तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 6 जुलाई को अपना 85वां जन्मदिन मनाया. पूरी दुनिया दलाई लामा को शांतिदूत के नाम से जानती है लेकिन चीन की आंखों में दलाई लामा हमेशा खटकते रहे हैं. बॉर्डर के अलावा दलाई लामा भी भारत और चीन के तनातनी की एक वजह रहे हैं. चीन और भारत के रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, ऐसे में दलाई लामा का जन्मदिन कई मायनों में अहम रहने वाला है. कई विश्लेषकों का मानना है कि भारत तिब्बती बौद्ध गुरु को बधाई संदेश देकर चीन पर कूटनीतिक दबाव बढ़ा सकता है.
कौन हैं दलाई लामा?
दलाई लामा के बचपन का नाम ल्हामो थोंडुप था, बाद में उनका नाम तेंजिन ग्यात्सो रखा गया. लामा का मतलब गुरु होता है. लामा अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं. तेंजिन ग्यात्सो चौदहवें दलाई लामा हैं और दुनिया भर के सभी बौद्धों का मार्गदर्शन करते हैं. तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को बौद्ध धर्मगुरुओं का अवतार माना जाता है. दलाई लामा 1959 से भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं.
चीन को क्यों चुभते हैं दलाई लामा?
भारत और चीन के रिश्ते कभी भी बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. मजबूत व्यापारिक संबंध को छोड़ दें तो दोनों देशों में समय-समय पर सीमा विवाद होते रहे हैं. वहीं सीमा विवाद की बात करें तो अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश में तवांग के
क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद रहे हैं. दरअसल चीन इन दोनों
क्षेत्रों पर अपना दावा पेश करता है और उसका कहना है कि ये दोनों दक्षिणी
तिब्बत का हिस्सा हैं.
1950 में चीनी सेनाओं द्वारा तिब्बत पर बलपूर्वक कब्जा करने के बाद, तिब्बती बौद्ध नेता दलाई लामा 1959 में अपने हजारों शिष्यों के साथ भारत चले आए. तब से लेकर आज तक भारत ने उन्हें यहां शरण दी हुई है. चीन को डर सताता रहता है कि कहीं दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बती आजादी के लिए आंदोलन ना कर दें.
भारत के साथ सीमा विवाद ही नहीं, दलाई लामा का अस्तित्व भी चीन को हमेशा खटकता रहता है. चीन दलाई लामा को एक खतरनाक अलगाववादी मानता है. दलाई लामा ने 1974 में तिब्बती स्वतंत्रता के लिए अपना समर्थन देने का आह्वान किया था. चीन दलाई लामा की तवांग यात्रा पर भी आपत्ति जताता रहा है. इसके अलावा, तिब्बत के आध्यात्मिक नेता का जन्मदिन भारत में एक उत्सव की तरह मानने का भी चीन विरोध करता रहा है. पिछले साल 11 चीनी नागरिकों ने लद्दाख क्षेत्र में
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास एक बड़े बैनर के जरिए भारत में दलाई
लामा के जन्मदिन समारोह का विरोध किया था.
दलाई लामा को भारत में शरण क्यों लेनी पड़ी?
7 अक्टूबर 1950 को, माओत्से तुंग के नेतृत्व वाली चीनी कम्युनिस्ट सरकार के तहत पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने चामदो के तिब्बती क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया था. 1951 में तिब्बत की सरकार ने 17 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें बौद्ध धर्म और तिब्बती स्वायत्तता को बनाए रखने का वादा किया गया और तिब्बत पर चीन की संप्रभुता की पुष्टि की गई. उस समय दलाई लामा काफी युवा थे.
1959 में, चीन के समाजवादी भूमि सुधारों और लोगों पर सैन्य कार्रवाई की वजह से एक बार फिर तिब्बती विद्रोह का जन्म हुआ. इस प्रतिरोध को दबाने के लिए चीन ने एक ऑपरेशन चलाया, जिसमें हजारों तिब्बतियों की जान चली गई. तिब्बतियों ने चीनी सैनिकों द्वारा दलाई लामा को कब्जे में लेने से रोकने के लिए उनके निवास स्थान को चारों तरफ से घेर लिया और रात के अंधेरे में आध्यात्मिक नेता को तिब्बत से बाहर भेज दिया गया.
इसके बाद दलाई लामा नेपाल के रास्ते भारत पहुंचे. उन्हें जवाहरलाल नेहरू की तत्कालीन सरकार ने शरण देने का फैसला किया. भारत सरकार ने चीन के उत्पीड़न से भागकर आए अन्य कई तिब्बतियों को भी आश्रय दिया.
चीन हमेशा से तिब्बत को लेकर भारत के किसी भी तरह के समर्थन को लेकर कड़ी
आपत्ति जताता रहा है. 2016 में जब तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति प्रणव
मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में दलाई लामा से मुलाकात की थी तो उस वक्त भी
चीन ने विरोध किया था. चीन ने कहा था कि दलाई लामा के साथ मुलाकात बीजिंग
के हितों का अपमान करना है. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि
कार्यक्रम पूरी तरह से गैर-राजनीतिक प्रकृति का था.
रणनीतिक मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने कहा है कि दलाई लामा को शुभकामनाएं देने का ये सबसे सही वक्त है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्विटर पर कई हस्तियों को उनके जन्मदिन पर बधाई संदेश देते रहे हैं. ऑब्जर्वर रिसर्चर फाउंडेशन (ओआरएफ) के शोधकर्ता डेरेक ग्रॉसमैन कहते हैं, चीन एलएसी पर असंतुष्ट है और स्थिति को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश कर रहा है. बीजिंग दलाई लामा को भारत से मिलने वाले समर्थन को लेकर भी परेशान रहता है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने में वक्त लग सकता है, ऐसे में तिब्बत जैसे विवादित क्षेत्रों में भारत के पक्ष में माहौल बनाने से भारत की स्थिति कुछ हद तक मजबूत हो सकती है. मुंबई के थिंकटैंक गेटवे हाउस के दिब्येश आनंद ने कहा, भारत को तिब्बती समुदाय के बीच रिएक्टिव नहीं बल्कि प्रो-एक्टिव होना चाहिए- हिमालय के सीमाई इलाकों में भारत के लिए यही असली सुरक्षा गारंटी है.