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क्या है ब्लैक वॉरंट, जिसके आते ही फंदे पर लटकेंगे निर्भया के दरिंदे

aajtak.in
  • 18 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 3:09 PM IST
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निर्भया गैंगरेप मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी अक्षय की फांसी की सजा पर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया जिसके बाद अब गैंगरेप के चारों दोषी मुकेश, पवन, अक्षय, विनय के फांसी की सजा का रास्ता साफ हो गया है. अब सबकी नजरें तीस हजारी कोर्ट पर टिकी हुई है कि आखिरकार वहां से इन दोषियों के लिए ब्लैक वारंट कब जारी होता है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिरकार ब्लैक वारंट होता क्या है.

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दरअसल ब्लैक वारंट पर दोषी को दी जाने वाली फांसी की सजा का वक्त लिखा होता है. उसी वक्त के हिसाब से कैदी को उसके सेल से बाहर निकाला जाता है. उसके इर्द-गिर्द 12 हथियारबंद गार्ड होते हैं. कई बार तो कैदी को बाकायदा कंधे से उठा कर ले जाया जाता है क्योंकि मौत के डर की वजह से उसके पैर तक कांप रहे होते हैं. कैदी को सेल से फांसी के तख्ते तक उसका चेहरा ढक कर ले जाया जाता है. ताकि उसके आस-पास क्या चल रहा है वो देख ना सके.

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ब्लैक वारंट जारी होते ही आजाद हिंदुस्तान में फांसी पाने वाले ये 58वें, 59वें, 60वें और 61वें गुनहगार होंगे. देश में पहली फांसी महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को हुई थी जबकि आखिरी यानी 57वीं फांसी 2015 में याकूब मेमन को दी गई थी.

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तिहाड़ जेल के तीन नंबर सेल में जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी है, उसी बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल हैं. डेथ सेल यानी वो जगह जहां सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें मौत की सज़ा मिली है. डेथ सेल में कैदी को अकेला रखा जाता है.

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24 घंटे में दोषी को सिर्फ आधे घंटे के लिए उसे बाहर निकाला जाता है टहलने के लिए. डेथ सेल की पहरेदारी तमिलनाडु स्पेशल पुलिस करती है. दो-दो घंटे की शिफ्ट में इनका काम सिर्फ और सिर्फ मौत की सजा पाए कैदियों पर नजरें रखने का होता है. ताकि वो खुदकुशी करने की कोशिश ना करे. इसीलिए डेथ सेल के कैदियों को बाकी और चीज तो छोड़िए पायजामे का नाड़ा तक पहनने नहीं दिया जाता.

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