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Beating Retreat: 300 साल पुराना है बीटिंग रिट्रीट का इतिहास, जानिए कब और कैसे शुरू हुई ये परंपरा

अमन कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:21 PM IST
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Beating Retreat Ceremony: हर साल 29 जनवरी को दिल्ली के विजय चौक पर तीनों सेनाओं के जवान आनंद और जोश से भर देने वाली धुनों के साथ कदमताल से समा बांधते हैं. इस समारोह को 'बीटिंग द रिट्रीट' कहा जाता है. इसी के साथ गणतंत्र दिवस के समारोह का समापन होता है. बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी सेना की वापसी का प्रतीक है. इस दौरान राष्ट्रपति सेनाओं को अपनी बैरकों में लौटने की इजाजत देते हैं. दुनिया के कई देशों में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी की परंपरा है. इसकी शुरुआत 17वीं सदी में ब्रिटेन से हुई थी. यानी बीटिंग रिट्रीट का इतिहास लगभग 300 साल पुराना है.

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बीटिंग द रिट्रीट का इतिहास

बीटिंग द रिट्रीट की शुरुआत 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड से हुई थी. तब इंग्लैंड के किंग जेम्स सेंकड ने अपने सैनिकों को ड्रम बजाने, झंडे डाउन करने और जंग खत्म होने के बाद की घोषणा करने के लिए एक परेड आयोजित करने का आदेश दिया था. उस समय इस सेरेमनी को 'वॉच सेटिंग' कहा जाता था. 

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शाम को वॉर जोन से पीछे हटने का सिग्नल

बीटिंग द रिट्रीट की परंपरा तब से चली आ रही है, जब सूर्यास्त के बाद जंग बंद हो जाती थी. जैसे ही बिगुल बजाने वाले पीछे हटने की धुन बजाते थे, वैसे ही सैनिक लड़ाई बंद कर देते थे और युद्ध भूमि से पीछे हट जाते थे. इसलिए सूर्यास्त के समय इवनिंग गन से एक फायर करने के साथ ही इस बीटिंग रिट्रीट समारोह का समापन होता था.

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भारत में बीटिंग रिट्रीट का इतिहास

भारत में 1950 के दशक में इसकी शुरुआत हुई थी. पहली बार साल 1952 में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन हुआ था. तब इसके दो कार्यक्रम हुए थे. पहला कार्यक्रम दिल्ली में रीगल मैदान के सामने मैदान में हुआ था और दूसरा लालकिले में हुआ था. तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट्स ने बड़े पैमाने पर बैंड के संगीतमय अनूठे समारोह को स्वदेशी रूप से विकसित किया. समारोह में राष्ट्रपति बतौर चीफ गेस्ट शामिल होते हैं, उनके आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है.

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कई देशों में बीटिंग रिट्रीट की परंपरा

सशस्त्र बलों द्वारा इस तरह का समारोह यूके, यूएस, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में भी आयोजित किया जाता है. 

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बीटिंग रिट्रीट में कौन-कौन रहा मौजूद?

समारोह में सशस्त्र बलों की सुप्रीम कमांडर और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी शामिल होने पहुंचीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शामिल हुए. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के अध्यक्ष हंगरी के साबा कोरोसी उपस्थित रहे.

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भारत के राष्ट्रपति, 'राष्ट्रपति के अंगरक्षकों' (पीबीजी) द्वारा अनुरक्षित घुड़सवार सेना में आते हैं. वेबसाइट के अनुसार, "जब राष्ट्रपति आते हैं तो पीबीजी कमांडर यूनिट को राष्ट्रीय सलामी देने के लिए कहते हैं, जिसके बाद भारतीय राष्ट्रगान 'जन गण मन' बजाया जाता है." बैंड के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है. इसी दौरान बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति लेते हैं. इसका मतलब होता है कि 26 जनवरी का समारोह पूरा हो गया. बैंड मार्च वापस जाते हुए 'सारे जहां से अच्छा' की धुन बजाते हैं.

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हर साल बजाया जाता है महात्मा गांधी का मनपसंद गीत

हर साल महात्मा गांधी के मनपसंद गीत 'Abide With Me' की धुन बजाई जाती है. Abide With Me को स्कॉटलैंड के कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में लिखा था. इसकी धुन प्रथम विश्व युद्ध में बेहद लोकप्रिय हुई. भारत में इस धुन को प्रसिद्धि तब मिली जब महात्मा गांधी ने इसे कई जगह बजवाया. हालांकि 2020 में एक विवाद के बाद इसे नहीं बजवाया गया था, लेकिन 2021 से फिर से बजवाया जाने लगा.

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इस साल क्या है खास?

भारत में इस साल बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में स्पेशल ड्रोन प्रस्तुति को भी शामिल किया गया है. जानकारी के मुताबिक, इसमें 3 हजार से ज्‍यादा ड्रोन्स ने हिस्सा लिया और रायसीना हिल के ऊपर आकाश को रोशन किया. वहीं, बैंड की प्रस्‍तुति 29 धुनों में दी गई.

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