कोरोना वायरस से मची तबाही के बाद पूरी दुनिया में इस महामारी को जड़ से खत्म करने का हथियार तलाशा जा रहा है. इसी बीच ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बुधवार को एक बयान जारी कर बताया कि कोविड-19 के इलाज के लिए एंटी-पैरासाइटिक ड्रग आइवरमैक्टिन को टेस्ट किया जा रहा है. ब्रिटिश सरकार समर्थित इस स्टडी का उद्देश्य घर पर रहकर कोरोना से रिकवरी करने वाले मरीजों को मदद पहुंचाना है.
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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मुताबिक, इस स्टडी के रिजल्ट बताते हैं कि आइवरमैक्टिन वायरस के रेप्लीकेशन को घटाने में मदद करती है. शोधकर्ताओं ने बताया कि यह दवा जल्दी देने से शरीर में वायरल लोड कम हो सकता है और कोविड-19 के हल्के लक्षण वाले मरीजों की तकलीफ काफी हद तक कम हो सकती है.
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इससे पहले जनवरी में हुए एक ब्रिटिश शोध में पता चला था कि एंटीबायोटिक्स एजिथ्रोमाइसिन और डॉक्सीसाइक्लाइन कोविड-19 के शुरुआती चरणों में बेहद कारगर हैं. हालांकि, 50 साल से ज्यादा उम्र के कोविड मरीजों में इसका कोई फायदा नहीं दिखाई देता है.
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हालांकि, आइवरमैक्टिन के इस्तेमाल को लेकर कई सवाल भी खड़े किए जा सकते हैं, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूरोपियन और अमेरिका जैसे देशों के रेगुलेटर्स कोविड-19 मरीजों में इस ड्रग के प्रयोग से नाखुश हैं. वहीं, भारत समेत कुछ देश में कोविड-19 के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
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स्टडी के शोधकर्ता क्रिस बटलर का कहना है कि आइवरमैक्टिन का बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जा रहा है. हमें उम्मीद है कि स्टडी में सामने आए साक्ष्य ये बता सकेंगे कि कोविड-19 के इलाज में यह ड्रग कितनी प्रभावशाली है. यह ड्रग मरीजों के लिए खतरनाक है या वाकई इससे फायदा हो रहा है, ऐसे सवालों का जवाब हमें मिल जाएगा.
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लिवर से जुड़ी दिक्कतों का सामना कर रहे लोग या खून को पतला करने वाली दवा वार्फरिन का इस्तेमाल करने वाले मरीज आइवरमैक्टिन दवा के बारे में जरूर जानते होंगे. बता दें कि आइवरमैक्टिन इस ट्रायल में एक्सपेरीमेंट की जा रही सातवीं दवा है. फिलहाल एंटीवायरल ड्रग फेविपिरावीर के साथ इसका मूल्यांकन किया जा रहा है.
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क्या है आइवरमैक्टिन- आइवरमैक्टिन एक ऐसी दवा है जिसका प्रयोग पैरासिटिक इन्फेक्शंस के इलाज में होता है. यह दवा WHO की आवश्यक दवाओं की सूची में भी शामिल है. कुछ स्टडी में ऐसा दावा किया गया है कि यह SARS-CoV-2 समेत कुछ सिंगल-स्ट्रैंड RNA वायरस के खिलाफ असर दिखाती है.
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कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को लेकर वैज्ञानिक काफी चिंतित हैं. ऐसे में वैक्सीन की कमी ने भी कई देशों में हालात मुश्किल बना रखे हैं. इसलिए शोधकर्ता ऐसी दवाओं पर ट्रायल कर रहे हैं जिनकी मदद से हालातों को कंट्रोल किया जा सके.