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लोनार झील: रहस्य से उठा पर्दा, क्यों अचानक लाल हो गया था पानी

aajtak.in
  • 23 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 1:45 PM IST
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महाराष्ट्र के बुलढाना जिले से पिछले दिनों एक हैरान करने वाली घटना सामने आई थी. यहां की मशहूर लोनार झील का पानी अचानक लाल रंग में बदल गया था. पहली बार हुए इस बदलाव को देखकर आम लोग और वैज्ञानिक हैरान थे. फिलहाल इस रहस्य से पर्दा उठ गया है.

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दरअसल, बुलढाना जिले में स्थिति इस झील के रंग बदलने के बाद यहां लोगों की भीड़ लग गई थी. लोग हैरान थे कि ऐसा कैसे हो गया. उस समय बुलढाना के तहसीलदार सैफन नदाफ ने बताया था कि पिछले 2-3 दिन से लोनार झील का पानी लाल रंग में बदल गया है. हमने वन विभाग को पानी के सैंपल लेकर जांच कर कारण पता करने को कहा है. फिलहाल अब इस मामले का खुलासा हुआ है.

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पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक पुणे स्थित एक संस्थान ने स्टडी के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि पानी में 'हालोआर्चिया' नामक जीवाणुओं की बड़ी संख्या में मौजूदगी के कारण वह लाल हुआ था.

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आगरकर अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. प्रशांत धाकेफाल्कर ने न्यूज एजेंसी को बताया कि हालोआर्चिया या हालोफिलिक आर्चिया एक ऐसा जीवाणु होता है जो गुलाबी/लाल रंग पैदा करता है और यह खारे पानी में पाया जाता है.

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उन्होंने यह भी कहा कि शुरुआत में हमें लगा था कि लाल रंग के दुनालीला शैवाल के कारण झील के पानी का रंग ऐसा हो गया है, लेकिन झील के पानी के नमूनों की जांच के बाद हमें पता चला कि झील में हालोआर्चिया की बड़ी संख्या में मौजूदगी के कारण पानी इस रंग में तब्दील हो गया था.

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इतना ही नहीं स्टडी के बाद संस्थान ने इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट वन विभाग को भेजी है, जिसे विभाग बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ को सौपेंगा. यह पीठ झील का रंग बदल जाने संबंधी चिंताओं को लेकर एक याचिका की सुनवाई कर रही है.

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यह पूछे जाने पर कि क्या अब इस झील का रंग स्थाई रूप से बदल गया है, उन्होंने कहा कि हमने नमूना जल को कुछ देर के लिए रख दिया और हमने पाया कि जैव भार पानी के नीचे पहुंच गया और पानी पारदर्शी हो गया. बारिश की वजह से खारापन कम होने के कारण झील का पानी धीरे-धीरे पुन: अपने मूल रंग में लौट रहा है.

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बता दें कि महाराष्ट्र के बुलढाणा में लोनार झील एक लोकप्रिय पर्यटक केंद्र है. बताया जाता है कि करीब 50,000 साल पहले पृथ्वी पर एक धूमकेतु के टकराने से यह अंडाकार झील बनी थी. लेकिन हाल ही में यह झील चर्चा का विषय तब बही जब अचानक इसका रंग बदल गया.

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लोनार झील के पानी का रंग लाल होने के बाद आसपास के इलाकों से बड़ी तादाद में लोग झील देखने के लिए आ रहे हैं. कुछ लोग तो इसे चमत्कार मान रहे हैं तो वहीं कई अफवाहों ने भी जोर पकड़ लिया था.

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इस झील को एक बेहद रहस्यमयी झील माना जाता है. नासा से लेकर दुनिया भर की तमाम एजेंसियां इस झील के रहस्यों को जानने में बरसों से जुटी हुई है.

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लोनार झील का आकार गोल है. इसका ऊपरी व्यास करीब 7 किलोमीटर है. जबकि यह झील करीब 150 मीटर गहरी है. अनुमान है कि पृथ्वी से जो उल्का पिंड टकराया होगा, वह करीब 10 लाख टन का रहा होगा जिसकी वजह से झील बनी थीं. वैज्ञानिकों का मानना है कि उल्का पिंड कहां गया  इसका कोई पता अभी तक नहीं चला है.

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इस झील से जुड़ा हैरान करने वाला एक वाकया यहां के ग्रामीण भी बताते हैं. वो कहते हैं कि 2006 में यह झील सूख गई थी. उस वक्त गांव वालों ने पानी की जगह झील में नमक देखा था साथ ही अन्य खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए टुकड़े देखे. लेकिन कुछ ही समय बाद यहां बारिश हुई और झील फिर से भर गई

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हाल ही में लोनार झील पर हुए शोध में यह सामने आया है कि यह लगभग 5 लाख 70 हजार साल पुरानी झील है. यानी कि यह झील रामायण और महाभारत काल में भी मौजूद थी.

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वहीं, सत्तर के दशक में कुछ वैज्ञानिकों ने यह दावा किया था कि यह झील ज्वालामुखी के मुंह के कारण बनी होगी. लेकिन बाद में यह गलत साबित हुआ, क्योंकि यदि झील ज्वालामुखी से बनी होती, तो 150 मीटर गहरी नहीं होती.

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नासा के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले इस झील को बेसाल्टिक चट्टानों से बनी झील बताया था. साथ ही यह कहा था कि इस तरह की झील मंगल की सतह पर पाई जाती है. क्योंकि इसके पानी के रासायनिक गुण भी वहां की झीलों के रासायनिक गुणों से मेल खाते हैं.

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इस झील को लेकर कई पौराणिक ग्रंथों में भी जिक्र मिलता है. जानकार बताते हैं कि झील का जिक्र ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण और आईन-ए-अकबरी में भी इसका जिक्र है.

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लोनार झील की एक ख़ास बात यह भी है कि यहां कई प्राचीन मंदिरों के भी अवशेष हैं. इनमें दैत्यासुदन मंदिर भी शामिल है. यह भगवान विष्णु, दुर्गा, सूर्य और नरसिम्हा को समर्पित है. इनकी बनावट खजुराहो के मंदिरों जैसी है.

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इसके अलावा यहां प्राचीन लोनारधर मंदिर, कमलजा मंदिर, मोठा मारुति मंदिर भी हैं. ऐसा कहा जाता है कि इनका निर्माण करीब 1000 साल पहले यादव वंश के राजाओं ने कराया था.

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सबसे पहले इस झील को पहचान 1823 में तब मिली, जब ब्रिटिश अधिकारी जेई अलेक्जेंडर यहां पहुंचे. जब उन्होंने लोनार झील को देखा तो दंग रह गए. इसके बाद इस झील को लेकर वैज्ञानिकों ने दिलचस्पी भी दिखाई.

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