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निर्भया के दरिंदों को मिलेगी फांसी? ऐसी होगी तिहाड़ की प्रक्रिया

गौरव पांडेय
  • 06 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST
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हैदराबाद गैंगरेप आरोपियों के एनकाउंटर के बाद 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप के लिए न्याय की गुहार लगाई जा रही है. दूसरी ओर निर्भया रेप कांड में आरोपियों की दया याचिका को गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेज दिया है. इसे खारिज करने की सिफारिश की गई है.

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गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेज दी है. अब अगर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दया याचिका को खारिज करते हैं तो दोषियों को सजा दी जाएगी.

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ऐसा हुआ तो तिहाड़ में निर्भया के दोषियों को फांसी दी जा सकती है. तिहाड़ का फांसी-घर सबसे ज्यादा सुरक्षित माना  जाता है. तिहाड़ जेल के पूर्व लॉ ऑफिसर सुनील गुप्ता ने कहा कि जिस दिन फांसी होती है सुरक्षा बढ़ाई जाती है.

फांसी लगने के बाद ही दूसरी जेलें भी खुलेंगी. गर्मियों में सुबह 6 बजे जेलें खुल जाती हैं लेकिन सुरक्षा के लिहाज से जिस दिन फांसी लगेगी उसके बाद ही बाकी जेलें खुलती हैं.

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भारत की तकरीबन हर सेंट्रल जेल (केंद्रीय कारागार) में फांसी-घर का निर्माण कराया जाता है. सेंट्रल जेल में ही इसलिए, क्योंकि जिला जेलों की तुलना में सेंट्रल-जेल के सुरक्षा इंतजाम कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं.

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बीपीआरडी का नया जेल मैनुअल 2018 से लागू हो गया है. इसके लागू होने से पहले नियम ये था कि जिसे फांसी होनी होती है उसे एक हफ्ते पहले बताते थे. अब 15 दिन पहले बताएंगे कि वो मर्सी पिटीशन लगाना चाहें तो सुपरिटेंडेंट को बताना पड़ता है. ये पिटीशन अगर रिजेक्ट हो जाती है तो ब्लैक वारंट लिया जाता है.

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दरअसल, नए कानून के अनुसार ब्लैक वारंट की कॉपी प्रिजनर को भी देंगे. बॉडी हैंग के बाद उसका पोस्टमार्टम होगा. जेल मैनुअल के अनुसार है फांसी पाने वाले की हर एक्टिविटी पर नजर रखी जाएगी. सीसीटीवी से भी देखा जाएगा कि कहीं वो आखिरी टाइम पे खुद को नुकसान न पहुंचा दे.

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फांसी के वक्त मौजूद एसडीएम आखिरी वक्त पर इच्छा पूछता है, वो विल रिकार्ड करता है. इसके बाद मेडिकल ऑफिसर फांसी के बाद घोषित करेगा कि इनकी लाइफ खत्म हो चुकी है.

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घर वालों को लाश दी जाए या नहीं, फैसला इस बात पर होता है कि अगर लाश को देने से किसी भी तरह से सुरक्षा को खतरा दिखता है तो लाश नहीं दी जा सकती है.

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फांसी से पहले कैदी को चाय पिलाई जाती है, काले कपड़े पहनाए जाते हैं. दोनों हाथ पीछे से बांध दिए जाते हैं. फांसी के तख्ते पर लाकर उसके पैर को नीचे से बांध दिया जाता है.

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इसके बाद जेल सुपरिटेंडेंट जैसे ही इशारा करता है, जल्लाद फंदा डालकर लीवर को खींचता है. लीवर के खिंचते ही लकड़ी के प्लैंक्स यानी पट्टे जिस पर वो खड़ा होता है वो 12 फीट गहरे वेल में जाकर गिरता है. फांसी के बॉस दो घंटे तक लाश को लटकाकर रखा जाता है.

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