भारत सरकार ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 42 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली स्टील्थ सबमरीन बनाने की परियोजना को हरी झंडी दे दी है. इस महत्वपूर्ण प्रॉजेक्ट के तहत छह पनडुब्बियां बनाई जाएंगी. हालांकि, प्रॉजेक्ट-75 इंडिया (P-75I) के तहत भारतीय नौसेना को पहली पनडुब्बी साल 2022 में मिलेगी.
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चीन और पाकिस्तान से बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत नौसेना को स्टील्थ सबरमीन की बेहद अवश्यकता है. क्योंकि इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि न्यूक्लियर रिएक्टर के कारण इन पनडुब्बियों को पानी के अंदर तेज तरफ्तार से लंबी दूरी तक अभियानों के अंजाम देने में मदद मिलती है. न्यूक्लियर रिएक्टर पनडुब्बी को ईंधन मुहैया कराते रहते हैं, इसलिए अभियान की दूरी या समयसीमा की चिंता नहीं रहती है. स्टील्थ सबमरीन असीमित समय और दूरी तक जाकर युद्धक अभियानों को अंजाम दे सकती हैं.
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भारतीय नौसेना को पानी के अंदर युद्ध के हथियारों की भारी कमी हो रही है. अभी नौसेना के पास सिर्फ दो स्कॉर्पियन और 13 पुरानी पीढ़ी के डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन हैं जिन्हें 20 साल पहले बेड़े में शामिल किया गया था. इनके अलावा, भारतीय नौसेना के पास परमाणु क्षमता से लैस दो पनडुब्बियां भी हैं.
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चीन हिंद महासागर में अपनी नौसेना की ताकत को लगातार बढ़ा रहा है. जिससे भारत के लिए लगातार चुनौती बढ़ती जा रही है. चीन के पास इस समय 50 डीजल-इलेक्ट्रिक और 10 न्यूक्लियर सबरमरीन्स हैं. जबकि पाकिस्तान के पास पांच पनडुब्बियां हैं. चीन अलगे साल तक आठ चीनी युआन क्लास सबरमरीन्स अपने बड़े में शामिल कर लेगा.
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चीन और पाकिस्तान की नौसेना के पास API टेक्नॉलजी पहले से थी. अब भारतीय नौसेना की कल्वरी श्रेणी की पनडुब्बियों के लिए भी एआईपी टेक्नॉलजी तैयार है. API सिस्टम पनडुब्बियों को बहुत घातक बना देता है.
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