माउंट एवरेस्ट पर पड़ी बर्फ अब तेजी से खत्म हो रही है. पिछले 60 सालों में इसके दो ग्लेशियर रोंगबुक और खुंबुक ग्लेशियर में 260 फीट बर्फ पिघल गई है. जबकि इमजा ग्लेशियर में 300 फीट बर्फ पिघल चुकी है. पर्यावरणविदों की मानें तो यह बेहद खतरनाक स्थिति है. अगर इसी तरह से एवरेस्ट पर जमी बर्फ पिघलती रही तो अगले 100 सालों एवरेस्ट से बर्फ की चादरें दिखनी बंद हो जाएंगी. ये खुलासा हुआ है एक अमेरिकी जासूसी उपग्रह द्वारा कई दशकों से ली जा रही तस्वीरों के विश्लेषण से. (फोटोः रायटर्स)
इस उपग्रह से 1962 से 2018 तक करीब 8 लाख से ज्यादा तस्वीरें ली हैं. इस तस्वीरों का अध्ययन करने के बाद पता चला है कि एवरेस्ट और उसके आसपास बर्फ की चादरें तेजी से पिघल रही हैं. इस बारे में एक रिपोर्ट अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन की सालाना मीटिंग में रखी गई. (फोटोः रायटर्स)
1950 के दशक में अमेरिकी जासूसी अधिकारियों ने तय किया के वे आसमान से पूरे सोवियत यूनियन पर नजर रखेंगे. तब एक सीक्रेट उपग्रह जिसका नाम कोरोना था लॉन्च किया गया. 1960 में लॉन्च किए गए कोरोना सैटेलाइट ने 1972 तक काम किया. इस दौरान अमेरिकी जासूसी संस्था सीआईए, अमेरिकी वायुसेना और कुछ निजी कंपनियों ने मिलकर पूर्वी यूरोप और एशिया की तस्वीरें लीं. फोटो में 2 दशक पुरानी खुंबुक ग्लेशियर. (फोटोः फ्लिकर)
1995 तक ये मिशन टॉप सीक्रेट मिशन था. लेकिन इसके बाद इसकी तस्वीरें जारी करनी शुरू की गई. तब पता चला कि इतने सालों में कोरोना सैटेलाइट व उसके बाद भेजी गई सैटेलाइट्स ने करीब 8 लाख तस्वीरें ली हैं. इनमें हजारों तस्वीरें हिमालय की हैं. दो साल पहले ली गई खुंबुक ग्लेशियर की तस्वीर. (फोटोः फ्लिकर)
यूके में स्थित सेंट एंड्रूज यूनिवर्सिटी में जियोग्राफी और रिमोट सेंसिंग के लेक्चरर टोबियास बोल्श ने बताया कि हमने एवरेस्ट की तस्वीरों का अध्ययन किया. इसमें पता चला कि रोंगबुक, खुंबुक और इमजा ग्लेशियर पर जमी बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है. 2 दशक पहले ली गई रोंगबुक ग्लेशियर की फोटाे. (फोटोः फ्लिकर)
बोल्श ने बताया कि जब हमने पूरे इलाके की जांच की तो पता चला कि पिछले 60 सालों में एवरेस्ट के पूरे इलाके से हर साल औसतन 8 इंच बर्फ पिघल जाती है. अगर इसी गति से बर्फ पिघलती रही तो अगले 100 सालों में एवरेस्ट से 100 इंच बर्फ पिघल जाएगी. दो साल पहले ली गई रोंगबुक ग्लेशियर की फोटो. (फोटोः फ्लिकर)
इससे नुकसान यह होगा कि एवरेस्ट के ग्लेशियरों से निकलने वाला पीनेयोग्य पानी खत्म हो जाएगा. इससे चीन, तिब्बत, नेपाल को काफी नुकसान हो सकता है. सबसे ज्यादा नुकसान होगा माउंट एवरेस्ट पर आने वाले पर्वतारोहियों को जो अभी यह सोचते हैं कि इस जगह पर मजबूत बर्फ होगी लेकिन वहां पहुंचने पर उनके साथ कमजोर बर्फ से हादसे हो जाते हैं. (फोटोः गेटी)
टोबियास बोल्श ने बताया कि 1970 तक तो एवरेस्ट से बर्फ कम पिघल रही थी लेकिन 1980 के बाद से यहां के बर्फ पिघलने का दर बहुत तेजी से बढ़ा है. इसका सबसे बड़ा नुकसान नेपाल और चीन को होगा. दोनों देशों को पर्यटन के साथ-साथ पर्यावरणीय घाटा होगा. (फोटोः रायटर्स)
बोल्श बताते हैं इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग तो है ही. लेकिन माउंट एवरेस्ट पर हर साल बढ़ रही पर्वतारोहियों की संख्या भी इस नुकसान का बड़ा कारण है. एवरेस्ट पर जमा होता कचरा भी बर्फ पिघलने का एक कारण है. (फोटोः रायटर्स)