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बंटवारे की जिद पर अड़े थे अनिल अंबानी, मुकेश बने संकटमोचक

दीपक कुमार
  • 28 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 10:25 AM IST
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साल 2002 की बात है, रिलायंस इंडस्ट्रीज के फाउंडर धीरूभाई अंबानी का 70 साल की उम्र में निधन हो गया. भारतीय कारोबार जगत के लिए यह एक बड़ा झटका था. मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी को अपने पिता धीरूभाई अंबानी से विरासत में एक बड़ा कारोबारी साम्राज्य मिला. आज धीरूभाई अंबानी के जन्‍मदिन पर उनके दोनों बेटे- मुकेश और अनिल अंबानी के रिश्‍तों के बारे में बताएंगे...

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दरअसल, धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद ऐसी उम्‍मीद की जा रही थी कि दोनों भाई मिलकर इस साम्राज्‍य को आगे बढ़ाएंगे, लेकिन सिर्फ 2 साल के भीतर मुकेश और अनिल अंबानी के रिश्‍तों में कड़वाहट जगजाहिर हो गई. दोनों भाइयों के बीच की दीवार इतनी बड़ी हो गई कि मां कोकिलाबेन को दखल देकर बंटवारा करना पड़ा.

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कोकिलाबेन ने मुकेश को ऑयल रिफाइनरीज और पेट्रोकेमिकल का कारोबार सौंप दिया तो अनिल के हिस्से में टेलीकॉम, फाइनेंस और एनर्जी यूनिट्स आईं. दोनों भाइयों ने एक-दूसरे से होड़ या प्रतिस्पर्धा नहीं करने के एक समझौते पर भी दस्तखत किए—मुकेश टेलीकॉम कारोबार में पैर नहीं रखेंगे, जबकि अनिल ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल से दूर रहेंगे.

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इस बंटवारे में अनिल अंबानी को वो सभी चीजें मिल गईं जिसकी जिद कर रहे थे. लेकिन मुकेश अंबानी के हाथ से टेलीकॉम कारोबार निकल गया, जिसे उन्‍होंने खुद सींचा था. हालांकि इसके बावजूद मुकेश अंबानी खामोश रहे. जानकारों की मानें तो इसी वजह से मुकेश को कामयाबी का सफर तय करने में लंबा वक्त लगा.

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हालांकि शुरुआती सालों में अनिल अंबानी के लिए स्थितियां अनुकूल थीं. लेकिन कुछ वक्‍त बाद अनिल अंबानी के पतन की भी शुरुआत होने लगी. वहीं दूसरी ओर मुकेश अंबानी सफलता के शिखर की ओर बढ़ने लगे.

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आखिर ऐसा क्‍यों हुआ?
जानकारों का कहना है कि अनिल पारिवारिक कारोबार के बंटवारे के फौरन बाद से ही पूंजी निगलने वाली परियोजनाओं को हाथ में लेने पर उतारू थे. अनिल अंबानी के हर कारोबारी फैसले महत्वाकांक्षा के फेर में पड़कर लिए गए थे. इसके अलावा वह कॉम्‍पिटीशन में बिना किसी रणनीति के कूद जाने में दिलचस्‍पी रखते रहे.

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अनिल अंबानी के लिए 2008 की वैश्विक मंदी ने भी बड़ा झटका दिया. एक अनुमान के मुताबिक इस मंदी में अनिल अंबानी को 31 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. इसके बाद अनिल अंबानी जिस कारोबार में हाथ लगा रहे थे, वहां उन्‍हें निराशा मिल रही थी. दूसरी तरफ मुकेश अंबानी संभल-संभल कर कदम रख रहे थे. इसी बीच, दोनों भाइयों के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं करने की शर्त 2010 में खत्म हो गई.

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इसे मुकेश अंबानी ने भुनाते हुए तुरंत मोबाइल मार्केट में उतरने का फैसला किया. इसकी तैयारी में अगले सात साल में उन्होंने 2.5 लाख करोड़ रुपये लगा दिए और नई कंपनी रिलायंस जियो इन्फोकॉम के लिए हाई स्पीड 4G वायरलेस नेटवर्क तैयार हो गया. मुकेश अंबानी के इस कदम ने एक ही झटके में गांव-गांव तक उनकी पहचान बना दी. इस दौरान मुकेश अंबानी के ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल कारोबार ने भी हर दिन नया मुकाम हासिल किया.

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आज क्‍या है स्थिति?

आज मुकेश अंबानी दुनिया के टॉप 10 अमीरों में शामिल हैं तो वहीं अनिल अंबानी पर 45 हजार करोड़ के कर्ज और मुकदमों का पहाड़ है. हाल ही में अनिल अंबानी पर स्वीडन की कंपनी एरिक्सन ने 550 करोड़ रुपये चुकाने को कहा था. कोर्ट के आदेश के मुताबिक अगर वो नहीं चुकाते तो जेल जाना पड़ता. मुकेश अंबानी मुश्किल वक्‍त में अपने भाई का सहारा बने और पैसे चुकाकर जेल जाने से बचा लिया.

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