प्रोफेसर रटको जुकानोविक, स्टीफन होलगेट और डोन्ना डेविस ने सिनैरजेन नाम की कंपनी बनाई थी. इसी कंपनी ने कोरोना वायरस की एक दवा का ट्रायल किया था. ट्रायल में पता चला कि जिन मरीजों को दवा दी गई उनमें से 79 फीसदी मरीजों के गंभीर रूप से बीमार पड़ने की आशंका काफी कम हो गई.
असल में ब्रिटेन की साउथैंपटन यूनिवर्सिटी के मेडिसीन स्कूल के तीनों प्रोफेसर ने करीब 20 साल पहले ही यह खोज की थी. उन्होंने पता लगाया था कि अस्थमा और क्रोनिक लंग डिजीज के मरीजों में इन्टरफेरोन बीटा नाम के प्रोटीम की कमी होती है. यह प्रोटीन कॉमन कोल्ड से लड़ने में मदद करता है. प्रोफेसरों ने पता लगाया कि जिस प्रोटीन की कमी है उसे अगर पूरा कर दिया जाए तो वायरल इंफेक्शन से लड़ने में मरीज को मदद मिलेगी.
अपनी खोज को दवा में बदलने के लिए प्रोफेसर्स ने Synairgen कंपनी बनाई. 2004 में ही यह कंपनी स्टॉक मार्केट में आ गई थी. लेकिन कोरोना महामारी शुरू होने के बाद कंपनी ने फरवरी और मार्च में Interferon Beta प्रोटीन वाली दवा SNG001 का क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया. इसी हफ्ते ट्रायल के शुरुआती रिजल्ट प्रकाशित किए गए.
ट्रायल के दौरान सीधे मरीज के फेफड़ों में SNG001 दवा दी गई. ट्रायल में पता चला कि दवा देने से मरीज के रिकवर होने की संभावना 2 से तीन गुना अधिक हो गई. ट्रायल में 101 लोगों को शामिल किया गया था. ट्रायल के रिजल्ट प्रकाशित होने के बाद 21 जुलाई को कंपनी के शेयर में काफी अधिक उछाल आ गया. कंपनी में महज 0.56% से 0.59% फीसदी की हिस्सेदारी होने के बावजूद शेयर के दाम में उछाल आने से तीनों प्रोफेसर 15 से 16 करोड़ रुपये के मालिक हो गए.