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उत्तराखंड त्रासदी: आखिर क्यों टूटते हैं ग्लेशियर, जिससे मचती है भारी तबाही

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 4:32 PM IST
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उत्तराखंड के चमोली में सात साल बाद एक बार फिर कुदरत का कहर टूटा है. ग्लेशियर फटने से भारी तबाही हुई है. चमोली के रेणी गांव के पास ग्लेशियर टूटने से 150 से ज्यादा लोग बह गए हैं. ये सभी लोग ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट में काम कर थे. धौली गंगा नदी में अचानक जलस्तर बढ़ने से तेज बहाव के कारण इन लोगों के लापता होने की आशंका है. इतना ही नहीं, कई पुल भी टूट गए हैं और कई गांवों का संपर्क भी टूट गया है. ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिरकार ग्लेशियर कैसे और क्यों फटता है?

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सबसे पहले यह जानते हैं कि ग्लेशियर क्या होता है और कैसे बनता है. दरअसल ग्लेशियर पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर सालों तक भारी मात्रा में एक ही जगह बर्फ जमने से बनता है. ग्लेशियर दो तरह के होते हैं अल्पाइन और आइस शीट्स. पहाड़ों के ग्लेशियर को अल्पाइन श्रेणी में रखा जाता है.

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वैसे तो ग्लेशियर टूटने के कई कारण होते हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण गुरुत्वाकर्षण बल होता है. वहीं ग्लेशियर के टूटने या फटने का दूसरा बड़ा कारण ग्लेशियर के किनारों पर टेंशन और ग्लोबल वॉर्मिंग है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर का बर्फ तेजी से पिघलने लगता है और उसका एक हिस्सा टूट कर अलग हो जाता है. ग्लेशियर का जब कोई बड़ा टुकड़ा टूटता है तो उसे काल्विंग कहते हैं. 

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ग्लेशियर फटने के बाद उसके भीतर ड्रेनेज ब्लॉक में मौजूद पानी अपना रास्ता ढूंढ लेता है और जब यह ग्लेशियर के बीच से बहता है तो बर्फ के पिघलने का रेट भी बढ़ जाता है. इससे उसका रास्ता बड़ा हो जाता है और पानी का एक सैलाब आता है. इससे नदियों में अचानक बहुत तेजी से जलस्तर बढ़ने लगता है. नदियों के बहाव में भी तेजी आती है जो आसपास के इलाकों में भारी तबाही लाती है.

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बता दें कि छोटे-मोटे ग्लेशियर आए दिन टूटते रहते हैं लेकिन बड़ा ग्लेशियर दो या तीन साल के अंतर पर टूटता है जिसका पहले से अंदाजा लगा पाना संभव नहीं होता है. चमोली में ग्लेशियर फटने के बाद देवप्रयाग और सभी नदी किनारे बसे गांव के लोगों को नदी के तट को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर चले जाने की चेतावनी जारी की गई है. प्रशासन लगातार लोगों को खतरे वाली जगहों से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में जुटा हुआ है.

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