लॉकडाउन के बीच भी कंपनियों की तमाम जरूरी प्रक्रियाएं जारी हैं . ऐसी ही एक प्रक्रिया है, इनकम टैक्स के लिहाज से अपना निवेश यानी इनवेस्टमेंट डिक्लेरेशन की. इस बार समस्या यह है कि आपको अभी से यह बताना पड़ेगा कि आप नए इनकम टैक्स स्लैब सिस्टम में जाना चाहते हैं या पुराने में रहना चाहते हैं. आइए हम आपका कन्फ्यूजन दूर करते हैं.
क्या है मसला: असल में इस वित्त वर्ष में इन्वेस्टमेंट की घोषणा के बारे में
बहुत से लोगों के पास उनकी कंपनी के एचआर से मेल आने लगे हैं. अभी तक लोग
इस दुविधा में भी हैं कि बजट में मिले नए टैक्स सेविंग विकल्प को चुनें या
पुराने को ही रहने दें. अब केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने यह साफ
किया है कि इसकी जानकारी आपको अपनी कंपनी को अभी देनी होगी. नहीं तो आपकी
कंपनी पुराने सिस्टम के मुताबिक ही टीडीएस काटती रहेगी.
सीबीडीटी ने कहा कि जो नौकरीपेशा लोग नए टैक्स सिस्टम से टैक्स देना चाहते
हैं उन्हें इसके लिए पहले अपने एम्प्लॉयर को जानकारी देनी होगी ताकि सैलरी
देते समय टीडीएस कटौती उसके मुताबिक की जा सके. इसलिए आपको तत्काल अपने एचआर को इस बात की जानकारी देनी चाहिए कि आप नए टैक्स सिस्टम को अपनाना चाहते हैं या पुराने सिस्टम को.
क्या
है नया सिस्टम: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के बजट में नए
टैक्स सिस्टम का ऐलान किया था. इसके तहत कम रेट पर नए टैक्स स्लैब बनाए गए
हैं. हालांकि ऐसा करने पर हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए), होम लोन ब्याज, 80C,
80D और 80CCD के तहत निवेश पर छूट नहीं मिलेगी.
बजट 2020 में घोषित
नए टैक्स स्लैब के मुताबिक 2.5 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी टैक्स से मुक्त
है. 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक आमदनी पर 5 फीसदी की दर से टैक्स लगेगा,
हालांकि इस पर भी सरकार रिबेट देती है तो आपकी 5 लाख रुपये तक की आय पूरी
तरह से टैक्स फ्री हो जाती है. 5 लाख से 7.5 लाख तक आमदनी पर 10 फीसदी, 7.5
लाख से 10 लाख की आमदनी पर 15 फीसदी की दर से टैक्स देना होगा. 10 से 12.5
लाख की आमदनी पर 20 फीसदी टैक्स लगेगा. 12.5 लाख से 15 लाख की आमदनी पर 25
फीसदी और 15 से से अधिक सालाना आय पर 30 फीसदी टैक्स का प्रावधान है.
पुराने सिस्टम से कितना टैक्स?
पुराने
सिस्टम के तहत 2.5 लाख रुपये तक सालाना व्यक्तिगत आमदनी टैक्स मुक्त है.
2.5 लाख से 5 लाख तक की आमदनी पर 5 फीसदी टैक्स लगता है, हालांकि इस पर भी
सरकार रिबेट देती है तो आपकी 5 लाख रुपये तक की आय पूरी तरह से टैक्स फ्री
हो जाती है. 5 लाख से 10 लाख की आमदनी पर 20 फीसदी टैक्स लगता है और 10 लाख
से अधिक आमदनी पर 30 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है. पुराने सिस्टम
में आपको एचआरए, 80C, 80D और 80CCD के तहत निवेश सहित सहित कई तरह की छूट
का विकल्प भी मिलता है.
आपकी सैलरी 13 लाख से कम है तो पुराना सिस्टम ही ठीक:
केंद्रीय
बजट में टैक्स की दरों में तो कटौती की गई, लेकिन इसके साथ ही टैक्स में
मिलने वाली तमाम छूट या डिडक्शन को खत्म कर दिया गया. अगर आप पहले की तरह
इन छूट का फायदा उठाना चाहते हैं तो फिर आपको पुरानी टैक्स व्यवस्था यानी
पुराने टैक्स स्लैब के हिसाब से ही टैक्स भरना होगा. ऐसे में कुछ लोगों के
लिए तो पुरानी टैक्स व्यवस्था ही फायदेमंद है जबकि कुछ लोगों के लिए नई
टैक्स व्यवस्था ज्यादा उपयुक्त है.
जानकार कहते हैं कि बजट में
प्रस्तावित नए टैक्स स्लैब का विकल्प चुनने पर उन लोगों को फायदा हो सकता
है जिनकी सालाना आय 13 लाख रुपये से ऊपर है और वे 2 लाख रुपए तक की
टैक्सेबल आय छूट (डिडक्शन) लेते थे. वहीं, जिनकी सालाना आय 13 लाख
रुपये से कम है और वे अभी तक करीब 2 लाख रुपये तक की टैक्स छूट (डिडक्शन)
ले रहे थे तो उनके लिए नए टैक्स स्लैब के मुकाबले पुराना टैक्स सिस्टम ही
फायदेमंद होगा.
टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं कि सैलरीड लोगों
के लिए पुराना टैक्स स्लैब सिस्टम ही मुफीद है, क्योंकि उन्हें एलटीए,
एचआरए जैसी कई सुविधाएं मिलती हैं जिनके बदले डिडक्शन उन्हें लेना ही होता
है. लेकिन जिनकी आमदनी किसी अन्य तरीके से होती है, या जो रिटायर्ड लोग
हैं, और उनकी आमदनी ज्यादा है तो उनके लिए नया सिस्टम उपयुक्त रहेगा,
जिसमें उनको किसी तरह का निवेश प्रमाण दिखाने की जरूरत नहीं होगी.
इसी
तरह यह ऐसे नॉन—सैलराइड के लिए भी उपयुक्त नहीं है जिनकी इनकम 7 लाख
सालाना से कम है. ऐसे लोग बड़े
आराम से 80 सी और 80सीसीडी में करीब 2 लाख का निवेश कर अपनी आय 5 लाख के
भीतर ला सकते हैं और 12,500 का रिबेट पा सकते हैं.
गौर करने वाली
बात यह है कि नौकरीपेशा व्यक्ति कभी भी नई या पुरानी योजना में स्विच कर
सकता है. यानी आप अभी चाहे जो भी सिस्टम अपनाएं, इनकम टैक्स रिटर्न के समय
उसे बदल सकते हैं और अगले वर्षों में भी. लेकिन बिजनेस इनकम वाले लोग ऐसा
नहीं कर सकते.