शिव के अस्तित्व को लेकर वैज्ञानिकों में अक्सर बहस छिड़ी रहती है. नासा के हबल टेलिस्कोप से ली गई तस्वीरों में कई लोग यह दावा करते हैं कि उन्हें भगवान शिव दिखाई दिए हैं. वहीं, स्विट्जरलैंड में मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला के बाहर भगवान शिव की मूर्ति लगी है. ये नहीं पता कि इन बातों में कितना सच है. लेकिन विज्ञान को अक्सर भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता है. (फोटोः ईशा संस्थान)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के न्यूकलियर स्पेक्ट्रोस्कोपिक टेलिस्कोप ऐरे (NuSTAR) ने 2014 में एक नेबुला की तस्वीर ली. इसका नाम रखा गया हैंड ऑफ गॉड. भगवान के हाथ की तरह दिखता ये नेबुला पृथ्वी से 17 हजार प्रकाशवर्ष दूर है. विज्ञान की भाषा में इसे पल्सर विंड नेबुला कहते हैं. लेकिन लोगों ने इसे भगवान शिव का हाथ माना था. (फोटोः नासा)
इसी तरह 2017 में नासा के हबल टेलिस्कोप को अंतरिक्ष में अलग-अलग आकार के बादलों को समूह दिखाई दिया. यह त्रिशूल की तरह दिख रहा था. उस समय भी नासा की इस तस्वीर को भगवान शिव का त्रिशूल कहकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था. (फोटोः नासा)
2010 में नासा के हबल टेलिस्कोप में ने पृथ्वी से 7500 प्रकाशवर्ष दूर एक गैसों का एक गुबार देखा था. इस गुबार का नाम था- कैरिना नेबुला (Carina Nebula). ये बना था नवजात तारों के बनने से निकले गैसों की वजह से. लेकिन इसमें लोगों को जटाधारी शिव की तस्वीर दिखाई पड़ी थी. यह तस्वीर आज भी सोशल मीडिया पर वायरल की जाती है. (फोटोः नासा)
नासा ने एक स्टडी में बताया था कि पृथ्वी पर पहला डीएनए एक शिवलिंग से आया था. ये शिवलिंग पृथ्वी पर एक उल्कापिंड के साथ आया था. ये उल्कापिंड अलास्का में अगस्त 2011 में गिरा था. नासा के वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया तो पाया कि शिवलिंग के जरिए ही पृथ्वी पर पहली बार डीएनए आया था. (फोटोः नासा)
दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न (CERN) के बाहर नटराज की मूर्ति लगी है. जो जीवन के स्रोत को दर्शाती है. सर्न के वैज्ञानिकों का मानना है कि वो जो प्रयोग कर रहे हैं वह भगवान शिव के संहार करने के सिद्धांत पर आधारित है. यानी पहले संहार करो फिर निर्माण करो. इसीलिए सर्न प्रयोगशाला के बाहर तांडव करने भगवान शिव की मूर्ति लगी है. (फोटोः सर्न)
नासा के प्रयोग का नाम भी भगवान शिव के नाम पर. नासा के इस प्रोजेक्ट का नाम है- The SHIVA Project. यानी Spaceflight Holography in Virtual Apparatus. यह पर्यावरण और अंतरिक्ष में मौजूद बेहद सूक्ष्म कणों के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के अध्ययन के लिए बनाया गया था. (फोटोः नासा)