कई देशों में लॉकडाउन खत्म किया जाए या नहीं, यह फैसला इस बात को ध्यान में रखकर लिया जा रहा है कि वहां कोरोना वायरस का R नंबर कितना है. लेकिन ये R नंबर क्या है और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए R नंबर की चर्चा क्यों हो रही है. आइए समझते हैं.
R मतलब 'प्रभावी रिप्रोडक्शन नंबर.' औसतन एक संक्रमित व्यक्ति से कितने अन्य लोगों को वायरस फैल रहा है, R नंबर इसी का सूचकांक है. अगर R नंबर 2 है तो इसका मतलब है कि एक संक्रमित व्यक्ति से 2 नए व्यक्ति संक्रमित होंगे और फिर वे दोनों संक्रमित व्यक्ति 2-2 अन्य लोगों को संक्रमित करेंगे. फिर 4 संक्रमित 2-2 नए को संक्रमित करेंगे और इस तरह वायरस का संक्रमण काफी बड़ा रूप ले लेगा.
इसलिए कोरोना वायरस का R नंबर अगर किसी देश में 1 से अधिक है तो कोरोना संक्रमण काफी अधिक बढ़ जाएगा. लेकिन कोरोना वायरस का R नंबर 1 से कम हो जाए तो महामारी धीरे-धीरे घटने लगेगी. कोरोना वायरस महामारी के शुरुआती दिनों में R नंबर 2 से 3 के बीच था. हालांकि, एक देश के हर शहर में R नंबर एक जैसा नहीं रहता.
रिप्रोडक्शन नंबर यानी R नंबर फिक्स नहीं होता. यह वायरस की संरचना और लोगों के बर्ताव, सोशल डिस्टेंसिंग वगैरह पर निर्भर करता है. साथ ही आबादी में कितने लोग इम्यून हैं, इससे भी R नंबर पर असर पड़ता है.
theguardian.com की रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के शुरुआत में साइंटिस्ट 'बेसिक रिप्रोडक्टिव नंबर' R0 का इस्तेमाल करते हैं. R0 का मतलब होता है कि आबादी की इम्यूनिटी शून्य है.
लॉकडाउन की वजह से R नंबर में गिरावट देखने को मिल रही है. ब्रिटेन में लॉकडाउन के बाद R नंबर 0.6 से 0.9 के बीच हो गया है. इसका मतलब है कि ब्रिटेन में महामारी घट रही है.
फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये तय नहीं किया गया है कि R नंबर कितना होने पर लॉकडाउन खत्म किया जा सकता है. इस बात को लेकर भी फिलहाल ठोस जानकारी नहीं है कि लॉकडाउन में छूट देने पर R नंबर कितना अधिक बदल जाएगा.