लॉकडाउन की वजह से जिंदगी बची नहीं बल्कि लोगों की मौतें हुईं. ये कहना है कि नोबेल पुरष्कार विजेता वैज्ञानिक माइकल लेविट का. telegraph.co.uk की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लेविट ने कहा है कि लोगों को घर में बंद रखने का फैसला, पैनिक की वजह से लिया गया ना कि विज्ञान की वजह से. (फाइल फोटो)
बता दें कि माइकल लेविट कोरोना महामारी फैलने को लेकर शुरुआती अनुमान लगाने में सही साबित हुए थे. वहीं, दुनियाभर में लॉकडाउन लागू करने या न करने को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी लॉकडाउन का विरोध करते रहे हैं. स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क ने भी लॉकडाउन की आलोचना की थी और इसे तार्किक नहीं बताया था. वहीं अब अमेरिका के संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फौसी ने भी कह दिया है कि लंबे वक्त तक लॉकडाउन रखने से ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती.
ब्रिटेन में किए गए लॉकडाउन को लेकर लेविट ने कहा कि इंपेरियल कॉलेज के एक प्रोफेसर की मॉडलिंग के आधार पर सरकार ने तथाकथित हर्ड इम्यूनिटी पॉलिसी को रद्द कर दिया और पैनिक फैलने के डर से लॉकडाउन का फैसला लिया. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर दुनियाभर के नेताओं के बीच 'पैनिक वायरस' फैल गया था.
प्रोफेसर लेविट ने कहा कि ब्रिटेन में इंपेरियल कॉलेज के प्रोफेसर नील फर्गुसन के डाटा के आधार पर लॉकडाउन किया गया. लेविट ने कहा कि फर्गुसन ने मौत के आंकड़ों का 10 से 12 गुना अनुमान लगाया था. बता दें कि लॉकडाउन के दौरान फर्गुसन ने खुद नियमों को तोड़ दिया था और गर्लफ्रेंड को मिलने के लिए घर बुलाया था. सवाल उठने के बाद उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री के सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया था. (फोटो में माइकल लेविट)
फाइनेंशियल सर्विस मुहैया कराने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था जेपी मोर्गन की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि लॉकडाउन महामारी को कम करने में फेल हो गया और इसकी वजह से लाखों लोगों के रोजगार खत्म हो गए. मोर्गन की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि सरकार ने दोषपूर्ण साइंटिफिक पेपर के आधार पर लॉकडाउन लागू किया जो बेकार रहा या देर से किया गया था.
डेनमार्क में स्कूल और शॉपिंग मॉल दोबारा खोलने के बाद भी R रेट (संक्रमण
फैलने की दर) कम होती गई. जर्मनी में भी लॉकडाउन में ढील देने के बाद R रेट
1.0 से कम ही रहा.
प्रोफेसर लेविट ने ब्रिटिश टेलिग्राफ से कहा- मुझे लगता है कि लॉकडाउन से कोई जिंदगी नहीं बची. मुझे लगता है कि इससे मौतें हुईं. इससे कुछ रोड एक्सिडेंट जरूर कम हुए होंगे या ऐसा कुछ. लेकिन सामाजिक नुकसान जैसे कि घरेलू हिंसा, तलाक, शराब के दुरुपयोग अधिक हुए. और वे लोग जिन्हें अन्य बीमारियां थीं उनका इलाज नहीं हो सका.
प्रोफेसर लेविट को 2013 में केमिस्ट्री में नोबेल दिया गया था. उन्होंने कहा कि कोरोना को लेकर ज्यादातर एक्सपर्ट का अनुमान गलत साबित होता आया है. हालांकि, उन्होंने कहा है कि सरकार अपील करे कि लोग मास्क पहनें और सामाजिक दूरी बरकरार रखते हुए काम करना जारी रखें.
वहीं, ब्रिटिश सरकार के पूर्व सलाहकार और इंपेरियल कॉलेज के प्रोफेसर नील फर्गुसन ने अनुमान लगाया था कि सोशल डिस्टेंसिंग के बिना 5 लाख लोगों की मौत हो सकती हैं.