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जिस गांव में बिजली की भी कमी, वहां WIFI के जरिए 300 साल पुरानी परंपरा से दुर्गा पूजा

aajtak.in
  • 19 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 10:19 AM IST
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झारखंड के औद्योगिक शहर बोकारो से 30 किलोमीटर की दूरी पर मारहरा गांव है. इस गांव में केवल 2000 हजार लोग रहते हैं. लगभग 700 बंगाली परिवारों के साथ, गांव में सबसे दुर्लभ दुर्गा पूजा होती है, जो 300 साल पुरानी परंपरा है. घोष परिवार द्वारा आयोजित की जाने वाली पूजा बेहद दुर्लभ मानी जाती है. जिसमें मूर्ति छऊ मुखौटों की तरह दिखाई देती है और यह क्षेत्र की एकमात्र पारंपरिक पूजा है.

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हालांकि, इस साल पूजा के आयोजन की संभावना कोरोना वायरस महामारी की वजह से कम ही लग रही थी. परिवार के कई सदस्य जो पूजा के आयोजन के लिए ज़िम्मेदार हैं, इस साल उनके इस गांव में आने की संभावना नहीं है. लेकिन परिवार अपनी शारीरिक अनुपस्थिति के बावजूद पूजा को व्यवस्थित तरीके से आयोजित करने के लिए एक ठोस बैकअप योजना के साथ आया.

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गांव, जो हर दूसरे दूरदराज के इलाके की तरह बिजली के मुद्दों और खराब नेटवर्क से ग्रस्त है, अपने पहले वाईफाई कनेक्शन की स्थापना को देखेगा. वरिष्ठ सदस्यों को इस वर्ष ऑनलाइन पूजा करने की अनुमति देने के लिए परिवार द्वारा वाईफाई कनेक्शन स्थापित किया जा रहा है.

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उस गांव के लिए जिसे दिन में 10 घंटे से भी कम समय के लिए बिजली मिलती है, और पहले पूजा करने के लिए एक जनरेटर का उपयोग किया जाता था, वाईफाई स्थापित करना एक प्रमुख तकनीकी बदलाव था.

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हमारे सहयोगी चैनल इंडिया टुडे से बात करते हुए उस परिवार की बहू प्रितिका दत्ता ने कहा, पूजा को ऑनलाइन करने के विचार के पीछे एक प्रमुख कारण था, “एक बार जब आप दुर्गा पूजा करना शुरू करते हैं, तो एक साल के लिए भी इसे छोड़ना संभव नहीं है. कई ग्रामीण साल भर हमारी पूजा के लिए तत्पर रहते हैं. कभी-कभी वे अपनी इच्छा पूरी होने के बाद प्रार्थना करना चाहते हैं. हमें महामारी की स्थिति के बावजूद पूजा का संचालन करने के लिए एक विचार के साथ आना पड़ा. ”

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घोष परिवार के सदस्यों ने गांव में पहली बार वाईफाई पहुंचाने के लिए स्वयं कार्य शुरू किया. वाईफाई लगाने के लिए 300 मीटर का तार बिछाया जाना था. उन्होंने वायरिंग की लागत, राउटर स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई. कोल इंडिया में काम करने वाले परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य प्रदीप कुमार घोष ने युवा पीढ़ी द्वारा की गई नई पहल का स्वागत किया है.

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उन्होंने कहा, "युवा पीढ़ी के लिए जगह बनाना बड़ों का काम है और हम एक कठिन परिस्थिति से गुजर रहे हैं. अगर वे इस विचार के साथ आए हैं, जहां पूजा नहीं होनी थी अब वहां एक समय पर सब पूजा कर पाएंगे. परिवार के सदस्यों, ग्रामीणों को सामाजिक एकजुटता महसूस होती है, कोई समस्या नहीं है. "
 

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