बॉलीवुड के 'मिस्टर परफेक्शनिस्ट' आमिर खान ने आज हाफ सेंचुरी मार ली है. आज उनका 52 वां जन्मदिन है. एक नजर उन फिल्मों पर जिन्होंने उन्हें बॉलीवुड का सुपरस्टार बना दिया.
आमिर कहते हैं कि उन्होंने हमेशा अलग राग आलापा. 'मेरी पसंद हटकर रही. पर जब मैंने करियर शुरू किया तो मैं इतना ताकतवर नहीं था, जितना अब हूं. तब मुझे बाजार की ताकतों के खिलाफ लड़ना पड़ा जो मेरी तथाकथित बेतुकी पसंद से परेशान थी.'
कयामत से कयामत तक
निर्देशक: मंसूर खान
1988: डिस्को दौर के चरम में बनी फिल्म ताजा झेंके जैसी थी. फिर सूरज बड़जात्या की ‘मैंने प्यार किया’ व आदित्य चोपड़ा की ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ आईं. ''फिल्म शुरू हुई तो मैं 21 साल का था, प्रदर्शित हुई तो 23 का. हमें लगा कौन इसे देखेगा.''
रंगीला
निर्देशक: रामगोपाल वर्मा
1995: आमिर कहते हैं, ''इससे पहले रामू की चार फिल्में फ्लॉप थीं तो उर्मिला की आठ. इसमें कहानी भी नहीं थी.'' पर टपोरी मुन्ना कई साल बाद संजय दत्त की मुन्ना भाई की प्रेरणा बना.
गुलाम
निर्देशक: विक्रम भट्ट
1998: ''उस समय यह मोह भंग हुए युवाओं को केंद्र में रखकर बनी पहली फिल्म थी. इसका नायक नकली बहादुर था. लेकिन वह तेज दिमाग वाला गबरू जवान था.'' खान बताते हैं कि बाजार को यह समझ्ने में थोड़ा समय लगा कि उनकी फिल्म पर लगा पैसा डूबेगा नहीं.
सरफरोश
निर्देशक: जॉन मैथ्यू मथान
1999: मथान जब सरफरोश की पेशकश लेकर आए तो उन्हें कोई नहीं जानता था. पर कड़क पुलिस अधिकारी एसीपी राठौर और आतंकवाद विरोधी थीम ने ''लोगों को चौंका दिया.'' वे बताते हैं कि फिल्म व्यवसाय में उनकी साख बनाने में यह अहम मोड़ रहा.
लगान
निर्देशक: आशुतोष गोवारिकर
2001: खान कहते हैं, ''जब मैंने झामू सुगंध से कहा कि मैं गोवारिकर के संग यह फिल्म करने जा रहा हूं और इसमें काफी पैसा लगेगा तो पक्के व्यवसायी झामू ने पलकें भी न झपकाईं. 1893 की पृष्ठभूमि और क्रिकेट? भारत में खेल पर बनी फिल्में सफल नहीं रहीं पर उन्होंने सवाल तक नहीं किया.''
रंग दे बसंती
निर्देशक: राकेश ओमप्रकाश मेहरा
2006: ''मैंने न्यूयॉर्क में रह रही अपनी बहन को बताया कि मैं भगत सिंह पर पांचवी फिल्म बना रहा हूं, पहली चार फ्लॉप रही थीं. उसका जवाब था कि ये नादानी होगी.'' इसके नकारवाद ने बहस छेड़ी और भावुकता ने कैंडल लाइट मार्च शुरू किए पर खान का बेबाक डीजे यादगार रहा. उन्हीं के शब्दों में ''यह बहुत अच्छा था.''
तारे जमीन पर
निर्देशक: आमिर खान
2007: पटकथा अमोल गुप्ते ने लिखी, उन्होंने एक हफ्ते तक निर्देशन किया, फिर कमान निर्माता ने संभाल ली. उन्होंने एक डिस्लेक्सिक बच्चे की सरल-सी कहानी को सामयिक फिल्म में पेश कर शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए. फिल्म सुखद आश्चर्य रही.
3 इडियट्स
निर्देशक: राजकुमार हिरानी
2009: ''मेरा पात्र रांचो खतरनाक ढंग से लिखा गया था. उसमें कोई खामी न थी. उसके लिए किसी का दिल नहीं पिघलता. उसकी खामियां ही उसे प्रिय बनाती हैं. जब मुझे शुरू में यह लगा तो मैंने हिरानी से कहा कि मैं महामानव के रूप में यह भूमिका नहीं करूंगा, लोग ऊब जाएंगे, मैं इसे स्मार्ट नहीं स्वाभाविक रूप से उत्सुक व्यक्ति बनाना चाहता था.'' इसके लिए उन्हें 10 किलो वजन घटाना पड़ा. 17 वर्षीय किशोर की तरह प्रिंसिपल को तंग किया, प्रसव करवाया, और सगाई तोड़ी.