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'ठंड से बचने को लाश से लिपटकर सोती थी 5 साल की बच्ची'

aajtak.in
  • 16 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST
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गरीबी के लिए फुटपाथ पर रहने वाले लोगों को क्या-क्या नहीं करना पड़ता है. एक सोशल वर्कर की मानें तो उनका सामना दिल्ली में पांच साल की एक ऐसी बच्ची से हुआ, जो ठंड से बचने के लिए लाशों से लिपटकर सो जाती थी. ये कहानी केबीसी 9 के विशेष कार्यक्रम में पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ता अंशु गुप्ता ने बताई.

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वो 'नई चाह नई राह' में हिस्सा ले रहे थे.

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अभिषेक बच्चन के साथ अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठे अंशु ने कहा, पांच साल की बच्ची लाश के साथ सर्दी से बचने के लिए सोती थी. उसने अंशु को बताया था कि लाश हिलती नहीं और परेशान भी नहीं करती.

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दरअसल, गेम शो में अंशु ने ये कहानी तब बताई जब अमिताभ ने उनसे उस प्रेरणा के बारे में जानना चाहा, जिसकी वजह से वह सामाजिक कार्य के लिए आगे आए. अंशु ने बताया ऐसी कहानियों ने उन्हें लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया.
अंशु ने इससे जुड़े कई और अनुभव साझा किए.

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वो पेशे से पत्रकार भी रहे हैं. शो के दौरान अमिताभ ने उनका परिचय देते हुए कहा कि उनकी संस्था गूंज देश के 22 राज्यों में सक्रिय है. इतना ही नहीं उनकी संस्था गूंज इस वक्त 10 बाढ़ग्रस्त राज्यों में राहत कार्यों में भी जुटी हुई है.

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शो में अंशु के साथ उनकी पत्नी और बेटी भी पहुंची थी. अंशु गुप्ता का जन्म एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ. दसवीं कक्षा पास करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग करने की तमन्ना से आगे की पढ़ाई विज्ञान विषय से की. इसके बाद वह दिल्ली आए और यहां उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से पत्रकारिकता का कोर्स किया.

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इसके बाद उन्होंने कुछ साल नौकरी की, लेकिन वह कुछ अलग और ऐसा करना चाहते थे, जिससे समाज को फायदा हो. इस सोच के साथ उन्होंने गूंज संस्था की नींव रखी. केबीसी में इस बारे में बात करते हुए अंशु ने कहा कि जब उन्होंने दिल्ली के फुटपाथों पर बच्चों को ठंड में बिना कपड़ों के भीख मांगते देखा, तब उन्हें लगा कि ठंड भी बाढ़ और सूखे की तरह की एक डिजास्टर है. तभी उन्हें इस पर काम करने का विचार आया.

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उनकी संस्था गूंज का मकसद है पुराने कपड़ों को जरूरतमंदों तक पहुंचाना. यह काम अंशु और उनकी पत्नी ने अलमारी में रखे अपने पुराने 67 कपड़ों से शुरू किया था.

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केबीसी में उन्होंने बताया कि आज उनके पास तीन हजार टन के करीब मैटिरियल है, जिसे वह जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं. उन्होंने इसके लिए क्लॉथ फॉर वर्क नाम से मुहिम शुरू की थी. इस कार्यक्रम के अंतर्गत गरीब और जरूरतमंद लोगों को काम करने के बदले कपड़े दिए जाते हैं. इन कामों में सभी विकास कार्य से जुड़े काम शामिल हैं. मसलन किसी गांव में पुल बनवाना, कुएं खुदवाना वगैरह.

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1999 में गूंज एक रजिस्टर्ड एनजीओ बन गया था. इस संस्था के तहत किए जाने वाले सामाजिक कार्यों के लिए अंशु को साल 2015 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार भी दिया गया. 

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रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड एशिया के उन व्यक्तियों और संस्थाओं को दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र में खास योगदान देते हैं।

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