अफगानिस्तान पर हुए हवाई हमले के बाद तालिबान ने पाकिस्तान को चुनौती दी है और बदला लेने की बात कही है. इन सबके बीच यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ये तालिबान है क्या? और कैसे वो इतना ताकतवर बना और पाकिस्तान का दुश्मन बन बैठा.
तालिबान लड़ाकों की ये तस्वीर 14 अगस्त, 2024 को दक्षिण-पश्चिमी अफ़गानिस्तान के हेलमंद प्रांत के लश्कर गाह की है. यहां अफगानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिकों की वापसी की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मना रहे हैं. ( फोटो- एपी/ अब्दुल खालिक)
पाकिस्तान से पहले इनसे लोहा ले चुका है तालिबान
तालिबान का पाकिस्तान से पहले अमेरिका, नाटो सेना और अफगानिस्तान के पूर्व के शासन के साथ लंबा संघर्ष चला और आखिरकार उसने पूरे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया. आखिर किन लोगों को तालिबान कहा जाता है और इनका मकसद क्या है?
इस तस्वीर में अफगानिस्तान के सत्तारूढ़ तालिबान मिलिशिया के सैनिक अपने बंकर में अपने हथियारों और गोला-बारूद के साथ अपने कमांडरों से बगराम की अग्रिम पंक्ति में प्रतिद्वंद्वी सेना पर हमला करने के लिए संकेत मिलने का इंतजार कर रहे थे. ये अपदस्थ अफगानी सैन्य नेता अहमद शाह मसूद की सेना के खिलाफ हमला करने की तैयारी में थे, ताकि ताकि सलांग राजमार्ग को खाली किया जा सके, जो तालिबान द्वारा हाल ही में कब्जा किए गए अंतिम अफगान शहर मजार-ए-शरीफ की ओर जाता है. (फोटो - एएफपी /सईद खान )
रुसी सैनिकों की वापसी के बाद उभरा तालिबान
अगर तालिबान के बारे में पूरी जानकारी चाहिए तो हमें कुछ दशक पीछे जाना होगा. जब अफगानिस्तान से सोवियत रूस की सेना वापस जा रही थी. अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान के मदरसों में तालिबान का जन्म हुआ था.
ये तस्वीर इसी साल 14 अगस्त, 2024 को ली गई है. इसमें तालिबान लड़ाके काबुल, में अफगानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिकों की वापसी की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मनाते दिख रहे हैं. (फोटो- एपी /सिद्दीकुल्लाह अलीजई)
पाकिस्तान में पड़ी थी तालिबान की बुनियाद
पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र. वैसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा का अनुसरण करते हों. एक पश्तो आंदोलन के रूप में पाकिस्तान के धार्मिक मदरसों से तालिबान वजूद में आया. कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी.
इस तस्वीर में तालिबान लड़ाके 14 अगस्त, 2024 को काबुल में अफ़गानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिकों की वापसी की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मनाते हुए. ( फोटो- एपी /सिद्दीकुल्लाह अलीजई)
सऊदी अरब ने की थी आर्थिक मदद
तालिबान को खड़ा करने में सऊदी अरब ने काफी आर्थिक सहयोग किया था. शुरुआती दौर में तालिबान ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्तून इलाके में कट्टरपंथी धार्मिक कानून के साथ इस्लामिक शासन लागू करने को लेकर आंदोलन छेड़ा.
इस तस्वीर में तालिबान लड़ाके 14 अगस्त, 2024 को काबुल में अफ़गानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिकों की वापसी की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मनाते हुए. ( फोटो- एपी /सिद्दीकुल्लाह अलीजई)
ये था तालिबान का मकसद
शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है. शुरू-शुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने अफगानिस्तान में तालिबान को हाथो-हाथ लिया और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया.
इस तस्वीर में तालिबान लड़ाके 14 अगस्त, 2024 को काबुल में अफ़गानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिकों की वापसी की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मनाते हुए. ( फोटो- एपी /सिद्दीकुल्लाह अलीजई)
शुरुआत में अमेरिका ने भी किया था सहयोग
धार्मिक कट्टरता ने तालिबान की लोकप्रियता को बाद में खत्म कर दिया, लेकिन तब तक तालिबान इतना ताकतवर हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई. माना जाता है कि शुरुआती दौर में अफगानिस्तान में रूसी प्रभाव खत्म करने के लिए तालिबान को अमेरिका ने भी समर्थन दिया था.
