाई है जो दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल रोड है. यानी यह दुनिया की सबसे ऊंची सड़क है जहां पर आप अपनी गाड़ी से जा सकते हैं. इस सड़क की खास बात ये है कि यहां से चीन की हर चाल पर निगरानी रखी जा सकेगी. सीमा पर तैनात हमारे जवानों को रसद और हथियार जल्दी पहुंचाए जा सकेंगे. आइए जानते हैं इस सड़क की खासियतों और इसके लोकेशन के बारे में...
भारत ने दुनिया की जो सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क बनाई है उसका नाम है माणा पास रोड (Mana Pass Road). यह सड़क उत्तरखांड के चमोली-गढ़वाल जिले में चीन सीमा के पास 18,192 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस दर्रे से ही चीन में स्थित मानसरोवर और कैलाश पर्वत जाने का मुख्य रास्ता भी है. इस सड़क के बनने के बाद चीन सीमा की तरफ भारत अब मजबूत स्थिति में आ गया है.
माणा पास रोड दुनिया की इकलौती सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क है जिसे ऊपर से नीचे की तरफ बनाया गया है. आमतौर पर पहाड़ों पर सड़क का निर्माण नीचे से ऊपर की ओर होता है. यह काम बेहद दुर्लभ था लेकिन बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) ने इसे पूरा कर दिखाया. पहले हेलीकॉप्टर से भारी रॉक कटिंग मशीनें और अन्य संसाधन को ऊपर दर्रे में पहुंचाया गया. इसके बाद वहां से सड़क बनाते हुए नीचे 64 किमी दूर माणा गांव तक पहुंचाया गया.
माणा दर्रा NH-58 का अंतिम छोर है. इसे माना ला, चिरबितया अथवा डुंगरी ला (Dungri La) के नाम से भी जाना जाता है. माणा दर्रा समुद्रतल से लगभग 5,545 मीटर तथा 18,192 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर के निकट स्थित है. माणा दर्रा उत्तराखंड के कुमाऊ श्रेणी में स्थित है. इस दर्रे से मानसरोवर तथा कैलाश की घाटी जाने का मुख्य मार्ग है.
माणा पास भारत को तिब्बत से जोड़ती हैं. इसे दुनिया का सबसे ऊंची परिवहन योग्य सड़क भी माना जाता है. माणा दर्रा सर्दियों के मौसम में 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है. माणा दर्रा, नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर माणा शहर से 24 किलोमीटर और उत्तराखंड से प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक तीर्थ बद्रीनाथ से 27 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है.
माना पास में बाईकर्स आना बेहद पसंद करते हैं. यह पर्यटकों के लिए बेहद सुंदर एवं शांत वातावरण वाली जगह हैं. कुमाऊं में प्राचीन काल में किन्नर, किरात और नाग लोग रहते थे. बाद में कुमाऊं में खस लोग आए और इन लोगों को पराजित कर यहां बहुत दिनों तक राज करते रहें. 9वीं सदी के आसपास कत्यूरी वंश ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया. यह वंश 1050 तक राज करता रहा. 1400 के लगभग चंद्रवंश के अधिकार में यह प्रदेश आया.
भारतीय रतनचंद, किरातीचंद, माणिकचंद, रूद्रचंद के पश्चात 17वीं शदी में बांजबहादुरचंद्र 1638-78 में राजा हुए. उन्होंने तिब्बत पर आक्रमणकर उसे अपना राज्या बना लिया. 18वीं सदी में चंद्रवंश की स्थिति इतनी नाजुक थी नेपाल के गोरखा राजाओं ने इस इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया. 1815 में अंग्रेजों ने इसे गोरखाओं से छीनकर भारत का अंग बना दिया.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ के अवसर पर महादेव का अपमान देखकर पार्वती ने कुमाऊं के इसी स्थान में ही अग्निप्रवेश किया था. कहा जाता हैं कि पांडव यहां से स्वर्ग की ओर गए थे.