पितृपक्ष के अंतिम दिन को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं. यह आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या के दिन होता है. यह आखिरी दिन होता है. सर्वपितृ अमावस्या पितरों के श्राद्ध का 15वां यानी सबसे अंतिम दिन होता है.
8 अक्टूबर, सोमवार को सर्व-पितृ अमावस्या है. मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं.
शास्त्रों के मुताबिक, जब पितरों की देहावसान तिथि अज्ञात हो तो पितरों की शांति के लिए पितृ विसर्जन अमावस्या को श्राद्ध करने का नियम हैं.
कैसे करें तर्पण-
तांबे के पात्र में गंगाजल लें. अगर गंगाजल उपलब्ध ना हों तो शुद्ध जल भी ले सकते हैं.
उसमें गाय का कच्चा दूध और थोड़ा काला तिल डालें.
अब उस पात्र में कुशा डालकर उसे मिलाएं.
स्टील का एक अन्य पात्र (लोटा) लें और उसे अपने सामने रखें.
दक्षिणाभिमुख होकर खड़े हो जाएं.
कुशा के साथ तांबे के पात्र के जल को स्टील के लोटे में धीरे-धीरे गिराएं, ध्यान रहे कि कुशा न गिरे.
जल को गिराते समय नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करें.
ॐ पितृ गणाय विद्महे जगत धारिण्ये धीमहि तन्नो पितरो प्रचोदयात्.
अंत में जरूरतमंदों को खाना खिलाएं.
अमावस्या तिथि आरंभ: 8 अक्टूबर 2018 के दिन 11:31 बजे.
अमावस्या तिथि समाप्त: 9 अक्टूबर 2018 के दिन 09:16 बजे.
ये है सर्वपितृ अमावस्या की तिथि और श्राद्ध का मुहूर्त-
कुतुप मुहूर्त: 11:45 से 12:31 तक.
रौहिण मुहूर्त: 12:31 से 13:17 तक.
अपराह्न काल: 13:17 से 15:36 तक.
सर्वपितृ अमावस्या पर क्या करें-
सर्व-पितृ अमावस्या के दिन तर्पण के बाद श्रद्धा से जरूरतमंदों को भोजन कराना चाहिए. शास्त्रों में इसका बहुत महत्व बताया गया है. परंपरा के अनुसार, श्राद्ध के बाद गाय, कौवा, अग्नि, चींटी और कुत्ते को भोजन खिलाया जाता है. इससे पितरों को शांति मिलती है और वे तृप्त होते हैं.
इस दिन किसी सात्विक और विद्वान ब्राह्मण को घर पर निमंत्रित करें और उनसे भोजन करने और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें. स्नान करके शुद्ध मन से भोजन बनाएं, लेकिन भोजन सात्विक होना चाहिए.
सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ अवश्य ही करें. साथ ही उसका पूरा फल पितरों को समर्पित करें.
इस दिन स्नान के बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए.
सर्वपितृ अमावस्या के दिन किसी गरीब और जरूरतमंद को भोजन कराने के साथ-साथ दान दक्षिणा भी देनी चाहिए.
शास्त्रों के अनुसार पीपल की सेवा और पूजा करने से हमारे पितृ प्रसन्न रहते हैं.
इस दिन स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें.
इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्व प्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दें.
इस मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें, ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः
श्राद्ध के आखिरी दिन शराब और मांस आदि से दूर रहें. रात में श्राद्ध कर्म
नहीं करना चाहिए. किसी दूसरे व्यक्ति के घर या जमीन पर श्राद्ध कर्म ना
करें. श्राद्ध कर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए.