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सरकार आज जारी करेगी GDP आंकड़े, जानें- एक आम आदमी इसमें अपने लिए क्या देखे

अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 11:51 AM IST
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सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे सटीक पैमाना है. आज सरकार वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही की जीडीपी के नतीजे जारी करने वाली है. अनुमान लगाया जा रहा है कि आंकड़े बेहतर रहने वाले हैं. आइए जानते हैं कि जीडीपी की गिरावट यानी उसके निगेटिव में जाने का आखिर एक आम आदमी पर क्या असर पड़ता है?

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एसबीआई की इकोरैप रिसर्च रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की जीडीपी 18.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है. वहीं RBI ने अप्रैल-जून 2021 तिमाही के लिए 21.4 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया है. जीडीपी में तेज रिकवरी से इकोनॉमी की गाड़ी पटरी पर लौटने के संकेत मिल रहे हैं. 

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दरअसल, कोरोना संकट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा लगा है. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी. उसके बाद दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.5 फीसदी की गिरावट आई. जबकि तीसरी तिमाही में 0.4% जीडीपी रही. जबकि चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में जीडीपी ग्रोथ रेट 1.6 फीसदी दर्ज की गई. इस तरह से वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट -7.3% फीसदी रही. 
 

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क्या होती है जीडीपी?
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया. 
 

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जीडीपी ग्रोथ की अच्छी बात 
जीडीपी के आंकड़ों का आम लोगों पर काफी असर पड़ता है. जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है तो बेरोजगारी कम रहती है. लोगों की तनख्वाह बढ़ती है. कारोबार जगत अपने काम को बढ़ाने के लिए और मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की भर्ती करता है, यानी तेजी से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. 
 

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जीडीपी में गिरावट से बढ़ जाती है गरीबी
अगर जीडीपी के आंकड़े लगातार सुस्‍त होते हैं तो ये देश के लिए खतरे की घंटी मानी जाती है. जीडीपी कम होने की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं. नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार भी सुस्‍त पड़ जाती है. आर्थिक सुस्‍ती की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है. वहीं लोगों की बचत और निवेश भी कम हो जाता है. 
 

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आम आदमी पर पड़ती है मार 
जीडीपी रेट में गिरावट का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ता है. भारत में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है. इसलिए आर्थिक वृद्धि दर घटने का ज्यादा असर गरीब तबके पर पड़ता है. इसकी वजह यह है कि लोगों की औसत आय घट जाती है. नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार घट जाती है. मान लीजिए किसी तिमाही में प्रति व्यक्ति औसत आय 10 हजार रुपये महीने है तो जीडीपी में 24 फीसदी की गिरावट का मतलब है कि लोगों की औसत आय में 2400 रुपये की गिरावट आ गई और यह करीब 7600 रह गई. 

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कम होता है निवेश 
जीडीपी गिरने से राजकोषीय घाटा बढ़ने का भी खतरा हो जाता है. यह एक बड़ा दुष्चक्र है. इसके अलावा उद्योगपतियों, शेयर बाजार निवेशकों, कारोबारियों आदि की भी जीडीपी पर गहरी नजर रहती है और इसके डेटा के आधार पर वे आगे निवेश का फैसला करते हैं. जीडीपी से यह भी नहीं पता चलता कि देश के अमीरों और गरीबों में आय की कितनी असमानता है. 

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जीडीपी का इतिहास
जीडीपी को मापने का अंतरराष्ट्रीय मानक बुक सिस्टम ऑफ नेशनल एकाउंट्स (1993) में तय किया गया है, जिसे SNA93 कहा जाता है. इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD), संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों ने तैयार किया है. भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. 

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