पंजाब के पठानकोट से अनोखा मामला सामने आया है. जहां एक ऐतिहासिक मंदिर के पास के एक आम के पेड़ से अचानक अपने आप धुआं निकलने लगा. जिसके बाद से इस चमत्कारी दृश्य को देखने के लिए वहां भक्तों का तांता लगा हुआ है. मंदिर के भगत इसे कुदरत का करिश्मा मान रहे हैं. वहीं, वन विभाग के अधिकारी कहना है कि इस पुरातन जंगल की मिट्टी का परीक्षण किया जाएगा ताकि इस बाद का पता लगाया जा सके कि पेड़ से धुआं क्यों निकल रहा है?
दरअसल, ये मामला जिला पठानकोट के हल्का भोया के गांव कटारु चक के चटपट बनी मंदिर का है. जहां गुरुवार से भक्तों का तांता लगा हुआ है. चटपट बनी मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है. यहां लोग दूर-दूर से मन्नतें मांगने के लिए आते हैं. बताया जाता है कि यहां हजारों सालों पहले एक नाथ तपस्या कर रहे थे, तभी एक किसान ने उन पर हल चला दिया और उन्हें जमीन के अंदर दबा दिया.
माना जाता है कि जब वह किसान दूसरे दिन यहां आया तो रातों रात यहां एक घना जंगल तैयार हो गया और जगह-जगह पानी के कुंड निकल पड़े थे. जिसके बाद जब आस पास के गांव वालों को इस बारे में पता चला तो वे यह चमत्कार देखने पहुंच गए. जिसके बाद लोग वहां मन्नते मांगने जाने लगे, जब लोगों की मन्नतें पूरी भी होने लगीं तो उसके बाद यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया और लोग दूर-दूर से यहां माथा टेकने के लिए आने लगे.
जानकारी के मुताबिक, इस ऐतिहासिक जंगल में भगवान शिव का मंदिर है. इस जंगल के पेड़ पंजाब या हिमाचल के जंगलों में कम ही मिलते हैं. इस जंगल के किसी भी पेड़ की लकड़ी को घरेलू इस्तेमाल के लिए काटा जाना अशुभ माना जाता है. यहां शिवरात्रि पर एक बड़ा मेला भी लगता है. लोगों का कहना है कि आज से 1600-1700 साल पहले अपने आप तैयार हुए जंगल का कुदरत का करिश्मा देखने को मिला था. अब यहां फिर से एक और चमत्कार देखने को मिला है.
जंगल में एक आम के पेड़ से अपने आप धुआं निकल रहा है. भक्त भी इसे भगवान का करिश्मा मान रहे है. भक्तों ने कहा कि पेड़ से धुंआ निकलने का चमत्कार पिछले कुछ दिनों से लगतार हो रहा है. एक व्यक्ति का कहना है कि वह कुछ दिन पहले इस आम के पेड़ पर आम तोड़ने के लिए चढ़ने लगा था तभी उसे यह चमत्कार दिखा जिसके बाद उसने इस बारे में मंदिर के नाथ को बताया.
उधर मंदिर के नाथ ने भी इसे कुदरत का करिश्मा और भगवान का चमत्कार बताया है. मंदिर का पुजारी का कहना है कि यह एक इतिहासिक मंदिर है और यहां आए दिन कोई ना कोई करिश्मा होता ही रहता है. उनका कहना है कि इस जंगल की एक खास बात है कि इस जंगल की लकड़ी को कोई भी अपने घर में नहीं जला सकता. क्योंकि अगर कोई ऐसा करता है तो कहा जाता है कि उसे भारी हानि का सामना करना पड़ता है. इसलिए इस जंगल की लकड़ी सिर्फ मंदिर में धुना जलाने के काम ही आती है. जंगल की लकड़ी की विभूति बनती है और भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाती है.
इस संबंधी पठानकोट डीएफओ संजीव तिवारी का कहना है कि यह एक पुराना जंगल है. जिसमें कई तरह के पेड़ पौधे मौजूद हैं.
उन्होंने कहा कि अगर किसी पेड़ से धुआं निकलने जैसी घटना सामने आ रही
है तो इस जंगल की मिट्टी का परीक्षण करवाना होगा, जिसके बाद ही किसी नतीजे
पर पहुंचा जा सकता है.