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मोतियों का ये शहर बनेगा ISRO का 'लॉन्चपैड', क्यों है खास?

ऋचीक मिश्रा
  • 02 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST
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भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organization - ISRO) के प्रमुख डॉ. के. सिवन ने साल के पहले दिन यानी एक जनवरी 2020 को घोषणा की कि स्पेस एजेंसी का दूसरा स्पेसपोर्ट (लॉन्च स्टेशन) तमिलनाडु के थूथुकुड़ी में बनेगा. जब इसरो के पास आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेसपोर्ट है तो दूसरे स्पेसपोर्ट की जरूरत क्यों पड़ गई? इसरो ने इसके लिए थूथुकुड़ी को ही क्यों चुना? आइए जानते हैं...क्या खास है थूथुकुड़ी में? आइए जानते हैं थूथुकुड़ी को स्पेसपोर्ट के लिए चुनने के पीछे की सबसे बड़ी वजहें...

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क्योंकि यह देश के पूर्वी तट पर स्थित है

पहली बात तो यह की थूथुकुड़ी देश के पूर्वी हिस्से में एक तटीय शहर है. हमारी पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की तरफ घूमती है इसलिए लॉन्च स्टेशन या स्पेसपोर्ट या अंतरिक्ष केंद्र हमेशा पूर्व की दिशा में बनाए जाते हैं ताकि रॉकेट छूटने के बाद ईंधन की बचत हो सके क्योंकि यह पृथ्वी की गति की दिशा में लॉन्च किया जाता है. यह वैसा ही जैसे आप बस से उतरते समय उसकी गति की दिशा में उतरते हैं तो आप की गति भी बढ़ जाती है वह भी कम ऊर्जा के साथ.

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समुद्र के किनारे होना यानी सुरक्षा ज्यादा

किसी भी लॉन्च स्टेशन या स्पेसपोर्ट को हमेशा शहर से दूर ऐसी जगह पर बनाया जाता है जहां से किसी इंसानी बसाहट या शहर को नुकसान न हो. इसलिए इसे समुद्र के किनारे बनाया गया है. अगर रॉकेट लॉन्च होने के बाद भटक जाए और उसे विस्फोट करके उड़ाना पड़े तो जानमाल का नुकसान न हो. या रॉकेट दिशा से अलग किसी शहर पर जाकर न गिरे.

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थूथुकुड़ी से रॉकेट लॉन्चिंग पड़ेगी सस्ती

थूथुकुड़ी से रॉकेट लॉन्चिंग पड़ेगी सस्ती क्योंकि अभी तक जितने भी पीएसएसवी रॉकेट पोलर ऑर्बिट में छोड़े जाते थे उन्हें श्रीहरिकोटा से निकलने के बाद श्रीलंका के ऊपर से जाना होता था. थूथुकुड़ी से लॉन्चिंग होने पर रॉकेट को करीब 700 किलोमीटर की यात्रा कम करनी पड़ेगी. इससे ईंधन की बचत होगी. करीब 30 प्रतिशत की कटौती होगी खर्चे में.

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भूमध्य रेखा से करीब इसलिए भी सस्ता

थूथुकुड़ी भूमध्य रेखा के करीब है, यानी रॉकेट की लॉन्चिंग के बाद उपग्रहों के उनकी कक्षा में पहुंचाने के लिए पृथ्वी के ज्यादा चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. इससे ईँधन और समय दोनों की बचत होगी. यह ईँधन उपग्रहों के लंबे जीवन के लिए फायदेमंद साबित होगा.

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जहां रॉकेट बनता है उससे सिर्फ 100 KM दूर

तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के महेंद्रगिरी में लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (LPSC) है. यहां पर पीएसएलवी रॉकेट के दूसरे और चौथे स्टेज वाले इंजन का निर्माण होता है. यहां से श्रीहरिकोटा करीब 700 किलोमीटर दूर है. जबकि, थूथुकुड़ी मात्र 100 किलोमीटर दूर. यानी कम खर्च में रॉकेट के दो हिस्से थूथुकुड़ी पहुंच जाएंगे.

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थूथुकुड़ी से छोड़े जाएंगे PSLV और SSLV रॉकेट

थूथुकुड़ी स्पेसपोर्ट से सिर्फ पोलर ऑर्बिट में भेजे जाने वाले उपग्रहों की लॉन्चिंग होगी. यहां से दूसरे देशों के उपग्रहों को भी छोड़ा जाएगा. ज्यादा लॉन्चिंग के लिए यहां से PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) और SSLV (Small Satellite Launch Vehicle) रॉकेट का उपयोग किया जाएगा. SSLV रॉकेट 500 किलोग्राम तक के उपग्रह लॉन्च करेगा.

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कितना बड़ा होगा थूथुकुड़ी का स्पेसपोर्ट

इसरो के सूत्रों के अनुसार थूथुकुड़ी स्पेसपोर्ट करीब 2300 एकड़ का होगा. यह कुलासेकरापट्निनम नाम की जगह के करीब बनाया जा सकता है. ऐसा माना जा रहा है कि इसका काम अगले 6 महीने में शुरू हो जाएगा. स्पेसपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण का काम चल रहा है. इस पोर्ट को बनने में करीब 4-5 साल का वक्त लगेगा.

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थूथुकुड़ी को ही पहले तूतीकोरीन कहा जाता था

तमिलनाडु या यूं कहें देश के अंत में बंगाल की खाड़ी के बगल कोरोमंडल तट पर और श्रीलंका के ठीक ऊपर स्थित थूथुकुड़ी को पहले तूतीकोरीन कहा जाता था. तूतीकोरीन बंदरगाह भारत के प्रमुख बंदरगाहों में से एक है. यह चेन्नई से करीब 600, तिरुवनंतपुरम से 190 किलोमीटर दूर है. इस बंदरगाह का संबंध पांड्या साम्राज्य से है जो 12वीं से 14वीं सदी तक यहां पर राज्य करता था.

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इसे मोतियों का शहर भी कहा जाता है

थूथुकुड़ी में मोतियों का कारोबार होता है. यहीं से मोतियों का कारोबार करने वाले लोग समुद्र में गोता लगाकर मोतियां निकालते हैं. या उनकी खेती करते हैं. यहां को मोतियों के कारोबार को देख कर 1548 में यहां पर पुर्तगालियों ने हमला कर दिया. इसके बाद 1658 में डच आए. आखिरकार 1825 में ब्रिटिश शासकों ने तूतीकोरीन पर साम्राज्य स्थापित कर लिया. 1842 में तूतीकोरीन बंदरगाह का आधुनिक निर्माण शुरू हुआ था.

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थूथुकुड़ी जाना जाता है नमक के खेतों के लिए

थूथुकुड़ी में भारी मात्रा में नमक की खेती होती है. यहां के नमक की सबसे ज्यादा मांग रासायनिक उद्योगों में होती है. यहां से हर साल 1.2 मिलियन टन नमक का उत्पादन किया जाता है.

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