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भारत में पहले की तरह आसानी से नहीं थमेगा कोरोना, साइंटिस्ट की चेतावनी

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2021,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST
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भारत में तबाही लेकर आई कोरोना की दूसरी लहर भले ही कुछ थमती नजर आ रही है, लेकिन पीक पर जाने के बाद इस लहर का नीचे आना पहली लहर के मुकाबले एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है. जाने-माने वायरलॉजिस्ट शाहिद जमील ने मंगलवार को कहा कि कोरोना की मौजूदा लहर का असर जुलाई तक बना रह सकता है. भारत में इस सप्ताह लगातार तकरीबन साढ़े तीन लाख मामले दर्ज किए जा रहे हैं.

Photo: Reuters

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त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंस और अशोका यूनिवर्सिटी के निदेशक ने भारत में कोरोना की दूसरी लहर पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, 'भारत में कोरोना के विस्फोट के लिए कोरोना के नए वेरिएंट्स भी आंशिक रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं. हालांकि कोरोना के म्यूटेंट वर्जन ज्यादा घातक हैं, इस बात के अभी तक संकेत नहीं मिले हैं.'

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इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन ईवेंट में बोलते हुए जमील ने कहा कि ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि भारत में कोरोना पीक पर है. उन्होंने कहा, 'कोरोना की दूसरी लहर में मामले भले ही अब बढ़ नहीं रहे हैं, लेकिन पीक पर जाने के बाद भी ये इतनी आसानी से नीचे नहीं आने वाली है. इस लहर का प्रभाव जुलाई तक रहने की आशंका है. इसका मतलब हुआ कि अगर अगर ये लहर नीचे आना शुरू हो जाए तो भी हम रोजोना संक्रमितों की बड़ी संख्या देखेंगे.'

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वैज्ञानिकों के मुताबिक, दूसरी लहर में कोरोना के मामले उस तरह नीचे नहीं आएंगे जैसा कि पहली लहर में देखा गया था. जमील ने बताया कि कोरोना की पहली लहर में हमने लगातार गिरावट देखी थी. लेकिन याद रखें, कोरोना की दूसरी लहर में हमने शुरुआत ही बड़ी संख्या के साथ की है. पहली लहर के 96,000-97,000 मामलों के मुकाबले दूसरी लहर में हम चार लाख मामलों के साथ शुरू कर रहे हैं तो इसे नीचे आने में ज्यादा समय लगेगा.

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उन्होंने कहा कि कोरोना के मामले नीचे आने के दौरान हम हर प्वॉइंट पर काफी ज्यादा मामले देखेंगे. उन्होंने दावा किया कि भारत में सामने आ रहा मृत्य दर का डेटा पूरी तरह से गलत है. वे किसी व्यक्ति, समूह या राज्य के आधार पर डेटा कलेक्ट करने के डिजाइन को गलत नहीं मानते हैं, बल्कि डेटा रिकॉर्ड करने के तरीके से नाखुश हैं.

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उन्होंने बताया कि वायरलॉजिस्ट भी ऐसा मानते हैं कि भारत में लोगों ने प्रोटोकॉल्स का पालन न करके वायरस को तेजी से पैर पसारने का मौका दिया है. उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर में जब मामले काफी कम हो चुके थे, हमने भारतीयों की मजबूत इम्यूनिटी जैसी बातों पर विश्वास करना शुरू कर दिया था. इसके बाद जनवरी और फरवरी के महीने में जमकर शादियां हुईं. इस तरह के कार्यक्रमों से कोरोना संक्रमण बड़े स्तर पर फैल गया.

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उन्होंने कहा कि महामारी के बीच चुनावी रैलियों और धार्मिक आयोजनों की वजह से भी दूसरी लहर में मामले ज्यादा तेजी से बढ़े हैं. वैक्सीन कवरेज को लेकर भी उन्होंने चिंता जाहिर की है. उन्होंने बताया कि जनवरी और फरवरी में जब हमारे पर अवसर था तब पर्याप्त लोग वैक्सीनेट नहीं हो पाए. मार्च के तीसरे सप्ताह में जब मामले बढ़ना शुरू हुए तब तक शायद हम शायद 2 प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीनेट कर पाए थे.

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जमील ने कहा कि इस दौरान बहुत से लोग वैक्सीन को सुरक्षित नहीं मान रहे थे. उन्होंने कहा कि वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित और इसके बहुत कम ही साइड इफेक्ट हैं. वायरस की चपेट में आने से मौत होने की संभावना साइड इफेक्ट की तुलना में बहुत ज्यादा है. कई राज्यों में वैक्सीन की कमी पर उन्होंने कहा कि सभी बड़े देशों ने अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से को वैक्सीनेट किया है और जून तक के लिए वैक्सीन बुक कर ली थी.

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भारत में ऐसा नहीं हुआ है. देश की सबसे बड़ी वैक्सीन कंपनियां प्राइवेट-लिमिटेड हैं तो इसलिए अब हम पूरी तरह से प्राइवेट सेक्टर पर ही निर्भर हो गए हैं और प्राइवेट सेक्टर्स कभी चैरिटी के लिए ऐसे काम नहीं करते हैं.

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उन्होंने ये भी कहा कि अब हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक और पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को धन आवंटित किया गया है. अब दोनों सुविधाओं का विस्तार कर रहे हैं. हालांकि वैक्सीन की उपलब्धता को सामान्य होने में जुलाई तक का समय लग सकता है.

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