बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान को शिवसेना और कुछ राइट विंग संस्थाओं के आक्रोश का सामना करना पड़ा था क्योंकि उन्होंने आईपीएल में पाकिस्तान के खिलाड़ियों को खिलाने की पैरवी की थी. इसके अलावा उनकी फिल्म माई नेम इज खान पर भी काफी बवाल हुआ था. शाहरुख ने अपने 50वें बर्थ डे पर देश में असहिष्णुता को लेकर सवाल उठाए थे जिसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में बजरंग दल और वीएचपी जैसी राइट विंग संस्थानों ने उनकी फिल्म दिलवाले को रिलीज ना होने की धमकी दी थी और फिल्म को बॉयकॉट करने की बात कही थी. वीएचपी के कुछ सदस्यों ने गुजरात में शाहरुख की कार को डैमेज भी किया था.
आमिर खान ने 2006 में जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहीं एक्टिविस्ट मेधा पाटेकर का समर्थन किया था. मेधा उस समय गुजरात सरकार के एक फैसले का विरोध कर रही थी जिसमें ये कहा गया था कि सरदार सरोवर बांध की लंबाई बढ़ाई जाएगी. उस दौरान आमिर की फिल्म रंग दे बसंती रिलीज होने वाली थी और वे अपनी पूरी टीम के साथ मेधा का समर्थन करने पहुंचे थे. आमिर की नर्मदा बचाओ आंदोलन में सक्रियता देखकर कई लोग हैरान हुए थे.
बीजेपी युवा मोर्चा के प्रेसीडेंट अमित ठाकेर ने उस समय कहा था कि मेधा पाटेकर हमारी दुश्मन हैं और उनका समर्थन कर आमिर खान भी हमारे दुश्मन बन गए हैं. हम उनकी किसी फिल्म को गुजरात में रिलीज नहीं होने देंगे. उनके प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करेंगे. उस दौर में टोयोटा ने आमिर खान स्टारर विज्ञापनों को टीवी से हटवा लिया था. हालांकि आमिर खान ने उस दौरान कहा था कि मैं वही कह रहा हूं जो सुप्रीम कोर्ट कह रहा है. क्या देश में अपनी बात कहने का हक है या नहीं? क्या मुझे टारगेट किए बिना अपनी बात रखी जा सकती है. इससे यही साबित होता है कि हमारे देश की पॉलिटिकल पार्टियां किस चीज की बनी है. आमिर की फिल्म रंग दे बसंती को गुजरात में प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था और ये फिल्म वहां रिलीज नहीं हो पाई थी.
इससे पहले आमिर ने साल 2002 में गुजरात दंगों को लेकर कहा था कि एक चीफ मिनिस्टर होने के नाते मोदी स्थिति को अपने काबू में नहीं कर पाए. उनके इस विवादित बयान के बाद गुजरात में साल 2006 में आई उनकी फिल्म फना को अनाधिकारिक रुप से बैन कर दिया गया. इसके अलावा 2007 में आई उनकी फिल्म तारे जमीन पर को भी गुजरात में राइट विंग संस्थानों द्वारा काफी विरोध का सामना करना पड़ा था.
साल 2015 में अपने विवादित बयान के बाद आमिर खान कई लोगों के निशाने पर आ गए थे. एनडीए सरकार के पावर में आने के बाद देश में असहिष्णुता से जुड़ी कई घटनाएं देखने को मिली. इसी को लेकर आमिर खान ने बयान दिया था कि देश के फिलहाल जैसे हालात हैं, मेरी पत्नी के मुताबिक वे बहुत सेफ फील नहीं कर रही हैं. आमिर के इस बयान पर उन्हें जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था और उनका सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक विरोध हुआ. इसके अलावा आमिर के द्वारा प्रमोट किए जा रहे ब्रैंड स्नैपडील को भी इसका दंश झेलना पड़ा.
महेश भट्ट अक्सर अपनी बेबाक राय और विवादित तस्वीरों से राइट विंग ग्रुप्स के निशाने पर रहे हैं. महेश बीजेपी के कम्युनल होने के चलते उनका समर्थन नहीं करते हैं जिसके चलते उन्हें अक्सर राइट विंग ग्रुप्स की आलोचनाओं का सामना करना पड़ता रहा है. महेश भट्ट हाल ही में सीएए एनआरसी कानून के खिलाफ प्रोटेस्ट में भी शामिल हुए थे और वे साफ कह चुके हैं कि इस कानून के तहत कोई कागज नहीं दिखाएंगे.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने गांव बुधाना में रामलीला प्रोग्राम में शामिल होने गए थे लेकिन वहां मौजूद कुछ राइट विंग एक्टिविस्ट्स ने उनका इस मामले में विरोध किया था. इसके बाद नवाज को अपना प्रोग्राम कैंसल करना पड़ा था. नवाज ने कहा था कि वे इस प्ले में मारिच का किरदार निभाना चाहते थे जो एक राक्षस था और जिसे भगवान राम मार गिराते हैं. नवाजुद्दीन ने इस बारे में कहा था कि मुझे ये बताया गया कि गांव में शांति की बहाली के लिए ये बेहतर होगा कि वे इस कार्यक्रम में ना पहुंचे. नवाज ने ये भी कहा था कि उनका रामलीला में परफॉर्म करना एक सपना है और वे इसके लिए फिर प्रयास करेंगे.
