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Corona virus: Covaxin के सामने नहीं टिक पाएंगे अल्फा, डेल्टा वेरिएंट्स, US हेल्थ एजेंसी का दावा

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2021,
  • अपडेटेड 11:30 AM IST
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कोरोना की वैक्सीन पर दुनिया भर में स्टडी जारी हैं. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH)की एक स्टडी में भारत बायोटेक की कोवैक्सीन काफी असरदार पाई गई है. NIH का कहना है कि कोवैक्सीन Covid-19 के अल्फा और डेल्टा दोनों वैरिएंट को 'प्रभावी रूप से बेअसर' करता है.

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NIH ने कहा, ' कोवैक्सिन लगवाने वाले लोगों के ब्लड सीरम पर हुई दो स्टडीज से पता चलता है कि वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी SARS-CoV-2 के अल्फा और डेल्टा वैरिएंट को प्रभावी ढंग से बेअसर करता है. भारत बायोटेक की ये वैक्सीन ICMR के सहयोग से बनी है.
 

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अल्फा वैरिएंट सबसे पहले UK में जबकि डेल्टा वैरिएंट भारत में सबसे पहले पाया गया था. वैक्सीन निर्माताओं ने हाल ही में एक विशेषज्ञ पैनल को तीसरे चरण का डेटा सौंपा था. तीसरे चरण के ट्रायल में कोवैक्सीन कोरोना के हल्के-मध्यम लक्षण वाले मामलों पर 78% और गंभीर मामलों पर 100% कारगर पाया गया है. 
 

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NIH ने कहा कि कोवैक्सीन एसिम्टोमैटिक मामलों पर भी 70% असरदार है और पूरी तरह सुरक्षित है. NIH ने कोरोना के खिलाफ कोवैक्सीन शॉट को अत्यधिक प्रभावकारी बताया है. हालांकि वैक्सीन के अंतरिम नतीजे अभी कहीं प्रकाशित नहीं हुए हैं. 
 

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भारत में 16 जनवरी से वैक्सीन ड्राइव के तहत लोगों को ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड और कोवैक्सीन दी जा रही है. अप्रैल में रूस की स्पूतनिक को भी इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है. वहीं कल अमेरिका की मॉडर्ना वैक्सीन को भी इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिल गई है.
 

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आने वाले दिनों में फाइजर और अहमदाबाद की कंपनी जायडस कैडिला को भी मंजूरी मिल सकती है. मंजूरी मिलने पर जायडस कैडिला कोवैक्सिन के बाद भारत की दूसरा स्वदेशी एंटी-कोविड वैक्सीन होगी.
 

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भारत बायोटेक के कोवैक्सीन कुछ दिन पहले विवादों में भी रह चुकी है. सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट में दावा किया गया था कि कोवैक्सीन में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसे किसी भी तरह के दावों को खारिज कर दिया था. सरकार ने कहा था कि इन पोस्ट मे तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है और इन्हें गलत तरीके से पेश किया गया है.

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स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सिन में नवजात बछड़े का सीरम नहीं है. कंपनी ने भी ये कहा है कि सीरम का उपयोग वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में किया जाता है, लेकिन पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद ये सीरम वैक्सीन में नहीं रह जाता है. 
 

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बयान में कहा गया है कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल केवल वेरो कोशिकाओं को तैयार करने और इन्हें बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसमें कहा गया है कि गोजातीय और अन्य जानवरों के सीरम मानक संवर्धन घटक हैं और इनका इस्तेमाल वेरो सेल के विकास के लिए विश्व स्तर पर किया जाता है.
 

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वेरो कोशिकाओं का इस्तेमाल कोशिकाओं को जीवित करने में किया जाता है जो वैक्सीन के उत्पादन में मदद करते हैं. पोलियो, रेबीज और इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन बनाने में इस तकनीक का इस्तेमाल दशकों से किया जा रहा है.
 

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कोवैक्सिन निर्माता भारत बायोटेक ने भी इस पर स्पष्टीकरण दिया था. कंपनी का कहना था कि नवजात बछड़े के सीरम का उपयोग वायरल वैक्सीन के निर्माण में किया जाता है. इसका इस्तेमाल कोशिकाओं के विकास के लिए किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग न तो SARS CoV2 वायरस के विकास में किया जाता है और ना ही वैक्सीन के अंतिम निर्माण में.
 

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