ये तस्वीर 27 अगस्त, 2021 में काबुल हवाई अड्डे के बाहर हुए घातक हमलों के बाद पहरा दे रहे तालिबान लड़ाकों की है. काबुल के हवाई अड्डे पर उमड़ी अफगानों की भीड़ पर हमला किया गया था, जिससे हताशा का दृश्य तालिबान के कब्जे से भाग रहे लोगों को एयरलिफ्ट करने के अंतिम दिनों में भयावहता में बदल गया. (फोटो - एपी/पीटीआई)
आंतकियों को पनाह देने वाला बन गया तालिबान
9/11 के हमले ने अमेरिका का नजरिया तालिबान को लेकर बदल गया. क्योंकि अफगानिस्तान के पहाड़ी और कबाइली इलाकों में काबिज तालिबान ने ही अमेरिका और यूरोप विरोधी आतंकी गतिविधियों को संपोषित कर रहा था. अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों का संरक्षण करने और अमेरिका सहित यूरोप में आतंकी हमलों को प्रायोजित करने को लेकर अमेरिका खुद तालिबान के खिलाफ युद्ध में उतर गया.
इस तस्वीर में 31 अक्टूबर, 2001 को पेशावर के उत्तर-पूर्व में स्थित लगहारी में पाकिस्तानी कबायली पुरुष तालिबान के साथ लड़ाई में हिस्सा लेने से पहले अपनी बंदूकों के साथ पोज़ दे रहे हैं. ये सभी अमेरिका के खिलाफ तालिबान का साथ देने अफगानिस्तान जाने का इंतजार कर रहे थे. उग्र कट्टरपंथी इस्लामी नेता सूफी मोहम्मद के नेतृत्व में हज़ारों नाराज़ पाकिस्तानी कबायली लोगों ने तालिबान का साथ दिया था. (फोटो - रॉयटर्स/अज़ीज़ हैदरी )
2021 में पूरे अफगानिस्तान पर हो गया कब्जा
आफगानिस्तान, जिस पर तालिबान का कब्जा हो चुका था, वहां अमेरिकी सैनिकों ने काबुल-कंधार जैसे बड़े शहरों के बाद पहाड़ी और कबाइली इलाकों से तालिबान को खत्म करने का अभियान शुरू कर दिया. अमेरिकी और मित्र देशों की सेनाओं को 20 साल में भी सफलता नहीं मिली. खासकर पाकिस्तान से सटे इलाकों में तालिबान को पाकिस्तानी के समर्थन ने जिंदा रखा.
तालिबान के सदस्य की ये तस्वीर 15 अगस्त, 2023 को ली गई है. सभी अफगानिस्तान के काबुल में अमेरिकी दूतावास के पास एक सड़क पर काबुल के पतन की दूसरी वर्षगांठ पर खुशी मना रहे हैं. ( फोटो - REUTERS/Ali Khara)
ऐसे पाकिस्तान में ही सिर उठाने लगा तालिबान
आखिरकार 2021 में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान फिर से सिर उठाकर खौफ का नाम बनकर उभरा.जब अफगानिस्तान में तालिबान पूरी तरह से प्रभाव में आ गया तो पाकिस्तान की तहरीक - ए - तालिबान का भी प्रभाव बढ़ने लगा. एक बार फिर से पाकिस्तानी तालिबान ने अपने पुराने मकसद का हवाला देते हुए अपने ही देश के शासन और सेना के खिलाफ हमले शुरू कर दिये.
इस तस्वीर में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्र में सत्ताधारी तालिबान मिलिशिया के सैनिक अपने हथियारों और गोला-बारूद के साथ बंकर में बैठे हैं. तालिबान मिलिशिया अफगानिस्तान के आखिरी शहर मजार-ए-शरीफ पर कब्जा करने के बाद काबुल के उत्तर में अफगानी शीर्ष नेता और पूर्व रक्षा मंत्री अहमद शाह मसूद की सेना के खिलाफ हमला करने की तैयारी कर रहे थे. (फोटो- एएफपी / सईद खान)