तीन दिवसीय अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल को एड्रेस करने नसीरुद्दीन शाह जाने वाले थे लेकिन इस फेस्टिवल को रद्द कर दिया गया था क्योंकि कुछ स्थानीय राइट विंग से जुड़े लोगों ने उनके बयानों को लेकर आपत्ति जताई थी और प्रोटेस्ट दर्ज कराया था. इन लोगों को शाह के मॉब हिंसा के बयान को लेकर आपत्ति थी. शाह ने उस दौरान कहा था कि कुछ जगहों पर मॉब हिंसा से मारे गए इंस्पेक्टर से ज्यादा एक गाय को ज्यादा महत्वता मिलती है और मुझे अपने बच्चों को लेकर इस देश में डर लगता है. शाह इस फेस्टिवल में अपनी किताब भी लॉन्च करने वाले थे.
दीपा मेहता की फिल्म फायर और वॉटर को राइट विंग ग्रुप्स का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था. फायर लेस्बियन रिश्तों पर आधारित फिल्म थी और देश के कुछ हिस्सों में इन फिल्मों की स्क्रीनिंग वाले क्षेत्रों में तोड़फोड़ की गई थी.
करण जौहर की फिल्म माई नेम इज खान को लेकर शिवसेना समर्थकों ने ऐतराज जताया था और फिल्म को लेकर बवाल हुआ था हालांकि बाद में गुजरात सीएम मोदी ने उनकी फिल्म को गुजरात में रिलीज कराने में मदद की थी. इसके अलावा फिल्म ऐ दिल है मुश्किल की रिलीज के दौरान भी उन्हें जबरदस्त प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था क्योंकि उस फिल्म में पाक कलाकार फवाद खान शामिल थे. करण को ये भी कहा गया था कि उन्हें 5 करोड़ रुपए आर्मी के लिए डोनेट करने चाहिए जिसके बाद करण ने ऑनस्क्रीन माफी भी मांगी थी.
दीपिका पादुकोण को छपाक से पहले भी फिल्म पद्मावत और गोलियों की रासलीला: रामलीला को लेकर विवाद झेलने पड़े हैं. पद्मावत के खिलाफ करणी सेना ने हिंसक प्रदर्शन किए थे और हरियाणा बीजेपी के मीडिया कोऑर्डिनेटर सूरज पाल अमु ने दीपिका और संजय लीला भंसाली के सर पर 10 करोड़ का ईनाम रखा था. इसके अलावा संजय लीला भंसाली पर करणी सेना ने हमला भी किया था. उनकी पिछली फिल्म रामलीला का नाम बदलकर भी गोलियों की रासलीला: रामलीला रखा गया था क्योंकि राइट विंग संस्थानों ने इसे हिंदू आस्था के खिलाफ बताया था.
फरहान अख्तर सीएए-एनआरसी को लेकर सड़कों पर उतरने के बाद से ही जबरदस्त तरीके से ट्रोल हो रहे हैं. उनकी फिल्म तूफान को भी बायकॉट करने की मांग सोशल मीडिया पर चल रही है.
अनुराग कश्यप को अपने बेहद रैडिकल विचारों के चलते सोशल मीडिया पर जबरदस्त धमकियां मिलती रही हैं. उन्होंने एक समय तो ट्विटर भी इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि उनकी बेटी और परिवार को धमकी भरे कॉल आने लगे थे लेकिन जामिया में पुलिस और स्टूडेंट्स के बीच हिंसा के बाद वे एक बार फिर सोशल मीडिया पर लौट आए और लगातार केंद्र सरकार से सवाल कर रहे हैं. राइट विंग ग्रुप्स उनकी फिल्मों को पूरी तरह से बायकॉट करने को लेकर आमादा हैं लेकिन अनुराग इससे बेपरवाह प्रतीत होते हैं क्योंकि वे कहते हैं कि उनका सिनेमा ऐसे लोगों के लिए है ही नहीं.