करीब 94 साल पुराने प्राइवेट सेक्टर के लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) के मैनेजमेंट के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. यही वजह है कि अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दखल देने का फैसला लिया है.
दरअसल, रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) के दैनिक कामकाज को देखने के लिये निदेशकों की तीन सदस्यीय समिति (सीओडी) के गठन की मंजूरी दे दी है. ये समिति अंतरिम तौर पर प्रबंध निदेशक और सीईओ की विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग करेगी. इसमें तीन स्वतंत्र निदेशक मीता मखान, शक्ति सिन्हा और सतीश कुमारा कालरा हैं. समिति की अध्यक्ष मीता मखान हैं.
आरबीआई ने ये मंजूरी शेयरधारकों द्वारा बैंक के सातों निदेशकों को बर्खास्त किये जाने के बाद दी है. आपको बता दें कि लक्ष्मी विलास बैंक के सालाना आम बैठक (एजीएम) में शेयरधारकों ने शुक्रवार को एलवीबी प्रबंध निदेशक और सीईओ (मुख्य कार्यपालक अधिकारी) समेत सातों निदेशकों और ऑडिटरों को बर्खास्त कर दिया था.
वहीं नये बोर्ड ने निवेशकों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि बैंक की नकदी की स्थिति संतोषजनक है. साथ ही जमाकर्ताओं से कहा कि उनका पैसा पूरी तरह सुरक्षित है. बैंक के मुताबिक जमाकर्ता, बांडधारक और खाताधारक तथा कर्जदाता पूरी तरह से निश्चिंत रहें. बैंक के बयान में कहा गया है कि लक्ष्मी विलास बैंक कानून के अनुसार जरूरी हर सूचना सार्वजनिक रूप से साझा करेगा.
बैंक की समस्या उस समय शुरू हुई जब उसने एसएमई (लघु एवं मझोले उद्यम) के बजाए बड़ी कंपनियों पर ध्यान देना शुरू किया. बैंक ने फार्मा कंपनी रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तक मलविन्दर सिंह और शिविन्दर सिंह की निवेश इकाई को 720 करोड़ रुपये का कर्ज दिया. यह कर्ज 2016 के अंत और 2017 की शुरुआत में 794 करोड़ रुपये की मियादी जमा पर दिया गया. यहीं से बैंक की समस्या शुरू हुई.
इस बीच, आरबीआई ने सितंबर 2019 में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) बढ़ने के साथ बैंक को तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई के अंतर्गत रखा. बहरहाल, बैंक को मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 836.04 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ.