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वैज्ञानिकों ने बताया था- दुनिया के लिए चीन में मौजूद है 'टाइम बम'

aajtak.in
  • 16 जून 2020,
  • अपडेटेड 7:50 AM IST
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कई बार ऐसा होता है जब सुरक्षा को लेकर चेतावनी दी जाती है तो उस पर अधिक अमल नहीं होता. फिर घटना के बाद सबकी नजर उस पर पड़ती है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कोरोना वायरस को लेकर भी ऐसा हुआ था.

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द अटलांटिक में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी रिव्यूज में अक्टूबर 2007 में ही वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस को लेकर चेतावनी दे दी थी. वैज्ञानिकों ने इस दौरान दुनिया को आगाह करते हुए कहा था कि चीन में एक 'टाइम बम है.'

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Clinical Microbiology Reviews में आज से 13 साल पहले छपा था- 'एक खास प्रकार के चमगादड़ों में SARS-CoV जैसे वायरस काफी अधिक मौजूद हैं. दक्षिणी चीन में इन जीवों को खाने का कल्चर है. इसकी वजह ये एक टाइम बम है.'

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वैज्ञानिकों ने SARS-CoV जैसे वायरस को टाइम बम तब कहा था जब रिपोर्ट छपने के 5 साल पहले सार्स वायरस तबाही मचा चुका था. 2002 में सामने आए सार्स वायरस से भी महामारी फैली थी. महामारी के दौरान करीब 800 लोगों की दुनियाभर में मौत हो गई थी.

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बता दें कि फिलहाल दुनिया में जो कोरोना महामारी फैली है वह SARS-CoV-2 वायरस की वजह से है. हालांकि, 2008 में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी रिव्यूज में छपी रिपोर्ट एकमात्र चेतावनी नहीं थी. बाद में और भी वैज्ञानिकों ने कोरोना को लेकर दुनिया को आगाह करने की कोशिश की थी.

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अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वायरोलॉजिस्ट माइकल बुचमीर 1980 से ही कोरोना वायरस फैमिली पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि खतरनाक कोरोना वायरस फैलने को लेकर सालों से आशंका थी. लेकिन रिसर्च के लिए फंड की कमी थी और एक्सपर्ट यह समझाने के लिए संघर्ष करते रहे कि इससे बड़ी आबादी को खतरा हो सकता है.

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अमेरिका की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की वायरोलॉजिस्ट ब्रेंडा होग ने अपनी जिंदगी कोरोना वायरस पर रिसर्च के लिए समर्पित कर दी. ब्रेंडा ने कहा कि 2002 में सार्स फैलने के बाद वे और उनकी सहयोगियों ने कोरोना से जुड़ी वैक्सीन तैयार करने पर काम शुरू किया. लेकिन 2008 में फंडिंग में कमी होने की वजह से उन्हें इसे रोकना पड़ा.

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